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हवाओं में ये कैसी सिहरन,
धरती से उठी कैसी भीनी सुगंध ! फिज़ाओं में ये कैसा जादू , मन में उमड़ने लगे है ज़ज्बात ! शुष्क धरती के होठों की प्यास बुझाती, मौषम की ये पहली बरसात !......... पहली बारिश के मधुर नाद में, आर्द्र हों उठा है मन ! हृदय वीणा के मौनबद्ध तार को , झनझना देते हैं बार - बार ! हवाएं सरगोशी से कुछ कहने सी लगी है , ये कैसा नशा है.... कैसा है ये जादू !..... क्यों धड़कता दिल, हो रहा है बेकाबू ! सांसे थाम कर बैठे हैं हम , ये दिल थामकर बैठे हैं हम! अब तो कह दो, ..कह दो ... क्यों हों तुम ऐसे, कि तुम्हे सजदा करने को बैठे है हम ...!! |
June 30, 2010 at 9:26 PM �
बहुत खूब मीतू जी, कविता तो लाजवाब है ही, ब्लोग का कलेवर भी आकर्षक है.
सांसे थाम कर बैठे हैं हम ,
ये दिल थामकर बैठे हैं हम!
अब तो कह दो, ..कह दो ...
क्यों हों तुम ऐसे,
कि तुम्हे सजदा करने को बैठे है हम ...!!
बहुत ही खूब कहा आपने, अति सुन्दर रचना.
-कैलाश चंद चौहान
September 6, 2011 at 11:49 AM �
Meetu ji sunder prastuti ke liye bahut bahut badhai ......
rachna ke bhav man ko chu gaye .....
July 7, 2012 at 9:37 PM �
वाह...बहुत ही सुन्दर.....सच है,बारिश का ख्याल भी मन को हर्षित कर जाता है....और जब सच में बारिश आ जाये तो दिल मचलता ही है..अम्बर पर घटाओं का छाना ...गर्मी से राहत...सावन के झूले ..खेतों की हरियाली...इन बातों से मनमयूर नाच उठता है....अतिशय सुन्दर चित्रण ..मधुर भाव और आह्लादकारी संवेदना से भरी है आपकी यह रचना......बिलकुल सही अभिव्यक्ति ..उमरते घुमरते बादल जब आकाश में रंगबिरंगी छटा बिखेर जाते हैं तो गोरियों के ह्रदय में हलचल मच ही जाती है...
पहली बारिश के मधुर नाद में,
आर्द्र हों उठा है मन !
हृदय वीणा के मौनबद्ध तार को ,
झनझना देते हैं बार - बार !
हवाएं सरगोशी से कुछ कहने सी लगी है ,
अतिशय हृदयस्पर्शी भाव ..दिल को स्पंदित करनेवाली अभिकल्पना ...अतिशय मुग्धकारी...
ये कैसा नशा है.... कैसा है ये जादू !.....
क्यों धड़कता दिल, हो रहा है बेकाबू !
सांसे थाम कर बैठे हैं हम ,
ये दिल थामकर बैठे हैं हम!
अब तो कह दो, ..कह दो ....कह दो ना ...
क्यों हों तुम ऐसे,
कि तुम्हे सजदा करने को बैठे है हम ...!!
ऐसा लगता है जैसे...
प्रकृति के संग आपकी संवेदना की तारतम्यता से उपजी नई उमंग...हृदयसागर में उठ रही कोमल भावनाओं की तरंग....बह निकली हो जैसे बनके भावों की सरिता...अठखेलियाँ करती हो जैसे नंदन कानन में कोई वनिता...:)
July 9, 2012 at 11:14 AM �
meetu ji bahut acchha likhti hai aap me toh aaj se hi aapka fan ho gaya
chander shekhar
July 9, 2012 at 11:18 AM �
meetu ji bahut badhiya likhti hai aap sach me aapki lekhni me dam hai
chander shekhar
August 24, 2012 at 9:18 PM �
very nice meetu ji