1:18 AM
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कैसी है ये दुनियां,
कैसे हैं ज़ख्म यहाँ, कितने हैं दर्द हैं यहाँ, कितनी पीड़ा, कितनी वेदना, ख़ुशी से, गम से इसे सहना ही होगा , जीवन का यही है पाठ, इसे तो पढ़ना ही होगा, मरहम लगाने तो आते हैं कई, पर दर्द दे जाते हैं वही, किस पर करेंगे भरोसा, किस पर करें विश्वाश, एक थी जो आश , उसने भी क्या निराश, उम्मीद रखी थी जो अपनों से, अपने भी गैर बन गए, भला गैर भी कभी अपना बना करते हैं, मीठा बोलकर वे पीठ में छुरा भोंका करते हैं, इनमे तो सिर्फ दर्द ही दर्द पला करते हैं, |
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