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मेरे ख्वाबों की ज़मीं पर , फूटते हैं अंकुर, नन्ही-नन्ही ,आशाओं के... जाने कब यह पौधा बनेगा .. और, होगा यह पुष्पित-पल्लवित , कभी तो मेरे ख्वाब-सच होंगे !! |
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