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व्यथित मन के उद्गार प्रश्न जगाते हैं ,
अन्दर ही अन्दर सुसुप्त चेतना को पंख लगाते हैं .... मन से उड़ गए सारे भाव विचार , देखी जब भी सुन्दर सी नार- कचनार , पतझड़ के मौसम में भी श्रृंगार होता है , हर कन्या को देखते ही दीवाना दिल बार - बार होता है ! ह्रदय में मचती है कुलबुली, जब घर में आती है कोई चुलबुली , तन में उठती है मीठी सिरहन, हों जाता है धन्य तदन ! अरमान भरे दिल को बड़ा दुखाती है , जब कन्या कोई अंकल कहकर मुझे बुलाती है , मन बड़ा तनावग्रस्त हों जाता है , भाव सारा अभावग्रस्त हों जाता है ! फिर भी कोई बात नहीं...... अपनी उच्छृँखलता को अपने गाम्भीर्य के भाव मे बांधकर , बेटी कहकर गले लगाता हूँ, पीठ पर हाथ फेर कर स्वर्ग सुख का आनंद उठाता हूँ ! मैं पुरुष हूँ , पंछी उमुक्त गगन का , जिंदगी भर से यही करता आया हूँ , अब अधेड़ हों गया तो क्या ? क्यों रखूं अपनी आकांक्षाओं पर नियंत्रण ? क्यों मानू खुद को शादी शुदा ? है नहीं मुझ पर कहीं कोई ठप्पा ? बालो मे कालिख , चेहरे पर खड़िया । मुँह में 32 की जगह 26 दांत हैं , उम्र भले ही 55 साल है , मगर दिल तो उमंगो से मालामाल है !! |
July 16, 2010 at 3:08 AM �
मीतु जी प्रणाम,
वाह भई वाह , मानना पडेगा , आपने तो कोरी सच्चाई सामने रख दी है , एक ऐसा कटाक्ष जो एक बार सभी को सोचने पे मजबुर कर दे ।
वाकई ऐसी चीजे कई जगह पे देखने को मिलते है और ऐसे वाकये लगभग हर न्युज पेपरो मे अकसर पढने को मिल जाते है ।
आपने बखुबी से उस वाहियात , वहसियाना उमंग को इस रचना मे उतार दिया है साथ साथ मे एक बहुत ही स्पष्ट शब्दो मे सपाट सन्देश है ऐसे लोगो के लिये कि सुधर जाओ ।
आपकी हिम्मात की दाद देनी पडेगी , बहुत ही साहस का परिचय देकरा अबला को शक्ति देने का आपने बेहतरीन प्रयास किया है ।
धन्यवाद और शुभकामनाये ।