पता नहीं कैसे और क्यों हुआ
        पर जो हुआ लगता है अच्छा हुआ
        मुझे तो तुम  से प्यार हुआ
        बस तुम्ही से इकरार हुआ
        यह दिल अब तो तुम्हारे  लिए तरसता है
        तुम्हारी  मुस्कुराहट पर जान छिड़कता है
        तुम्हारी  हर सांस पे जीती हूँ
        तुम्हारी  हर सांस पर ही  मरती हूँ
        लाखों-लाखों बार कहती हूँ
        हाँ, मैं तुमसे प्यार करती हूँ
        रात और दिन तुम्हारा ही इंतज़ार करती हूँ
        दिल की अरमानों का इजहार करती हूँ
        अब कोई दिखता नहीं तुमसे अच्छा
        कोई हो भी तो मैं इनकार करती हूँ
        हर पल नज़र में तुम ही दिखते हो
        तुम्ही हो जिससे मैं प्यार करती हूँ
        तुम्हारी खुशबू बसी है मेरे रूह तक में
        तुम हो बस मेरे ,मैं तेरी स्वीकार करती हूँ
      
         दूर क्यों हो अब आ भी जाओ ना
        मैं तुम्हे बहुत ही याद करती हूँ
        तुम ही बसे हो मेरे रोम रोम में
        यही तो तुझसे फ़रियाद करती हूँ.
        मैं तुम्हे इतना प्यार करती हूँ
        हाँ ,मैं तुमसे प्यार करती हूँ....
        ____________ मीतू !

ख्वाबों में हर पल बसे हैं आप ,
सांसों एहसासों में रमे हैं आप !
नींद से भी जगा जाते हैं आप ,
तन्हाई में भी गुदगुदा जाते हैं आप !!
मेरी रातें आपकी खुशबू से बसी रहती हैं !
लगे आपकी पलकें मुझ पे झुकी रहती हैं !!

अब तो आपके लिए ही जीने को दिल चाहता है !
आपके ही आगोश में खो जाने को दिल चाहता है !!
_____________ मीतू !!

  • संवेदना

    क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!! ---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!

    अपने दायरे !!

    अपने दायरे !!
    कुछ वीरानियो के सिलसिले आये इस कदर की जो मेरा अज़ीज़ था ..... आज वही मुझसे दूर है ..... तल्ख़ हुए रिश्तो में ओढ़ ली है अब मैंने तन्हाइयां !! ......... किरण "मीतू" !!

    स्पंदन !!

    स्पंदन !!
    निष्ठुर हूँ , निश्चल हूँ मैं पर मृत नही हूँ ... प्राण हैं मुझमे ... अभी उठना है दौड़ना हैं मुझे ... अपाहिज आत्मा के सहारे ... जीना है एक जीवन ... जिसमे मरण हैं एक बार ... सिर्फ एक बार !! ..... किरण " मीतू" !!

    सतरंगी दुनिया !!

    सतरंगी दुनिया !!
    आस-पास , हास-परिहास , मैं रही फिर भी उदास ...आत्मा पर पड़ा उधार , उतारने का हुआ प्रयास ... खुश करने के और रहने के असफल रहे है सब प्रयास !! ..... किरण "मीतू" !!

    उलझन !!

    उलझन !!
    अकेले है इस जहां में , कहाँ जाए किधर जाए ! नही कोई जगह ऐसी की दिल के ज़ख्म भर जाए !! ... किरण "मीतू" !

    तलाश स्वयं की !!

    तलाश स्वयं की !!
    कुछ क्षण अंतर्मन में तूफ़ान उत्पन्न कर देते है और शब्दों में आकार पाने पर ही शांत होते है ! ..... मीतू !!

    ज़ज़्बात दिल के !

    ज़ज़्बात दिल के !
    मंजिल की तलाश में भागती इस महानगर के अनजानी राहो में मुझे मेरी कविता थाम लेती है , मुझे कुछ पल ठहर जी लेने का एहसास देती है ! मेरी कविता का जन्म ह्रदय की घनीभूत पीड़ा के क्षणों में ही होता है !! ..... किरण "मीतू" !!

    मेरे एहसास !!

    मेरे एहसास !!
    मेरे भीतर हो रहा है अंकुरण , उबल रहा है कुछ जो , निकल आना चाहता है बाहर , फोड़कर धरती का सीना , तैयार रहो तुम सब ..... मेरा विस्फोट कभी भी , तहस - नहस कर सकता है , तुम्हारे दमन के - नापाक इरादों को ---- किरण "मीतू" !!

    आर्तनाद !

    आर्तनाद !
    कभी-कभी जी करता है की भाग जाऊं मैं , इस खुबसूरत ,रंगीन , चंचल शहर से !! दो उदास आँखे .....निहारती रहती है बंद कमरे की उदास छत को ! . ..लेकिन भागुंगी भी कहाँ ? कौन है भला , जो इस सुन्दर सी पृथ्वी पर करता होगा मेरी प्रतीक्षा ? ..... किरण "मीतू" !!

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !
    प्रकृति की गोद में बिताये बचपन की मधुर स्मृतियाँ बार-बार मन को उसी ओर ले जाती है ! मानव जीवन में होने वाली हर बात मुझे प्रकृति से जुडी नज़र आती है तथा मैं मानव जीवन तथा प्रकृति में समीकरण बनाने का प्रयास करती हूँ !....किरण "मीतू

    कविता-मेरी संवेदना !!

    कविता-मेरी संवेदना !!
    वेदना की माटी से , पीड़ा के पानी से , संवेदनाओ की हवा से , आँसूवो के झरनों से ! कोमल मन को जब लगती है चोट , निकलता है कोई गीत , और बनती है कोई कविता !! ..... मीतू !!
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