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एक दिन हंस क्रुद्ध होकर कौवे से बोला , घायल प्राणी को सताना है भयंकर पाप , कौवा कसाई बनकर तन गया , बोला- मांस खाना है हमारा काम - चाहे जीव जिंदा हो या मुर्दा !! इतने में बहुत से कौवे इन्सान बन चिल्लाने लगे, हंस अकेला पड़ा, भाग कर जान बचाई, नीर छीर विवेक को भूल गया हंस , खतरनाक सच्चाई है - जंगल का कानून , हत्यारों के देश में हंस नहीं जी सकता है , कैसे बदले वो कानून जो बाधक हो उत्थान में , कर रहा है वो संघर्ष यही सच्चाई है , हंस और कौवे की यही लड़ाई है.......!! |
December 27, 2011 at 12:12 AM �
मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़शाँ है हयात
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाये तो तक़दीर निगूँ हो जाये
यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाये
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग
अनगिनत सदियों के तारीक बहिमाना तलिस्म
रेशम-ओ-अतलस-ओ-कमख़्वाब में बुनवाये हुये
जा-ब-जा बिकते हुये कूचा-ओ-बाज़ार में जिस्म
ख़ाक में लिथड़े हुये ख़ून में नहलाये हुये
जिस्म निकले हुये अमराज़ के तन्नूरों से
पीप बहती हुई गलते हुये नासूरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मग़र क्या कीजे
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग