8:31 PM
क्यों भरू अपने कलम में सिर्फ उतनी ही स्याही
जितनी तुम चाहो।
क्यों भरु अपने कैनवास में वही रंग
जिसे तुम सराहो।
क्यों दू अपनी जुबान को वही शब्द
जिन्हे सुनकर तुम प्रफुल्लित रहो |
हाँ मुझे भी आता है
कांटो पर चलना
अपने ज़ख्मो की स्याही से
अपने हथेलियों पर लकीरे बनाना।
अपनी दिशा और दशा तय करने का
सम्पूर्ण अधिकार है मुझे।
क्या समझ में नही आती इतनी सी भी बात तुम्हे
कि मैं नही हूँ मशीन कोई।
आग , हवा, पानी और मिट्टी
से बनाया है मैंने खुद को |
मुझमे भी प्राण है
जीने और जूझने का अदम्य साहस भी
और अपने रास्ते बनाने का विवेक भी।
अगर नही है इन सबसे इत्तेफाक तुम्हारा
तो दूर हटो मुझसे।
चलने दो मुझे
मेरे बनाये रास्ते पर।
अन्यथा
मेरे विरोध का हर स्वर
आहत करता रहेगा
तुम्हारे कच्चे घड़े-सा
थोथे स्वाभिमान को !
और फिर
तैयार रहना तुम
एक और धर्म-युद्ध के लिए। !!
फोटो और कविता -
किरण श्रीवास्तव Copyright ©
29/10/2014