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इबारत जाग जाती है ,किसी भूली कहानी की !
न देखो इस तरह से ,कांपती है सतह पानी की !! ज़हन में कौंधती हैं सुबहें , कई धोखे बताती हैं , कि बेबुनियाद बातें ,रात भर हमको सताती है ! हमें पहचान लेती है ,ढीठ खुशबु रात रानी की !! शज़र बूढी दवायों के ,किसे कब शाप देते हैं , हम अपना कद पहाड़ों पर,खड़े होकर ही नाप लेते हैं ! कहीं अलफ़ाज़, शीशा, ऋतु कहीं सदा बयानी की !! उछलते तेज झरनों में,कई खरगोश दिखते हैं , घनी परछाईयों में ,हम तुम्ही को धूप लिखते हैं.! बिखरती है कहाँ तस्वीर , बचपन की , जवानी की !! |
April 24, 2011 at 10:09 PM �
Nice ! Keep It Up !