एक  दिन इठलाती हुई ,
 एक   छोटी सी नदी के किनारो के साथ , 
बाहो में बाहें  डालकर चलते हुए , 
तुमने बड़े गर्व से पूछा ,
बताओ - नदी बड़ी है या सागर ??
हालाँकि समझ तो गई थी मैं तुम्हारा आशय 
चलती रही फिर भी ख़ामोशी से 
मैं साथ तुम्हारे !!

फिर से एक और दिन  
घास के लम्बे मैदान को पार करते हुए 
सर्दी की गुनगुनी धूप से लिपटते हुए 
मेरे आँखों में आँखे डालकर
बड़ी शरारत से तुमने पूछा 
बताओ - धरती बड़ी है या आकाश ??
मुस्कुरा देती हूँ सब समझकर !!


आखिर क्यों है 
तुम्हे खुद पर इतना संशय ,
सृष्टि के आदि से लेकर अब तक
बिना किसी प्रतिवाद के 
स्वीकारी है मैंने तुम्हारी श्रेष्ठता !

फिर भी तुम पूछते हो तो लो सुनो -
बड़ा तो सागर है 
किन्तु प्यास तो नदी ही बुझाती है !
हाँ बड़ा है ये विशाल  आकाश 
किन्तु आश्रय तो धरा ही देती है !!!!


किरण  श्रीवास्तव  Copyright ©
7:05 p.m. -- 14/11/2014



क्यों भरू अपने कलम में सिर्फ उतनी ही स्याही
जितनी तुम चाहो।
क्यों भरु अपने कैनवास में वही रंग
जिसे तुम सराहो।
क्यों दू अपनी जुबान को वही शब्द 

जिन्हे सुनकर तुम प्रफुल्लित रहो |


हाँ मुझे भी आता है
कांटो पर चलना
अपने ज़ख्मो की स्याही से
अपने हथेलियों पर लकीरे बनाना।
अपनी दिशा और दशा तय करने का
सम्पूर्ण अधिकार है मुझे।

क्या समझ में नही आती इतनी सी भी बात तुम्हे
कि मैं नही हूँ मशीन कोई।
आग , हवा, पानी और मिट्टी
से बनाया है मैंने खुद को |
मुझमे भी प्राण है
जीने और जूझने का अदम्य साहस भी
और अपने रास्ते बनाने का विवेक भी।

अगर नही है इन सबसे इत्तेफाक तुम्हारा
तो दूर हटो मुझसे।
चलने दो मुझे
मेरे बनाये रास्ते पर।

अन्यथा
मेरे विरोध का हर स्वर
आहत करता रहेगा
तुम्हारे कच्चे घड़े-सा
थोथे स्वाभिमान को !
और फिर
तैयार रहना तुम
एक और धर्म-युद्ध के लिए। !!

फोटो और कविता -
किरण श्रीवास्तव Copyright ©
29/10/2014

  • संवेदना

    क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!! ---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!

    अपने दायरे !!

    अपने दायरे !!
    कुछ वीरानियो के सिलसिले आये इस कदर की जो मेरा अज़ीज़ था ..... आज वही मुझसे दूर है ..... तल्ख़ हुए रिश्तो में ओढ़ ली है अब मैंने तन्हाइयां !! ......... किरण "मीतू" !!

    स्पंदन !!

    स्पंदन !!
    निष्ठुर हूँ , निश्चल हूँ मैं पर मृत नही हूँ ... प्राण हैं मुझमे ... अभी उठना है दौड़ना हैं मुझे ... अपाहिज आत्मा के सहारे ... जीना है एक जीवन ... जिसमे मरण हैं एक बार ... सिर्फ एक बार !! ..... किरण " मीतू" !!

    सतरंगी दुनिया !!

    सतरंगी दुनिया !!
    आस-पास , हास-परिहास , मैं रही फिर भी उदास ...आत्मा पर पड़ा उधार , उतारने का हुआ प्रयास ... खुश करने के और रहने के असफल रहे है सब प्रयास !! ..... किरण "मीतू" !!

    उलझन !!

    उलझन !!
    अकेले है इस जहां में , कहाँ जाए किधर जाए ! नही कोई जगह ऐसी की दिल के ज़ख्म भर जाए !! ... किरण "मीतू" !

    तलाश स्वयं की !!

    तलाश स्वयं की !!
    कुछ क्षण अंतर्मन में तूफ़ान उत्पन्न कर देते है और शब्दों में आकार पाने पर ही शांत होते है ! ..... मीतू !!

    ज़ज़्बात दिल के !

    ज़ज़्बात दिल के !
    मंजिल की तलाश में भागती इस महानगर के अनजानी राहो में मुझे मेरी कविता थाम लेती है , मुझे कुछ पल ठहर जी लेने का एहसास देती है ! मेरी कविता का जन्म ह्रदय की घनीभूत पीड़ा के क्षणों में ही होता है !! ..... किरण "मीतू" !!

    मेरे एहसास !!

    मेरे एहसास !!
    मेरे भीतर हो रहा है अंकुरण , उबल रहा है कुछ जो , निकल आना चाहता है बाहर , फोड़कर धरती का सीना , तैयार रहो तुम सब ..... मेरा विस्फोट कभी भी , तहस - नहस कर सकता है , तुम्हारे दमन के - नापाक इरादों को ---- किरण "मीतू" !!

    आर्तनाद !

    आर्तनाद !
    कभी-कभी जी करता है की भाग जाऊं मैं , इस खुबसूरत ,रंगीन , चंचल शहर से !! दो उदास आँखे .....निहारती रहती है बंद कमरे की उदास छत को ! . ..लेकिन भागुंगी भी कहाँ ? कौन है भला , जो इस सुन्दर सी पृथ्वी पर करता होगा मेरी प्रतीक्षा ? ..... किरण "मीतू" !!

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !
    प्रकृति की गोद में बिताये बचपन की मधुर स्मृतियाँ बार-बार मन को उसी ओर ले जाती है ! मानव जीवन में होने वाली हर बात मुझे प्रकृति से जुडी नज़र आती है तथा मैं मानव जीवन तथा प्रकृति में समीकरण बनाने का प्रयास करती हूँ !....किरण "मीतू

    कविता-मेरी संवेदना !!

    कविता-मेरी संवेदना !!
    वेदना की माटी से , पीड़ा के पानी से , संवेदनाओ की हवा से , आँसूवो के झरनों से ! कोमल मन को जब लगती है चोट , निकलता है कोई गीत , और बनती है कोई कविता !! ..... मीतू !!
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