4:59 PM

हर पल तुम्हारी यादें ..... तुम्हारी बातें ,
ज़ेहन में सिर्फ तुम ही तुम ......!!
सिर्फ इतने से है मशगले .... और कुछ ख़ास नही !!!!

किरण मीतु Copyright © 12:44 .. २८/४/२०१२

7:39 PM

कानो में पहुंचता उनका सुमधुर सन्देश,
दिल पर दस्तक देता कोई निर्निमेष ,
दिल को बहलाता .. मन को दौड़ाता ,
मुहब्बत का दिलाता एहसास ......

बढती जाती है  प्यार की गहरी प्यास ,
जगाती उनसे मिलन की आस ,
मिली है जबसे उनसे नज़र ,
है अपनी न कोई खबर ,
हसरतें हो गयी जवाँ ,
है कितना गजब का ये समां ....
एक अलग- सा जज्बात ,
कितना प्यारा है ये एहसास ....!!

_____ किरण मीतू Copyright © 21nov 2010

आज शाम को मौसम अचानक सुहाना हो गया ... ठंडी-ठंडी हवाओ के बीच हलकी-हलकी बूंदा-बाँदी खिंच ले गई मुझे झील के किनारे ! झील के जल की शीतल स्निग्धता मेरी पोर-पोर में ठंडक भरती रही ... लोगो को बोट पर सैर करते देखते हुए मेरा भी मन मचल उठा .... मैंने भी एक पैडल बोट लिया और खुद पैडल चलाती हुयी लहरों में छ्लात -छ्लात की आवाज़ उठाती रही ...! पानी की आवाजे ... मानो कोई शोर नही .. कोई मीठा-मीठा संगीत हो ! मैं पानी के बीच तैरती हुई समूचे आकाश में बादलो और घटाओ की आँख-मिचौली देखती रही ! मोहक प्रकृति का नज़ारा करते-करते ... मुझे तैरते -बहते शाम की सतरंगी आभा आसमान पर ही नही , मेरे अंग-अंग पोर-पोर में उतर आई !

मेरे अन्दर एक चाह -सी जाग उठी -- काश , यह बोट इसी तरह तैरती रहे ... मैं भी इसी तरह सैर करती रहूँ .... यह लहरे जिंदगी भर जलतरंगो से उत्पन्न संगीत के ताल पर झूला झुलाती रहे .... किसी किनारे या किसी गंतव्य पर न पहुंचे , बस , जिंदगी इसी तरह तैरती रहे !
मेरा यह भी मन हुआ की अचानक मेरे दो पंख निकल आये .... मैं समूचे आकाश में उडती फिरू .... उन रंगों के बिलकुल करीब पहुँच जाऊं ... और फिर धीरे -धीरे उन्ही रंगों में समा जाऊं !!!!!!
______________________ किरण मीतू  !!

  • संवेदना

    क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!! ---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!

    अपने दायरे !!

    अपने दायरे !!
    कुछ वीरानियो के सिलसिले आये इस कदर की जो मेरा अज़ीज़ था ..... आज वही मुझसे दूर है ..... तल्ख़ हुए रिश्तो में ओढ़ ली है अब मैंने तन्हाइयां !! ......... किरण "मीतू" !!

    स्पंदन !!

    स्पंदन !!
    निष्ठुर हूँ , निश्चल हूँ मैं पर मृत नही हूँ ... प्राण हैं मुझमे ... अभी उठना है दौड़ना हैं मुझे ... अपाहिज आत्मा के सहारे ... जीना है एक जीवन ... जिसमे मरण हैं एक बार ... सिर्फ एक बार !! ..... किरण " मीतू" !!

    सतरंगी दुनिया !!

    सतरंगी दुनिया !!
    आस-पास , हास-परिहास , मैं रही फिर भी उदास ...आत्मा पर पड़ा उधार , उतारने का हुआ प्रयास ... खुश करने के और रहने के असफल रहे है सब प्रयास !! ..... किरण "मीतू" !!

    उलझन !!

    उलझन !!
    अकेले है इस जहां में , कहाँ जाए किधर जाए ! नही कोई जगह ऐसी की दिल के ज़ख्म भर जाए !! ... किरण "मीतू" !

    तलाश स्वयं की !!

    तलाश स्वयं की !!
    कुछ क्षण अंतर्मन में तूफ़ान उत्पन्न कर देते है और शब्दों में आकार पाने पर ही शांत होते है ! ..... मीतू !!

    ज़ज़्बात दिल के !

    ज़ज़्बात दिल के !
    मंजिल की तलाश में भागती इस महानगर के अनजानी राहो में मुझे मेरी कविता थाम लेती है , मुझे कुछ पल ठहर जी लेने का एहसास देती है ! मेरी कविता का जन्म ह्रदय की घनीभूत पीड़ा के क्षणों में ही होता है !! ..... किरण "मीतू" !!

    मेरे एहसास !!

    मेरे एहसास !!
    मेरे भीतर हो रहा है अंकुरण , उबल रहा है कुछ जो , निकल आना चाहता है बाहर , फोड़कर धरती का सीना , तैयार रहो तुम सब ..... मेरा विस्फोट कभी भी , तहस - नहस कर सकता है , तुम्हारे दमन के - नापाक इरादों को ---- किरण "मीतू" !!

    आर्तनाद !

    आर्तनाद !
    कभी-कभी जी करता है की भाग जाऊं मैं , इस खुबसूरत ,रंगीन , चंचल शहर से !! दो उदास आँखे .....निहारती रहती है बंद कमरे की उदास छत को ! . ..लेकिन भागुंगी भी कहाँ ? कौन है भला , जो इस सुन्दर सी पृथ्वी पर करता होगा मेरी प्रतीक्षा ? ..... किरण "मीतू" !!

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !
    प्रकृति की गोद में बिताये बचपन की मधुर स्मृतियाँ बार-बार मन को उसी ओर ले जाती है ! मानव जीवन में होने वाली हर बात मुझे प्रकृति से जुडी नज़र आती है तथा मैं मानव जीवन तथा प्रकृति में समीकरण बनाने का प्रयास करती हूँ !....किरण "मीतू

    कविता-मेरी संवेदना !!

    कविता-मेरी संवेदना !!
    वेदना की माटी से , पीड़ा के पानी से , संवेदनाओ की हवा से , आँसूवो के झरनों से ! कोमल मन को जब लगती है चोट , निकलता है कोई गीत , और बनती है कोई कविता !! ..... मीतू !!
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