12:48 AM
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जब मैंने जन्म लिया ,
तब से ही मैंने शुरू किया , प्रहार झेलना , पुरुषों के बनाये हुए नियमों की, बंदिशों से मैं लहू लुहान हुई , किन्तु मरी नहीं , क्योंकि मैं एक स्त्री हूँ ,........ इसलिए मैं जिन्दा हूँ , मैं जिस रास्ते से होकर चलती हूँ. उस पर कांटे बिछे हुए हैं , मैं अपनी रफ़्तार कितनी भी तेज करुँगी , मेरे अतीत में वे उतने ही ज़ख्म डालेंगे , मुझे मेरी सीमित बातचीत , सीमित राह, सीमित इच्छायों , और सीमित सपनों के बारे में , सम्यक ज्ञान दिया जायेगा , मुझे मजबूर किया जायेगा , दुर्बल, कोमल, भीरु और लाजबन्ती होने के लिए , फिर वो मुझे अबला का नाम देंगे , फिर भी वो मुझे रोक नहीं पाएंगे , न ही पूर्ण कर पाएंगे वो अपना नरमेघ यज्ञ , क्योंकि मैं चिरंजीवी हूँ , और जब मैं इस दुनियां में आयी थी , तभी मैंने प्रण कर लिया था , नहीं पूरी करनी देनी है , मुझे मंशा उनकी और , उन्हीं के दायरे में ही मुझे रहकर , आगे और उनसे कहीं आगे बढ़कर दिखाना है , |
June 30, 2010 at 1:17 AM �
Adarniye Meetu Ji
Aap ke lekh aur kavita par kar lagta to nahi hai ki aap stri hain aap to sakhat Javlamukhi ki tarah hain.
Sadar.....
March 21, 2012 at 11:06 AM �
सुन्दर रचना है ।