How mellifluous was the word you just said
It reached the secret chamber of my heart ..
Like sweetness of honey poured into the ear
Such was the charm kissed my soul O dear ..
Feel and I breathe your eternal love in my veins
Making my soul dance in blissful waves of time..
How pleasing and how sweet is unique feeling
All I feel it sparkles waves of splendid rejoicing ..
I am drenched in the sweetness of hilarity
You overwhelmed me with word of serenity ..
My mind is floating to understand all you said
How mellifluous was the word you just said....♥

____ kiran srivastava ... Copyright © ... 19 pm ....24:5:2012
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हिंदी में अनुवाद --->

कैसा मधुर कैसा मदिर है ये आपका सन्देश
छू कर अंतरतम को कर दिया मुझे मदहोश

कानों में लगे शहद की मिठास घोली है
मोहकता ऐसी आत्मा को इसने चूमी है

दौड़ने लगी हो जैसे रगों में तेरे ही शाश्वत प्रेम की सांस
समय के आह्लादकारी लहरों पर नाचे आत्मा की आस

कैसा आनंददायी है यह अप्रतिम अहसास
फूट निकली हैं हर्ष की चिंगारियां पासपास

उल्लास की मधुरिमा में सराबोर हो चुकी हूँ
असीम शांतिमयी सन्देश में डूब ही चुकी हूँ

मन-पंछी ने उड़ान ली है समझकर सन्देश
कैसा मधुर कैसा मदिर है ये आपका सन्देश ♥

आज शाम ७:४५ की बात है .... मैं अपने बाईक पर मार्केट से घर आ रही थी .... सड़क पर लाईट होते हुए भी कुछ अन्धेरा -सा दिख रहा था ! मैंने देखा एक लड़का जो की १९-२० वर्ष का रहा होगा वो सभी गाडियों को लिफ्ट के लिए रोक रहा था किन्तु गाडिया उसकी और ध्यान न देते हुए अपनी स्पीड में आगे बढ़ जाती थी ! उसने मेरी भी बाईक को देख कर लिफ्ट के लिए अपना हाथ आगे बढाया किन्तु लड़की देखकर उसने अपने बढे हुए हाथ को संकोच से पीछे कर लिया ! लड़के न तो आम तौर पर किसी से लिफ्ट मांगते है और न ही उन्हें कोई लिफ्ट देता है , फिर यह क्यों ??
कुछ ही दूर चौराहे पर रेड लाईट हो रखी थी ..... मैंने अपनी बाईक रोकी , पीछे मुड़कर देखा .... वह लड़का बड़े ही धीमे-धीमे कदमो से आगे चलता हुआ उम्मीदों से सभी की ओर अपने हाथ बढ़ा रहा था ..... और ध्यान से देखा मैंने उसके सर पर पट्टी बंधी हुई थी .... कदमो में थकावट या दर्द था , चेहरे पर परेशानी स्पष्ट झलक रही थी !
'' यह लड़का तो अभी ग्रेजुएशन में होना चाहिए .... बीए / बी कॉम वालो के तो अभी एक्जाम चल रहे है .... इस समय जाने कैसे चोट लगी होगी इस बिचारे को .... रिक्शे से भी तो जा सकता है ..... क्या पता इसके पास पैसे न हो " ! जाने कितने सवाल ज़ेहन में उठ रहे थे ... उसने भी मुझे रुके हुए अपनी तरफ देखते हुए देख लिया था ! वह संकोच से धीरे-धीरे चलता हुआ मेरे पास आया ... मैंने उससे कुछ भी नही कहा लेकिन उसने मेरी खामोश स्वीकृति को समझा और धीरे से बाईक पर बैठ गया !

"कहाँ जाना है ?"
"**** कोलेज के हास्टल "
(उफ़, माँ -पिताजी से दूर रहता है, एक्जाम भी चल रहे होंगे.. ऊपर से चोट भी )
"मुझे रास्ता नही मालूम .... बता देना !"
"रेड लाईट से राईट फिर आगे जाकर लेफ्ट "!
"अभी तो एक्जाम चल रहे होंगे ?"
"जी "
"इस समय अपना ख़याल रखना चाहिए था न .... ये चोट कैसे लगा ली ?"
"जी , मैं फुटपाथ पर जा रहा था ... तभी एक कार वाले ने अचानक अपना दरवाजा खोला और मेरे मेरे सर पर ये चोट लगी " !
"क्या करते हो ?"
"बोटनी ओनर्स ... 2yr .. "
"नाम ?"
"मिरज़ा "

थोड़ी ही देर में उसका होस्टल आ गया ... वहाँ काफी लड़के खड़े थे ...... उसने उतर कर मेरी और कृतज्ञता से देखते हुए धन्यवाद कहा .... मैंने ज़ा हेलमेट लगा रखी थी, मैंने अपना हेलमेट उतारा नही .... और चुपचाप अपनी बाईक आगे बढ़ा ली .... !!


__ किरण श्रीवास्तव '' मीतू'' Copyright © .. 13-5-2012 .. 9 :22 pm
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फोटो मेरे कैमरे से ...:)

8:25 PM

खो  दिया  हमने एक दूजे को,
अपनी-अपनी इगो के लिए ... !
वैसे तो यूँ भी थी
हमारी-तुम्हारी मंजिले अलग-अलग.. !

चलो यह भी अच्छा ही हुआ -
कि तुम अब याद तो करोगे ही मुझे ..
मुहब्बत से न सही ,
नफरत से ही सही !!!!!

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किरण ...Copyright © २० १५  .. ११ /५ /२०१२

न ही तुम कभी ऊपर उठे ,
न ही कभी मैं झुकी !
और ...
यूँ ही अधूरी रह गई ,
एक क्षितिज की कल्पना !!!

किरण ...Copyright © २१:५४ .. 10/5/2012

  • संवेदना

    क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!! ---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!

    अपने दायरे !!

    अपने दायरे !!
    कुछ वीरानियो के सिलसिले आये इस कदर की जो मेरा अज़ीज़ था ..... आज वही मुझसे दूर है ..... तल्ख़ हुए रिश्तो में ओढ़ ली है अब मैंने तन्हाइयां !! ......... किरण "मीतू" !!

    स्पंदन !!

    स्पंदन !!
    निष्ठुर हूँ , निश्चल हूँ मैं पर मृत नही हूँ ... प्राण हैं मुझमे ... अभी उठना है दौड़ना हैं मुझे ... अपाहिज आत्मा के सहारे ... जीना है एक जीवन ... जिसमे मरण हैं एक बार ... सिर्फ एक बार !! ..... किरण " मीतू" !!

    सतरंगी दुनिया !!

    सतरंगी दुनिया !!
    आस-पास , हास-परिहास , मैं रही फिर भी उदास ...आत्मा पर पड़ा उधार , उतारने का हुआ प्रयास ... खुश करने के और रहने के असफल रहे है सब प्रयास !! ..... किरण "मीतू" !!

    उलझन !!

    उलझन !!
    अकेले है इस जहां में , कहाँ जाए किधर जाए ! नही कोई जगह ऐसी की दिल के ज़ख्म भर जाए !! ... किरण "मीतू" !

    तलाश स्वयं की !!

    तलाश स्वयं की !!
    कुछ क्षण अंतर्मन में तूफ़ान उत्पन्न कर देते है और शब्दों में आकार पाने पर ही शांत होते है ! ..... मीतू !!

    ज़ज़्बात दिल के !

    ज़ज़्बात दिल के !
    मंजिल की तलाश में भागती इस महानगर के अनजानी राहो में मुझे मेरी कविता थाम लेती है , मुझे कुछ पल ठहर जी लेने का एहसास देती है ! मेरी कविता का जन्म ह्रदय की घनीभूत पीड़ा के क्षणों में ही होता है !! ..... किरण "मीतू" !!

    मेरे एहसास !!

    मेरे एहसास !!
    मेरे भीतर हो रहा है अंकुरण , उबल रहा है कुछ जो , निकल आना चाहता है बाहर , फोड़कर धरती का सीना , तैयार रहो तुम सब ..... मेरा विस्फोट कभी भी , तहस - नहस कर सकता है , तुम्हारे दमन के - नापाक इरादों को ---- किरण "मीतू" !!

    आर्तनाद !

    आर्तनाद !
    कभी-कभी जी करता है की भाग जाऊं मैं , इस खुबसूरत ,रंगीन , चंचल शहर से !! दो उदास आँखे .....निहारती रहती है बंद कमरे की उदास छत को ! . ..लेकिन भागुंगी भी कहाँ ? कौन है भला , जो इस सुन्दर सी पृथ्वी पर करता होगा मेरी प्रतीक्षा ? ..... किरण "मीतू" !!

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !
    प्रकृति की गोद में बिताये बचपन की मधुर स्मृतियाँ बार-बार मन को उसी ओर ले जाती है ! मानव जीवन में होने वाली हर बात मुझे प्रकृति से जुडी नज़र आती है तथा मैं मानव जीवन तथा प्रकृति में समीकरण बनाने का प्रयास करती हूँ !....किरण "मीतू

    कविता-मेरी संवेदना !!

    कविता-मेरी संवेदना !!
    वेदना की माटी से , पीड़ा के पानी से , संवेदनाओ की हवा से , आँसूवो के झरनों से ! कोमल मन को जब लगती है चोट , निकलता है कोई गीत , और बनती है कोई कविता !! ..... मीतू !!
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