हवाओं में ये कैसी सिहरन,
धरती से उठी कैसी भीनी सुगंध !
फिज़ाओं में ये कैसा जादू ,
मन में उमड़ने लगे है ज़ज्बात !
शुष्क धरती के होठों की प्यास बुझाती,
मौषम की ये पहली बरसात !.........


पहली बारिश के मधुर नाद में,
आर्द्र हों उठा है मन !
हृदय वीणा के मौनबद्ध तार को ,
झनझना देते हैं बार - बार !
हवाएं सरगोशी से कुछ कहने सी लगी है ,

ये कैसा नशा है.... कैसा है ये जादू !.....
क्यों धड़कता दिल, हो रहा है बेकाबू !
सांसे थाम कर बैठे हैं हम ,
ये दिल थामकर बैठे हैं हम!
अब तो कह दो, ..कह दो ...
क्यों हों तुम ऐसे,
कि तुम्हे सजदा करने को बैठे है हम ...!!

6 Responses to "पहली बरसात"

  1. KAILASH CHAND CHAUHAN Says:

    बहुत खूब मीतू जी, कविता तो लाजवाब है ही, ब्लोग का कलेवर भी आकर्षक है.
    सांसे थाम कर बैठे हैं हम ,
    ये दिल थामकर बैठे हैं हम!
    अब तो कह दो, ..कह दो ...
    क्यों हों तुम ऐसे,
    कि तुम्हे सजदा करने को बैठे है हम ...!!
    बहुत ही खूब कहा आपने, अति सुन्दर रचना.
    -कैलाश चंद चौहान

  2. amrendra "amar" Says:

    Meetu ji sunder prastuti ke liye bahut bahut badhai ......
    rachna ke bhav man ko chu gaye .....

  3. a k mishra Says:

    वाह...बहुत ही सुन्दर.....सच है,बारिश का ख्याल भी मन को हर्षित कर जाता है....और जब सच में बारिश आ जाये तो दिल मचलता ही है..अम्बर पर घटाओं का छाना ...गर्मी से राहत...सावन के झूले ..खेतों की हरियाली...इन बातों से मनमयूर नाच उठता है....अतिशय सुन्दर चित्रण ..मधुर भाव और आह्लादकारी संवेदना से भरी है आपकी यह रचना......बिलकुल सही अभिव्यक्ति ..उमरते घुमरते बादल जब आकाश में रंगबिरंगी छटा बिखेर जाते हैं तो गोरियों के ह्रदय में हलचल मच ही जाती है...
    पहली बारिश के मधुर नाद में,
    आर्द्र हों उठा है मन !
    हृदय वीणा के मौनबद्ध तार को ,
    झनझना देते हैं बार - बार !
    हवाएं सरगोशी से कुछ कहने सी लगी है ,
    अतिशय हृदयस्पर्शी भाव ..दिल को स्पंदित करनेवाली अभिकल्पना ...अतिशय मुग्धकारी...
    ये कैसा नशा है.... कैसा है ये जादू !.....
    क्यों धड़कता दिल, हो रहा है बेकाबू !
    सांसे थाम कर बैठे हैं हम ,
    ये दिल थामकर बैठे हैं हम!
    अब तो कह दो, ..कह दो ....कह दो ना ...
    क्यों हों तुम ऐसे,
    कि तुम्हे सजदा करने को बैठे है हम ...!!
    ऐसा लगता है जैसे...
    प्रकृति के संग आपकी संवेदना की तारतम्यता से उपजी नई उमंग...हृदयसागर में उठ रही कोमल भावनाओं की तरंग....बह निकली हो जैसे बनके भावों की सरिता...अठखेलियाँ करती हो जैसे नंदन कानन में कोई वनिता...:)

  4. hariyanaabtak.com Says:

    meetu ji bahut acchha likhti hai aap me toh aaj se hi aapka fan ho gaya
    chander shekhar

  5. hariyanaabtak.com Says:

    meetu ji bahut badhiya likhti hai aap sach me aapki lekhni me dam hai

    chander shekhar

  6. Unknown Says:

    very nice meetu ji

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  • संवेदना

    क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!! ---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!

    अपने दायरे !!

    अपने दायरे !!
    कुछ वीरानियो के सिलसिले आये इस कदर की जो मेरा अज़ीज़ था ..... आज वही मुझसे दूर है ..... तल्ख़ हुए रिश्तो में ओढ़ ली है अब मैंने तन्हाइयां !! ......... किरण "मीतू" !!

    स्पंदन !!

    स्पंदन !!
    निष्ठुर हूँ , निश्चल हूँ मैं पर मृत नही हूँ ... प्राण हैं मुझमे ... अभी उठना है दौड़ना हैं मुझे ... अपाहिज आत्मा के सहारे ... जीना है एक जीवन ... जिसमे मरण हैं एक बार ... सिर्फ एक बार !! ..... किरण " मीतू" !!

    सतरंगी दुनिया !!

    सतरंगी दुनिया !!
    आस-पास , हास-परिहास , मैं रही फिर भी उदास ...आत्मा पर पड़ा उधार , उतारने का हुआ प्रयास ... खुश करने के और रहने के असफल रहे है सब प्रयास !! ..... किरण "मीतू" !!

    उलझन !!

    उलझन !!
    अकेले है इस जहां में , कहाँ जाए किधर जाए ! नही कोई जगह ऐसी की दिल के ज़ख्म भर जाए !! ... किरण "मीतू" !

    तलाश स्वयं की !!

    तलाश स्वयं की !!
    कुछ क्षण अंतर्मन में तूफ़ान उत्पन्न कर देते है और शब्दों में आकार पाने पर ही शांत होते है ! ..... मीतू !!

    ज़ज़्बात दिल के !

    ज़ज़्बात दिल के !
    मंजिल की तलाश में भागती इस महानगर के अनजानी राहो में मुझे मेरी कविता थाम लेती है , मुझे कुछ पल ठहर जी लेने का एहसास देती है ! मेरी कविता का जन्म ह्रदय की घनीभूत पीड़ा के क्षणों में ही होता है !! ..... किरण "मीतू" !!

    मेरे एहसास !!

    मेरे एहसास !!
    मेरे भीतर हो रहा है अंकुरण , उबल रहा है कुछ जो , निकल आना चाहता है बाहर , फोड़कर धरती का सीना , तैयार रहो तुम सब ..... मेरा विस्फोट कभी भी , तहस - नहस कर सकता है , तुम्हारे दमन के - नापाक इरादों को ---- किरण "मीतू" !!

    आर्तनाद !

    आर्तनाद !
    कभी-कभी जी करता है की भाग जाऊं मैं , इस खुबसूरत ,रंगीन , चंचल शहर से !! दो उदास आँखे .....निहारती रहती है बंद कमरे की उदास छत को ! . ..लेकिन भागुंगी भी कहाँ ? कौन है भला , जो इस सुन्दर सी पृथ्वी पर करता होगा मेरी प्रतीक्षा ? ..... किरण "मीतू" !!

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !
    प्रकृति की गोद में बिताये बचपन की मधुर स्मृतियाँ बार-बार मन को उसी ओर ले जाती है ! मानव जीवन में होने वाली हर बात मुझे प्रकृति से जुडी नज़र आती है तथा मैं मानव जीवन तथा प्रकृति में समीकरण बनाने का प्रयास करती हूँ !....किरण "मीतू

    कविता-मेरी संवेदना !!

    कविता-मेरी संवेदना !!
    वेदना की माटी से , पीड़ा के पानी से , संवेदनाओ की हवा से , आँसूवो के झरनों से ! कोमल मन को जब लगती है चोट , निकलता है कोई गीत , और बनती है कोई कविता !! ..... मीतू !!
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