व्यथित मन के उद्गार प्रश्न जगाते हैं ,
अन्दर ही अन्दर सुसुप्त चेतना को पंख लगाते हैं ....


मन से उड़ गए सारे भाव विचार ,
देखी जब भी सुन्दर सी नार- कचनार ,
पतझड़ के मौसम में भी श्रृंगार होता है ,
हर कन्या को देखते ही दीवाना दिल बार - बार होता है !


ह्रदय में मचती है कुलबुली,
जब घर में आती है कोई चुलबुली ,
तन में उठती है मीठी सिरहन, हों जाता है धन्य तदन !
अरमान भरे दिल को बड़ा दुखाती है ,
जब कन्या कोई अंकल कहकर मुझे बुलाती है ,
मन बड़ा तनावग्रस्त हों जाता है ,
भाव सारा अभावग्रस्त हों जाता है !
फिर भी कोई बात नहीं......
अपनी उच्छृँखलता को अपने गाम्भीर्य के भाव मे बांधकर ,
बेटी कहकर गले लगाता हूँ,
पीठ पर हाथ फेर कर स्वर्ग सुख का आनंद उठाता हूँ !


मैं पुरुष हूँ , पंछी उमुक्त गगन का ,
जिंदगी भर से यही करता आया हूँ ,
अब अधेड़ हों गया तो क्या ?
क्यों रखूं अपनी आकांक्षाओं पर नियंत्रण ?
क्यों मानू खुद को शादी शुदा ?
है नहीं मुझ पर कहीं कोई ठप्पा ?
बालो मे कालिख , चेहरे पर खड़िया ।
मुँह में 32 की जगह 26 दांत हैं ,
उम्र भले ही 55 साल है ,
मगर दिल तो उमंगो से मालामाल है !!


1 Response to "दिलफेँक - अधेड़"

  1. Unknown Says:

    मीतु जी प्रणाम,

    वाह भई वाह , मानना पडेगा , आपने तो कोरी सच्चाई सामने रख दी है , एक ऐसा कटाक्ष जो एक बार सभी को सोचने पे मजबुर कर दे ।
    वाकई ऐसी चीजे कई जगह पे देखने को मिलते है और ऐसे वाकये लगभग हर न्युज पेपरो मे अकसर पढने को मिल जाते है ।

    आपने बखुबी से उस वाहियात , वहसियाना उमंग को इस रचना मे उतार दिया है साथ साथ मे एक बहुत ही स्पष्ट शब्दो मे सपाट सन्देश है ऐसे लोगो के लिये कि सुधर जाओ ।

    आपकी हिम्मात की दाद देनी पडेगी , बहुत ही साहस का परिचय देकरा अबला को शक्ति देने का आपने बेहतरीन प्रयास किया है ।

    धन्यवाद और शुभकामनाये ।

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  • संवेदना

    क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!! ---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!

    अपने दायरे !!

    अपने दायरे !!
    कुछ वीरानियो के सिलसिले आये इस कदर की जो मेरा अज़ीज़ था ..... आज वही मुझसे दूर है ..... तल्ख़ हुए रिश्तो में ओढ़ ली है अब मैंने तन्हाइयां !! ......... किरण "मीतू" !!

    स्पंदन !!

    स्पंदन !!
    निष्ठुर हूँ , निश्चल हूँ मैं पर मृत नही हूँ ... प्राण हैं मुझमे ... अभी उठना है दौड़ना हैं मुझे ... अपाहिज आत्मा के सहारे ... जीना है एक जीवन ... जिसमे मरण हैं एक बार ... सिर्फ एक बार !! ..... किरण " मीतू" !!

    सतरंगी दुनिया !!

    सतरंगी दुनिया !!
    आस-पास , हास-परिहास , मैं रही फिर भी उदास ...आत्मा पर पड़ा उधार , उतारने का हुआ प्रयास ... खुश करने के और रहने के असफल रहे है सब प्रयास !! ..... किरण "मीतू" !!

    उलझन !!

    उलझन !!
    अकेले है इस जहां में , कहाँ जाए किधर जाए ! नही कोई जगह ऐसी की दिल के ज़ख्म भर जाए !! ... किरण "मीतू" !

    तलाश स्वयं की !!

    तलाश स्वयं की !!
    कुछ क्षण अंतर्मन में तूफ़ान उत्पन्न कर देते है और शब्दों में आकार पाने पर ही शांत होते है ! ..... मीतू !!

    ज़ज़्बात दिल के !

    ज़ज़्बात दिल के !
    मंजिल की तलाश में भागती इस महानगर के अनजानी राहो में मुझे मेरी कविता थाम लेती है , मुझे कुछ पल ठहर जी लेने का एहसास देती है ! मेरी कविता का जन्म ह्रदय की घनीभूत पीड़ा के क्षणों में ही होता है !! ..... किरण "मीतू" !!

    मेरे एहसास !!

    मेरे एहसास !!
    मेरे भीतर हो रहा है अंकुरण , उबल रहा है कुछ जो , निकल आना चाहता है बाहर , फोड़कर धरती का सीना , तैयार रहो तुम सब ..... मेरा विस्फोट कभी भी , तहस - नहस कर सकता है , तुम्हारे दमन के - नापाक इरादों को ---- किरण "मीतू" !!

    आर्तनाद !

    आर्तनाद !
    कभी-कभी जी करता है की भाग जाऊं मैं , इस खुबसूरत ,रंगीन , चंचल शहर से !! दो उदास आँखे .....निहारती रहती है बंद कमरे की उदास छत को ! . ..लेकिन भागुंगी भी कहाँ ? कौन है भला , जो इस सुन्दर सी पृथ्वी पर करता होगा मेरी प्रतीक्षा ? ..... किरण "मीतू" !!

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !
    प्रकृति की गोद में बिताये बचपन की मधुर स्मृतियाँ बार-बार मन को उसी ओर ले जाती है ! मानव जीवन में होने वाली हर बात मुझे प्रकृति से जुडी नज़र आती है तथा मैं मानव जीवन तथा प्रकृति में समीकरण बनाने का प्रयास करती हूँ !....किरण "मीतू

    कविता-मेरी संवेदना !!

    कविता-मेरी संवेदना !!
    वेदना की माटी से , पीड़ा के पानी से , संवेदनाओ की हवा से , आँसूवो के झरनों से ! कोमल मन को जब लगती है चोट , निकलता है कोई गीत , और बनती है कोई कविता !! ..... मीतू !!
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