चन्द्रवदनी , मृगनयनी , मनमोहिनी! जब से आई घर में , आँखों में आ गयी रौशनी !! अपने करकमलो को आराम दिया कर ! बेटी से भी कुछ करवाया कर !! बड़े बेटे से तू बच के रहना ! मान ले बात मेरी सुनयना !! न किया कर तू ताक झांक इधर -उधर ! पहनाऊंगा तुझको मै नित नए जेवर !! क्या कमी है बता मुझमे .! क्यूँ तके है यूँ दूजे घर में !! ओ मेरी चन्द्र चकोरी ! मान ले तू बात ये मोरी ... होठों में लाली लगाकर , मुहल्ले में न निकला कर ! यहाँ के छोरे बड़े छिछोरे , भर देंगे कान वो तेरे ! कोई तुझे बहकायेगा , मेरे घर से उड़ा ले जायेगा !! तू मेरे आँगन की चिडकुली जब तू हँसे , हँसे हर फूल कली !!
मै लम्बोदरम् महाकायम् ! उम्र भी मेरी पञ्चदशम् !! सराबोर मै महकऊवा इत्तर से , पहन के आँखों में लालटेन , लगाके बालो में कालिख, करके चेहरे पर चुनाकली , ओ मेरी चन्द्रकली , मै अभी भी हूँ महाबली !!!!!!!!!!!!!
(मेरे मुहल्ले में एक लगभग ५० वर्षीय विधुर अंकल जी ने जो की ३ जवान बच्चो के पिता भी है ने अभी २४ वर्षीया कन्या से शादी की है ! और अब वो अपना सारा काम धाम छोड़ कर वो घर में ही रहते है , और बड़े खुश भी रहते है ! आज शाम .... मै थी अपने छत पर, वो बैठे थे अपने लॉन में उनको देख कर ये कविता आई मेरे ध्यान में....) |
July 16, 2010 at 2:46 AM �
मीतु जी प्रणाम
पहले तो आपको बधाई की आपने एक ऐसे मुद्दे पे लेख लिखा है जिसपे लिखने के लिये हिम्मत और अंतरात्मा का निर्मल होना जरुरी है । और वो बिल्कुल साफ साफ आपकी इस रचना मे दिखाई दे रहा है ।
इस निर्मल और सही प्रयास के लिये आपको बधाई ।
कविता ध्यान मे आपके जरुर आई लेकिन कही आपको उस लडकी वेदना कलम उठाने पे या कम्युटर के की बोर्ड पे अंगुली बिखेरने के लिये मजबुर कर दिया ।
हो सकता है किसी के लिये यह मजाक होगा या कोई यह कह के निकल जायेगा कि अरे जनाब " दिल तो बच्चा है जी " लेकिन क्या वो उस लडकी की वेदना , कष्ट को महसुस कर सकता है जो पता नही किन परिस्थितियो मे यह बेढंग शादी करने को मजबुर हो गई ।
बहुत ही खुबसुरती से आपने उस वेदना को अपनी अंगुलियो से उकेरा है और इसके लिये आपको कोटिशः धन्यवाद ।
शायद आपका यह प्रयास कुछ सकारात्मक बदलाव हमारे समाज मे ले आ सके ।
धन्यवाद ।
January 8, 2011 at 11:49 AM �
bahut khoobsoorat....but i kindof agree with Navin...
January 8, 2011 at 12:52 PM �
इस निर्मल और सही प्रयास के लिये आपको बधाई ।