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परिंदा, पिंजरे के अन्दर, चारो तरफ गोल-गोल चक्कर लगाया, उड़ने के लिए पंख फडफडाये- अफ़सोस उड़ न सका..... मै साक्षी थी उसकी बेबसी, लाचारी, क्रोध और झल्लाहट की, समय के साथ वह भूलता गया पंख फडफडाना, समझौता कर लिया था उसने परिस्तिथियों से- भूल गया .. वह परिंदा है उन्मुक्त गगन का .. हम दोनों में एक ही समता थी ... परिस्तिथियों से सझौता कर लेने की... और अपने सामर्थ्य को भूल जाने की........!! |
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