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सड़क किनारे , खुले आकाश के नीचे , सिसकता है एक नागफनी . रोज़ मातम मनाता है , सिर उठाकर पूंछता है आकाश से , मैंने कौन सा पाप किया है ? जिससे मुझे निकल दिया है , फूलों के बाग़ से , क्या मैं कुरूप हूँ ? या मेरे कांटे चुभते हैं सबके दिल में ? अगर " कांटे " मेरे निर्वासन का कारण हैं , तो निकल दो "गुलाब " को भी , फूलों के बाग़ से |
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