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किसे कहूँ दोस्त ? तुम्हे , उनको या खुद को . उलझन ही रही सब कुछ , शायद जिन्दगी .शायद तुम .शायद मै ..... किसे समझू -- तुम्हे या खुद को ? किसे पढू -- तुम्हे या खुद को ? शायद नादान हूँ मै.... रहने दो न नादान मुझे क्या होगा पहचान कर हर चेहरों को ? हर चेहरे में आईना ही तो दिखता है ... जाना-पहचाना सा. क्या कोई रिश्ता फांसी के फंदे से कम होता है ? दम घुटते हुए रोज़ मरते है हम इन्ही रिश्तो में . फिर भी रिश्तो को हलकी सी ठेस में तोड़ कर , आगे बढ़ जाते है नए रिश्तो की तलाश में ... जाने दो , मत बताओ मुझे --रिश्तो का दर्शन .... बहुत चुभे है ये टूटे हुए कांच के किरचो की तरह ........ नही नही अब नही , कुछ नही ! बस यूँ हीं ! कविता एवं फोटोग्राफी --मीतू . दिनांक ०४१०२०१० रात्रि ११:२५ . |
October 5, 2010 at 11:19 AM �
bhaavpurn...maarmik v saundar kavita...subhkaamanaaye.
November 21, 2010 at 8:02 PM �
Aina Bahut Sunder marmik atyant bhavpurn Rachana....Bahut Sunder Meetu ji.
Dhananajay Mishra
November 24, 2010 at 2:45 PM �
Bahut sundar MEETU
KISE KAHU AAPNA.....