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शायद यह भी दोस्त का एक रूप होता है , जब चाहते है उसे अपने नजदीक , तभी वह दूर होता है ! कभी बहाना समय का , कभी बहाना विचारो का , तो कभी बीमारी का , खुद में उलझना रिश्तो को बचाते हुए ! जब जरुरत हो छाँव की तभी वह धूप होता है ! फिर भी वह हमें अज़ीज़ है बहुत ! क्युकी वह हमारा ही प्रतिरूप होता हैं !! ( अपने एक अज़ीज़ मित्र को समर्पित ) |
November 16, 2010 at 7:57 PM �
बहुत भावयुक्त कविता...
लेकिन क्या सचमुच ऐसा होता है..
वह साथी अपेक्षा पर खरा नहीं उतर पाता है या कि हमारी अपेक्षाएं ही ज्यादा हो जाती हैं..
January 30, 2011 at 8:52 PM �
i am fan of urs..
i love writing..