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मैं अब भी इसी आशा में हूँ, कि तुम कुछ तो कहोगे! बात आधे रास्ते में छोड़कर, तुम चुप तो नहीं रहोगे ! मुझे तो अभी बहुत कुछ जानना है, आकाश का विस्तार नापना है! सागर की गहराई थाहनी है, और मरने से पहले खुद को भी पहचानना है! जीवन के थपेड़े तो बहुत खाए, मगर मंसूबे अभी भी मरे नहीं है! पेड़ के सभी पत्ते गरचे हरे नहीं हैं, मगर डाली में रस है! और रस की यह धारा है, जो कैद से छूटना चाहती है! टहनी के भीतर भी अजब सी बेचैनी है, शायद कोई कोँपल फूटना चाहती है! कविता एवं फोटोग्राफी ... मीतू ! |
October 5, 2010 at 8:01 AM �
good morning.. SUNDER SANVEDANSHIL PUKAR ZINDAGI KE LIYE. BAHUT ACHCHi kavita KIRAN:)
October 5, 2010 at 11:23 AM �
tahani ke bhitar bhi ajab see vaicheni hai...vaah laajavaab.
July 31, 2011 at 8:14 PM �
तेरे प्यार में मैं खुद को मिटाती चली गई।
दस्तूर-ए-दुनिया के निभाती चली गई॥
चारो तरफ रिवाज़ों की भीड़ है खड़ी,
रस्में-वफ़ा मैं फिर भी निभाती चली गई।
तेरे प्यार में मैं खुद को मिटाती चली गई॥
चाहत में तेरी खुद को मिटा डाला है मैंने,
तेरे लिए हर ग़म को उठाती चली गई।
तेरे प्यार में मैं खुद को मिटाती चली गई॥
जब भी मेरे दिल ने तुझे याद किया है,
मैं आँसुओं में खुद को डुबाती चली गई।
तेरे प्यार में मैं खुद को मिटाती चली गई॥
तेरे बिना यह ज़िन्दगी बेज़ान हुई है,
हर साँस का मैं बोझ उठाती चली गई।
तेरे प्यार में मैं खुद को मिटाती चली गई॥
दीवानगी है दिल की यह,दिल्लगी नहीं,
दीवानगी,जो होश उड़ाती चली गई।
तेरे प्यार में मैं खुद को मिटाती चली गई॥
November 4, 2011 at 9:41 AM �
ap us jagaha se sochte ho jaha baki sabhi logo ki soch khathma ho jati hai ,bahut sundar ,bahut sahi lagti hai ,thanks