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जब हम होते हैं खुद से निराश और बोझिल , जब कोई नही दिखता है आस-पास , जब खो जाता हैं आत्मविश्वास , जब उठने लगता है ईश्वर पर से भी विश्वास ... तभी अचानक एक दोस्त आता हैं ज़िन्दगी में . कही से -- शायद सात समुन्दर पार से , शायद कही आस-पास से , बनके शम्भू , बनके तारणहार , और दिलाता है विश्वास -- जब कोई न हो तुम्हारे साथ... तुम्हारे साथ -"मै हूँ न " (मित्र को सादर समर्पित) |
October 18, 2010 at 11:39 AM �
बहुत सुंदर ,,,सबसे प्यारा रिश्ता होता है दोस्ती का रिश्ता
October 24, 2010 at 2:34 AM �
aap bahut badhiya likhti hain.
December 17, 2010 at 10:52 PM �
wah wah meetu ji..............bahut achha lga aapke blog par aakr .dosti ka rishta bahut ghra hota hai