मैंने औरत को पिटते देखा है ,
और बादलो को भी घिरते देखा है ,
लेकिन आकाश में नही, उस औरत की आँखों में !
मैंने पानी फिरते देखा है, उसके सपनो में !
जब वे चूर-चूर होकर कसकते है उसकी आँखों से ,
तब उसका जिस्म ही नही टूटता ,
टूटता है उसका विश्वास भी रिश्तो से !
टूटता है उसका आत्मबल भी,उसके ही अपनों से !
मैंने हारते देखा है, मनोबल को शारीरिक बल से !
जब औरत पिटती है,अपने पति के हाथों से !
मैंने उन्ही हाथो से ,
उस औरत को असुरक्षित देखा है ,
जिनका दावा है उसके संरक्षकत्व का !
और चुपके से दुआ मांगते भी देखा है ,
उसी औरत को- उसके लिए ,
जिससे - बाराहा पिटती है वह,
सुबह शाम और रातो को ....!!
(यह कविता आँखों-देखी पर आधारित है !
कालोनी में अक्सर देखती थी ...
एक दिन पूछा भी उनसे - "भाभी, क्यूँ सहती हो" ?
लेकिन उनके जवाब में फिर भी पति के प्रति आदर और सम्मान ही पाया....
पत्नी अध्यापिका और पति इंजिनियर-और उनके घर में यह हाल !
...क्या यही है स्थिति हमारी ?) |
September 9, 2010 at 1:43 AM �
haan..maine bhi dekha hai ...
September 9, 2010 at 4:04 AM �
Per mujhe to kuch dikhai nahi diya bhai
September 9, 2010 at 3:20 PM �
sach kahti ho meetu , duniya chahe kitni bhi unnati ka dhindhora peet le ham striyo ki dasha vahi ki vhi hai ...
September 18, 2010 at 9:38 PM �
नारी तुम सावित्री हो,
हाँ तुम अब भी सावित्री हो,
किन्तु पुरुष
तुम्हारी हत्या-उत्पीडन
क्यों कर लेता स्वीकार.
शायद
सत्यवान
भूल गया तुम्हारा उपकार
-निशीथ
September 21, 2010 at 9:51 PM �
मैंने औरत को पिटते देखा है ,
और बादलो को भी घिरते देखा है ,
लेकिन आकाश में नही, उस औरत की आँखों में
isse achchi line ho nahi sakti.....
seedhe dil mein utar gayeeen....
February 8, 2011 at 9:05 PM �
ममता का महकता हुआ गुलज़ार है औरत बदले पे उतर आये तो तलवार है औरत
मैथिलीशरण गुप्त
यह भारतीय स्त्री के त्याग और सेवा की पराकाष्ठा है पति ही परमेश्वर है चाहे वह कैसा भी हो .
श्री राम चरित मानस में गोस्वामीजी लिखते हैं कि
करेहु सदा संकर पद पूजा ! नारि धरम पति देव न दूजा !!
July 25, 2011 at 8:37 AM �
this is one sided view.aapne sirf pit te dekha hai maine striyo ko na jane kya kya karte dekha hai