4:41 AM
![]() | |
. विभावरी की द्वितीय बेला में , मेरे मित्र से मेरा साक्षात्कार हुआ ! कहने लगा सो जाओ तुम , मत उलझो इन जंजालों में ..... क्या पाओगी तुम , क्या तुमने खोया है ? कैसे सुनेगा कोई बात तुम्हारी , जब सारा जग सोया है !! जानता हूँ तुम हो अकेली , इस जीवन के कुरुक्षेत्र में ! पर कैसे दू साथ तुम्हारा , लगा दे न कोई कलंक हममे !! सीख सको तो सीख लो इतिहास , जब अभिमन्यु हारा था ! चुन-चुन कर अपनों ने ही , उसे रण-भूमि में मारा था !! विचार संकीर्ण , कुंठित मानसिकता , आज फिर अभिमन्यु अकेला है ! मत सोचो , अब सो जाओ सखी.. यह रात्रि की चतुर्थ बेला है...... (यह कविता मेरे मित्र से मेरी बातचीत का सारांश है, इसमें कुछ लाइन बिना बदलाव के है ..) |
0 Responses to "साक्षात्कार"
Post a Comment