क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!!
---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!
अनजाने में हुई एक छोटी सी बेवकूफी पाप बन जाती है , जिसका धुल पाना सातो ज़न्म में भी मुश्किल हो जाता है ! कभी-कभी अनजाने में लगी एक छोटी सी चोट नासूर बन जाती है , जिसका निस्तारण सिर्फ चिता के साथ ही होता है !!
aakhirkaar maine aisi ladki ko khoj nikala jo hindi likhti hai samjhti hai aur shayaf bolti bhi ho--aapki likhi hui kuch panktiyaan padhi achcha laga. do panktiyaan hamari taref se--- uske dushman hain bahut aadmi achcha hoag usne bhi meri tareh kuch paane ki naamuradi main in raahon ko-kitni hi baar aankhon se kureda hoga.
Today first time i read ur poem its gr8 gr8 & gr8..keep writing.. kya aap sach m itna achha likhte ho..aaj kal ke dor m ghar nokri or traffic k bich jindgi ulajh jati h magar ek pal aapke panktiye ko padhkar man sambhal jaata h sochta hu m v apne aap ko jamane ke samne lana magar fir us katil ki yaad aati h or m sihar jata hu...aapke sabdo ke mithas ne ek khusi di h magar fir v ye jindgi simti h dayra chota h....aaplikhte rhna sayad padh padh kar hi ye jindgi kat jaye
कुछ कर गुजरने की आग जीने नही देती,
कुछ न कर पाने का एहसास सोने नही देता!
यकीन की चिंगारी अश्क पीने नहीं देती,
अटल इरादा शिकस्त पे भी रोने नही देता !! ..... मीतू !!
क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!!
---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!
अपने दायरे !!
कुछ वीरानियो के सिलसिले आये इस कदर की जो मेरा अज़ीज़ था ..... आज वही मुझसे दूर है ..... तल्ख़ हुए रिश्तो में ओढ़ ली है अब मैंने तन्हाइयां !! ......... किरण "मीतू" !!
स्पंदन !!
निष्ठुर हूँ , निश्चल हूँ मैं पर मृत नही हूँ ... प्राण हैं मुझमे ... अभी उठना है दौड़ना हैं मुझे ... अपाहिज आत्मा के सहारे ... जीना है एक जीवन ... जिसमे मरण हैं एक बार ... सिर्फ एक बार !! ..... किरण " मीतू" !!
सतरंगी दुनिया !!
आस-पास , हास-परिहास , मैं रही फिर भी उदास ...आत्मा पर पड़ा उधार , उतारने का हुआ प्रयास ... खुश करने के और रहने के असफल रहे है सब प्रयास !! ..... किरण "मीतू" !!
उलझन !!
अकेले है इस जहां में , कहाँ जाए किधर जाए ! नही कोई जगह ऐसी की दिल के ज़ख्म भर जाए !! ... किरण "मीतू" !
तलाश स्वयं की !!
कुछ क्षण अंतर्मन में तूफ़ान उत्पन्न कर देते है और शब्दों में आकार पाने पर ही शांत होते है ! ..... मीतू !!
ज़ज़्बात दिल के !
मंजिल की तलाश में भागती इस महानगर के अनजानी राहो में मुझे मेरी कविता थाम लेती है , मुझे कुछ पल ठहर जी लेने का एहसास देती है ! मेरी कविता का जन्म ह्रदय की घनीभूत पीड़ा के क्षणों में ही होता है !! ..... किरण "मीतू" !!
मेरे एहसास !!
मेरे भीतर हो रहा है अंकुरण , उबल रहा है कुछ जो , निकल आना चाहता है बाहर , फोड़कर धरती का सीना , तैयार रहो तुम सब ..... मेरा विस्फोट कभी भी , तहस - नहस कर सकता है , तुम्हारे दमन के - नापाक इरादों को ---- किरण "मीतू" !!
आर्तनाद !
कभी-कभी जी करता है की भाग जाऊं मैं , इस खुबसूरत ,रंगीन , चंचल शहर से !! दो उदास आँखे .....निहारती रहती है बंद कमरे की उदास छत को ! . ..लेकिन भागुंगी भी कहाँ ? कौन है भला , जो इस सुन्दर सी पृथ्वी पर करता होगा मेरी प्रतीक्षा ? ..... किरण "मीतू" !!
मेरा बचपन - दुनिया परियो की !
प्रकृति की गोद में बिताये बचपन की मधुर स्मृतियाँ बार-बार मन को उसी ओर ले जाती है ! मानव जीवन में होने वाली हर बात मुझे प्रकृति से जुडी नज़र आती है तथा मैं मानव जीवन तथा प्रकृति में समीकरण बनाने का प्रयास करती हूँ !....किरण "मीतू
कविता-मेरी संवेदना !!
वेदना की माटी से , पीड़ा के पानी से , संवेदनाओ की हवा से , आँसूवो के झरनों से ! कोमल मन को जब लगती है चोट , निकलता है कोई गीत , और बनती है कोई कविता !! ..... मीतू !!
September 9, 2010 at 1:31 AM �
sahi kaha meetu ..
October 10, 2011 at 11:05 PM �
aakhirkaar maine aisi ladki ko khoj nikala jo hindi likhti hai samjhti hai aur shayaf bolti bhi ho--aapki likhi hui kuch panktiyaan padhi achcha laga. do panktiyaan hamari taref se---
uske dushman hain bahut
aadmi achcha hoag
usne bhi meri tareh
kuch paane ki naamuradi main
in raahon ko-kitni hi baar
aankhon se kureda hoga.
October 16, 2011 at 9:23 PM �
Today first time i read ur poem its gr8 gr8 & gr8..keep writing..
kya aap sach m itna achha likhte ho..aaj kal ke dor m ghar nokri or traffic k bich jindgi ulajh jati h magar ek pal aapke panktiye ko padhkar man sambhal jaata h sochta hu m v apne aap ko jamane ke samne lana magar fir us katil ki yaad aati h or m sihar jata hu...aapke sabdo ke mithas ne ek khusi di h magar fir v ye jindgi simti h dayra chota h....aaplikhte rhna sayad padh padh kar hi ye jindgi kat jaye