आज फिर झंझा घिरी और मन के सिन्धु छलके !
ये कौन आया याद कि ये नयनो के तटबंध छलके !!
दूर तक घन तिमिर के श्याम अंचल में ,
एक आभा बिम्ब की सी आती हलचल में ,
और मेरी रागिनी व्यग्र होती ,
उसे पाने उर्मि झिलमिल में ....
बिम्ब वो क्यू पास आते , मेहमां थे चंद पल के !
ये कौन आया याद कि ये नयनो के तटबंध छलके !!
----मीतू ०६०९२०१० सायं ८:०३ Copyright ©
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February 9, 2011 at 9:28 PM �
जोजहाँ में सबसे न्यारा है
सबसे ज्यादा प्यारा है
कहते है हम जिसको अपना
वो भी नाम तुम्हारा है.
February 18, 2011 at 10:43 AM �
किरणजी जब में आप को संवेदना में पढता हूं तो एक परिपक्व कवियत्री पता हूं लेकिन फेसबुक पर आप का स्वभाव teenage हो जाता है
March 21, 2012 at 1:48 PM �
behtreen abhivyakti,bhavpurn rachna