आसमान में बादलो के ढेर की तरह , हर रोज़ जमा होते है मेरी पलकों में तुम्हारे सपने .. तुम से ही गुलजार मेरा प्रांतर , जैसे संतुष्ट मन खिला-खिला सा !!
जाने कितना अर्सा हो गया , मैंने तुम्हे देखा ही नही .. लेकिन तुम्हारी वो मीठी सी आवाज़ .. घोलती रहती है मिश्री मेरे कानो में .. देती है एहसास तुम्हारे आस-पास ही होने का और मैं हो उठती हूँ रोमांचित , तुम्हारी कल्पना मात्र से ही !!
तुम संग मेरे दिन खिलखिलाहट भरे , राते महकी -बहकी सी !
अब फिर कब आओगे , अब आ भी जाओ न ... बर्फीले अंधियारे में , मेरे लिए धुप का उत्ताप लेकर ... आखिर कब आओगे ? तमाम यादे, ख्वाहिशे ,ख्वाब जो की तुम्हे ही लेकर है मेरी पलकों पर जमा होते जा रहे है !
कैसे बयां करू कहा न , आज मुझे तुम्हारी बहुत याद आ रही है !!!!!!.
_____________किरण श्रीवास्तव मीतू Copyright © ११ सितम्बर २०११ रात्रि ९:४० ..
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