खानाबदोश की तरह जिंदगी ठहरी मेरी...जिस जगह रुक जाऊ बस वही बसेरा...न कोई घर , न मकान , न ही कोई आत्मीय जन ... ठहरती, रूकती , चलती रहती हु मैं...जगह-जगह यादे छोड़ आती हूँ मैं...ले आती हूँ वहाँ की यादे...कभी किसी नदी के किनारे रेत सी बिछ जाती हूँ...तो किसी धरती पर मिट्टी की तरह बिखर जाती हूँ...इस निसंग आकाश में भी तो मेरी आँखों का सूनापन ही दिखता है...क्या पता की मेरे आज का कल क्या होगा...मिल जाउंगी मिट्टी में या गुम हो जाउंगी सितारों में..!

कौन है भला मुझे ढूंढने वाला ? किसको है मेरी प्रतीक्षा ??

_______किरण श्रीवास्तव मीतू Copyright ©

आसमान में बादलो के ढेर की तरह ,
हर रोज़ जमा होते है मेरी पलकों में तुम्हारे सपने ..
तुम से ही गुलजार मेरा प्रांतर ,
जैसे संतुष्ट मन खिला-खिला सा !!

जाने कितना अर्सा हो गया ,
मैंने तुम्हे देखा ही नही ..
लेकिन तुम्हारी वो मीठी सी आवाज़ ..
घोलती रहती है मिश्री मेरे कानो में ..
देती है एहसास तुम्हारे आस-पास ही होने का
और मैं हो उठती हूँ रोमांचित ,
तुम्हारी कल्पना मात्र से ही !!

तुम संग मेरे दिन खिलखिलाहट भरे ,
राते महकी -बहकी सी !

अब फिर कब आओगे ,
अब आ भी जाओ न ...
बर्फीले अंधियारे में , मेरे लिए धुप का उत्ताप लेकर ...
आखिर कब आओगे ?
तमाम यादे, ख्वाहिशे ,ख्वाब
जो की तुम्हे ही लेकर है
मेरी पलकों पर जमा होते जा रहे है !

कैसे बयां करू
कहा न ,
आज मुझे तुम्हारी बहुत याद आ रही है !!!!!!.

_____________किरण श्रीवास्तव मीतू Copyright ©
११ सितम्बर २०११ रात्रि ९:४० ..

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  • संवेदना

    क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!! ---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!

    अपने दायरे !!

    अपने दायरे !!
    कुछ वीरानियो के सिलसिले आये इस कदर की जो मेरा अज़ीज़ था ..... आज वही मुझसे दूर है ..... तल्ख़ हुए रिश्तो में ओढ़ ली है अब मैंने तन्हाइयां !! ......... किरण "मीतू" !!

    स्पंदन !!

    स्पंदन !!
    निष्ठुर हूँ , निश्चल हूँ मैं पर मृत नही हूँ ... प्राण हैं मुझमे ... अभी उठना है दौड़ना हैं मुझे ... अपाहिज आत्मा के सहारे ... जीना है एक जीवन ... जिसमे मरण हैं एक बार ... सिर्फ एक बार !! ..... किरण " मीतू" !!

    सतरंगी दुनिया !!

    सतरंगी दुनिया !!
    आस-पास , हास-परिहास , मैं रही फिर भी उदास ...आत्मा पर पड़ा उधार , उतारने का हुआ प्रयास ... खुश करने के और रहने के असफल रहे है सब प्रयास !! ..... किरण "मीतू" !!

    उलझन !!

    उलझन !!
    अकेले है इस जहां में , कहाँ जाए किधर जाए ! नही कोई जगह ऐसी की दिल के ज़ख्म भर जाए !! ... किरण "मीतू" !

    तलाश स्वयं की !!

    तलाश स्वयं की !!
    कुछ क्षण अंतर्मन में तूफ़ान उत्पन्न कर देते है और शब्दों में आकार पाने पर ही शांत होते है ! ..... मीतू !!

    ज़ज़्बात दिल के !

    ज़ज़्बात दिल के !
    मंजिल की तलाश में भागती इस महानगर के अनजानी राहो में मुझे मेरी कविता थाम लेती है , मुझे कुछ पल ठहर जी लेने का एहसास देती है ! मेरी कविता का जन्म ह्रदय की घनीभूत पीड़ा के क्षणों में ही होता है !! ..... किरण "मीतू" !!

    मेरे एहसास !!

    मेरे एहसास !!
    मेरे भीतर हो रहा है अंकुरण , उबल रहा है कुछ जो , निकल आना चाहता है बाहर , फोड़कर धरती का सीना , तैयार रहो तुम सब ..... मेरा विस्फोट कभी भी , तहस - नहस कर सकता है , तुम्हारे दमन के - नापाक इरादों को ---- किरण "मीतू" !!

    आर्तनाद !

    आर्तनाद !
    कभी-कभी जी करता है की भाग जाऊं मैं , इस खुबसूरत ,रंगीन , चंचल शहर से !! दो उदास आँखे .....निहारती रहती है बंद कमरे की उदास छत को ! . ..लेकिन भागुंगी भी कहाँ ? कौन है भला , जो इस सुन्दर सी पृथ्वी पर करता होगा मेरी प्रतीक्षा ? ..... किरण "मीतू" !!

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !
    प्रकृति की गोद में बिताये बचपन की मधुर स्मृतियाँ बार-बार मन को उसी ओर ले जाती है ! मानव जीवन में होने वाली हर बात मुझे प्रकृति से जुडी नज़र आती है तथा मैं मानव जीवन तथा प्रकृति में समीकरण बनाने का प्रयास करती हूँ !....किरण "मीतू

    कविता-मेरी संवेदना !!

    कविता-मेरी संवेदना !!
    वेदना की माटी से , पीड़ा के पानी से , संवेदनाओ की हवा से , आँसूवो के झरनों से ! कोमल मन को जब लगती है चोट , निकलता है कोई गीत , और बनती है कोई कविता !! ..... मीतू !!
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