काश ! तुम मेरे पास होते !! चूँकि , तुम मेरे पास नही हो , इसलिए मैं तुम्हे रोज लिखना चाहती हूँ - अपने दिल के हालत , अपने हर ज़ज्बात ..... ................................... ..............................................!!! हर रात जब मेरी आँखों में रतजगे का सैलाब उमड़ता है - उन लहरों में मुझे डूबते-उतराते सिर्फ तुम्हारा ही चेहरा दिखता है ! क्यों मैं तुम्हारे अभिमान को नही समझना चाहती हूँ , तुम न भी बुलाओ फिर भी क्यों तुम्हारे करीब आना चाहती हूँ ... आखिर क्यों ?? आखिर क्यों तुम्हारी उत्तापहीन आँखे मेरे प्यार से नम नही होती ? हालांकि मैं तुम्हे कुछ ही दिनों से जानती हूँ , लेकिन ऐसा क्यू लगता की जैसे मैं तुम्हे हजारो वर्षो से पहचानती हूँ ? हम कब और कैसे मिले , कुछ ख़ास याद नही ........ बस इतना ही , की जैसे किसी जलती दुपहरिया में मेरी हथेलियों पे छाँव लिख दिया हो ! उस वाकहीन नि:शब्दता में मैं सिर्फ तुम्हे देखती ही रह गई थी ! जैसे की हम अनंत काल से एक-दूजे की तलाश में भटक रहे हो .. और एक दिन हम मिल गए और एक-दूजे को पहचान लिया .... न न ... किसी भूमिका की जरुरत ही ना पड़ी !! हमने अपने अंतस में रखी तस्वीरों से एक-दूजे को मिलाकर देखा -- हाँ ..हाँ .. यह वही तो है , अपने निर्जन सपनो से जिसे रचा है ... जिसे हमने अपने मन के अन्दर रचा-गढ़ा है ....! इसलिए बिना कुछ कहे -सुने नि:शब्द मुद्रा में, हमने एक दूजे की हथेली पर लिख दिया अपना नाम !!!! _______________ किरण २१:५४ -- १०/६/२०१२
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