4:56 AM



सृजन
जो मचलता है 
स्फ़ुटन के लिए 
भीतर ही भीत। 

डालियों में होती है बेचैनी
शायद चीर कर टहनियों के बाजुओं को
कोई निकालना चाहता है बाहर
एक नए सृजन के लिए।
_______ kiran 

विचार ,
कई बार बहते है हवा से,
छलकते है पानियों से,
झरते है पत्तियों से 
और 
कई बार उठते है गुबार से 
घुटते है, उमड़ते है,
लीन हो जाते है शून्य में 
फिर 
यही से शुरू होती भाव हीनता। 
_______ किरण ८/१/२०१६


  • कोई तो होता , 
    जो रस्मो रिवाज़ों से हटकर भी मेरा साथ देता ,
    जो गुनगुनाता मेरे एहसासो को ,
    शब्दों से परे भी सुनता मेरे ज़ज़्बातो को ,
    कोई तो होता ,
    जो बारिशो में फिक्रमंद होते हुए 
    मेरे लिए सिर्फ छतरी ही न लाता 
    बल्कि मेरे साथ भींगता वो फुहारों में !
    कोई तो होता ,
    जो गुणा -भाग-जोड़ -घटाना -हासिल छोड़कर 
    तितलियों के परो पर रखे हुए 
    रंगीन सपनो के पीछे 
    मेरे साथ दौड़ता -भागता !
    कोई तो होता ,
    रस्मो रिवाजो से परे भी मेरे साथ होता !!
    ______ किरण !

7:19 AM

घने सायो के बीच सिर्फ तुम्हारी यादें है !
न तुम यहां हो , न मैं वहाँ हूँ !! 
kiran©

चाँद जब कुहनियों के बल चलते हुए 
धीरे धीरे सरक कर 
एक सिरा आकाश का थामे हुए 
धरती के करीब आया !
बोला - थोड़ा तुम उठो
थोड़ा सा मैं और झुकता हूँ
चलो बनाते है अपना
एक क्षितिज नया !
poem &photo Kiran©

नीले आसमान से,
कपास के पतली बारीक तंतुओं जैसे, धवल बादल से,
बुने हुए, ओढ़े हुए,
छुपते हुए,
छुपाते हुए,
पंछियों को निहारते हुए,
उस पार से कोई, बैठा है !
सूरज पर भी, चाँद पर भी,
रहता,
घूमता,
कभी छुप जाता, कभी छुपा लेता,
सूरज को, कभी चाँद को.
पंछियों से, पंछियों को,
मिलाते हुए,
खुद को छुपाते हुए,
उधर से निहारता होगा।

क्या कोई होगा ?
______________________
किरण श्रीवास्तव मीतू Copyright ©

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 एक  दिन इठलाती हुई ,
 एक   छोटी सी नदी के किनारो के साथ , 
बाहो में बाहें  डालकर चलते हुए , 
तुमने बड़े गर्व से पूछा ,
बताओ - नदी बड़ी है या सागर ??
हालाँकि समझ तो गई थी मैं तुम्हारा आशय 
चलती रही फिर भी ख़ामोशी से 
मैं साथ तुम्हारे !!

फिर से एक और दिन  
घास के लम्बे मैदान को पार करते हुए 
सर्दी की गुनगुनी धूप से लिपटते हुए 
मेरे आँखों में आँखे डालकर
बड़ी शरारत से तुमने पूछा 
बताओ - धरती बड़ी है या आकाश ??
मुस्कुरा देती हूँ सब समझकर !!


आखिर क्यों है 
तुम्हे खुद पर इतना संशय ,
सृष्टि के आदि से लेकर अब तक
बिना किसी प्रतिवाद के 
स्वीकारी है मैंने तुम्हारी श्रेष्ठता !

फिर भी तुम पूछते हो तो लो सुनो -
बड़ा तो सागर है 
किन्तु प्यास तो नदी ही बुझाती है !
हाँ बड़ा है ये विशाल  आकाश 
किन्तु आश्रय तो धरा ही देती है !!!!


किरण  श्रीवास्तव  Copyright ©
7:05 p.m. -- 14/11/2014



क्यों भरू अपने कलम में सिर्फ उतनी ही स्याही
जितनी तुम चाहो।
क्यों भरु अपने कैनवास में वही रंग
जिसे तुम सराहो।
क्यों दू अपनी जुबान को वही शब्द 

जिन्हे सुनकर तुम प्रफुल्लित रहो |


हाँ मुझे भी आता है
कांटो पर चलना
अपने ज़ख्मो की स्याही से
अपने हथेलियों पर लकीरे बनाना।
अपनी दिशा और दशा तय करने का
सम्पूर्ण अधिकार है मुझे।

क्या समझ में नही आती इतनी सी भी बात तुम्हे
कि मैं नही हूँ मशीन कोई।
आग , हवा, पानी और मिट्टी
से बनाया है मैंने खुद को |
मुझमे भी प्राण है
जीने और जूझने का अदम्य साहस भी
और अपने रास्ते बनाने का विवेक भी।

अगर नही है इन सबसे इत्तेफाक तुम्हारा
तो दूर हटो मुझसे।
चलने दो मुझे
मेरे बनाये रास्ते पर।

अन्यथा
मेरे विरोध का हर स्वर
आहत करता रहेगा
तुम्हारे कच्चे घड़े-सा
थोथे स्वाभिमान को !
और फिर
तैयार रहना तुम
एक और धर्म-युद्ध के लिए। !!

फोटो और कविता -
किरण श्रीवास्तव Copyright ©
29/10/2014

भींगी रुत
भींगे शब्द !
कहाँ हो तुम !!

भींगी रात,
भींगी बात !
भींगे अधरों पर
भींगा  स्पर्श !
कहाँ हो तुम !!


भींगी आहट ,
भींगी गुनगुनाहट !
भींगे-भींगे जज़्बात ,
कहाँ हो तुम !!

किरण -- रात्रि ९:५८ - १७/१२/२०१२

10:15 PM

आज ,
अचानक मन में विचार आया
कि
कितनी ही बार
मैंने स्वयं को इस जीवन-पथ में असहाय पाया !

जब-जब मैंने उम्मीद का सहारा लिया
हर कडवे अनुभव को हंस कर पिया
नियति से जूझे , संघर्ष किया
सफलता नही मिली !

कितनी ही बार
मन में झंझावात उठे
कितनी ही बार स्वप्न लुटे
पर विषाद बाहर न आया
ठेस लगने पर भी मन रो न पाया !

फिर भी
मैं संघर्षरत हूँ
इसी आशा के साथ
कि शायद
कभी काले बादलो के छट जाने पर
इन्द्रधनुषी रंगों कि बहार आ जाये
शायद ........ !

__ किरण .....Copyright © 9:47 pm .. 29-nov-2012


अकेलेपन की जंजीरों में जकड़ा ,
मेरा समूचा आस्तित्व !
छटपटाता , फडफडाता ...
किसी से बंधकर
मुक्त होने की आशा पर जीता ,
हर लम्हा , हर घडी इंतज़ार करता किसी का !
कोई जो समझे -
दिल की धड़कन को ,
अश्रु के ताप को

कलेजे में रुकी सिसकियो की घुटन को ...
नजरो के सहमेपन को ,
आपस में लडती उंगलियों के द्वन्द को !

न हो जिसका अहम् चट्टान सा -

कि जिससे टकराकर
बिखर जाऊ मैं असंख्य बूंदों में !
वरन जो हो एक समंदर -सा ,
अंगीकार कर ले
अपने अस्तित्व में
मुझ अकेली बहती नीरव नदी को ...
और कर दे मुझे सदा के लिए बंधन मुक्त !|!|!|!|

__ किरण .....Copyright © २०नोव२०१२ .. ८:४० pm

उदासियो का कारवां यहाँ से वहाँ तक !
हसरतो के दायरे थे जमीं से आसमां तक !

वीरानिया किसने देखी है ,
तन्हाइया किसने जानी है ?
जश्ने जिन्दगी का दौर तो है बस ,
साँसों के जिन्दा रहने   तक !

-- किरण Copyright © !!

कुछ पल का मिलन भी यादें दे जाता है ,
शेष पलों में यह गहरी प्यास जगाता है !!

कैसा है यह एहसास कैसी ये अनुभूति है ,
मिटती नहीं चाह ऐसी यह अमृत-वृष्टि है !
चाहता है मन यह मिलन हरपल बार-बार
खो जाएँ एक दूजे में, करें प्यार बेशुमार !!
.
__ किरण Copyright © .. ७/१०/२०१२ .. २०:३३

नही जानती , तुम्हारी बातो में तिलिस्म है या जादू ..
फिर भी , तुम्हारी हर बात पर एतबार है मुझे !!

नही जानती , कितनी तपिश है तुम्हारे होंठो में ..

फिर भी , उन्हें छूने की कसक है मुझे !!

नही जानती , तुम्हारी आँखे आईना है या समुंदर..

फिर भी , उनमे डूबने की ख्वाहिश है मुझे !!

नही जानती , तुम्हारे साथ से मुझे क्या मिलना और क्या  खोना है ..

फिर भी , उस अनुभव को पाने की तड़प है मुझे !!

नही जानती , तुम्हारा बहाव मुझे किस और ले जाएगा ..

फिर भी तुममे तिरोहित हो जाने का शौक है मुझे !!

नही जानती , तुम मेरा साथ दोगे या नही ..

फिर भी तुम्हारे लिए बगावत का हौसला है मुझे !!!!

____ किरण श्रीवास्तव Copyright © २८/९/२०१२ -- सायं  ७:२६ !!

9:55 PM

किस प्रलय के अंत में तुमने उजाला कर दिया ,
दर्द के तूफ़ान को भी सहने वाला कर दिया !
तुम ही बताओ कि मैं व्यथा की वंदना कैसे करूँ ,
यातना ने प्यार का मौसम निराला कर दिया !
_________________मीतू !

काश ! तुम मेरे पास होते !!
चूँकि ,
तुम मेरे पास नही हो ,
इसलिए मैं तुम्हे रोज लिखना चाहती हूँ -
अपने दिल के हालत , अपने हर ज़ज्बात .....
...................................
..............................................!!!
हर रात जब मेरी आँखों में रतजगे का सैलाब उमड़ता है -
उन लहरों में मुझे डूबते-उतराते सिर्फ तुम्हारा ही चेहरा दिखता है !
क्यों मैं तुम्हारे अभिमान को नही समझना चाहती हूँ ,
तुम न भी बुलाओ फिर भी क्यों तुम्हारे करीब आना चाहती हूँ ...
आखिर क्यों ??
आखिर क्यों तुम्हारी उत्तापहीन आँखे मेरे प्यार से नम नही होती ?
हालांकि मैं तुम्हे कुछ ही दिनों से जानती हूँ ,
लेकिन ऐसा क्यू लगता की जैसे मैं तुम्हे हजारो वर्षो से पहचानती हूँ ?

हम कब और कैसे मिले ,
कुछ ख़ास याद नही ........
बस इतना ही , की जैसे किसी जलती दुपहरिया में
मेरी हथेलियों पे छाँव लिख दिया हो !
उस वाकहीन नि:शब्दता में मैं सिर्फ तुम्हे देखती ही रह गई थी !
जैसे की हम अनंत काल से एक-दूजे की तलाश में भटक रहे हो ..
और एक दिन हम मिल गए और एक-दूजे को पहचान लिया ....
न न ... किसी भूमिका की जरुरत ही ना पड़ी !!
हमने अपने अंतस में रखी तस्वीरों से एक-दूजे को मिलाकर देखा --
हाँ ..हाँ .. यह वही तो है ,
अपने निर्जन सपनो से जिसे रचा है ...
जिसे हमने अपने मन के अन्दर रचा-गढ़ा है ....!
इसलिए बिना कुछ कहे -सुने नि:शब्द मुद्रा में,
हमने एक दूजे की हथेली पर लिख दिया अपना नाम !!!!

_______________ किरण २१:५४ -- १०/६/२०१२

4:40 PM

How mellifluous was the word you just said
It reached the secret chamber of my heart ..
Like sweetness of honey poured into the ear
Such was the charm kissed my soul O dear ..
Feel and I breathe your eternal love in my veins
Making my soul dance in blissful waves of time..
How pleasing and how sweet is unique feeling
All I feel it sparkles waves of splendid rejoicing ..
I am drenched in the sweetness of hilarity
You overwhelmed me with word of serenity ..
My mind is floating to understand all you said
How mellifluous was the word you just said....♥

____ kiran srivastava ... Copyright © ... 19 pm ....24:5:2012
.
.
हिंदी में अनुवाद --->

कैसा मधुर कैसा मदिर है ये आपका सन्देश
छू कर अंतरतम को कर दिया मुझे मदहोश

कानों में लगे शहद की मिठास घोली है
मोहकता ऐसी आत्मा को इसने चूमी है

दौड़ने लगी हो जैसे रगों में तेरे ही शाश्वत प्रेम की सांस
समय के आह्लादकारी लहरों पर नाचे आत्मा की आस

कैसा आनंददायी है यह अप्रतिम अहसास
फूट निकली हैं हर्ष की चिंगारियां पासपास

उल्लास की मधुरिमा में सराबोर हो चुकी हूँ
असीम शांतिमयी सन्देश में डूब ही चुकी हूँ

मन-पंछी ने उड़ान ली है समझकर सन्देश
कैसा मधुर कैसा मदिर है ये आपका सन्देश ♥

आज शाम ७:४५ की बात है .... मैं अपने बाईक पर मार्केट से घर आ रही थी .... सड़क पर लाईट होते हुए भी कुछ अन्धेरा -सा दिख रहा था ! मैंने देखा एक लड़का जो की १९-२० वर्ष का रहा होगा वो सभी गाडियों को लिफ्ट के लिए रोक रहा था किन्तु गाडिया उसकी और ध्यान न देते हुए अपनी स्पीड में आगे बढ़ जाती थी ! उसने मेरी भी बाईक को देख कर लिफ्ट के लिए अपना हाथ आगे बढाया किन्तु लड़की देखकर उसने अपने बढे हुए हाथ को संकोच से पीछे कर लिया ! लड़के न तो आम तौर पर किसी से लिफ्ट मांगते है और न ही उन्हें कोई लिफ्ट देता है , फिर यह क्यों ??
कुछ ही दूर चौराहे पर रेड लाईट हो रखी थी ..... मैंने अपनी बाईक रोकी , पीछे मुड़कर देखा .... वह लड़का बड़े ही धीमे-धीमे कदमो से आगे चलता हुआ उम्मीदों से सभी की ओर अपने हाथ बढ़ा रहा था ..... और ध्यान से देखा मैंने उसके सर पर पट्टी बंधी हुई थी .... कदमो में थकावट या दर्द था , चेहरे पर परेशानी स्पष्ट झलक रही थी !
'' यह लड़का तो अभी ग्रेजुएशन में होना चाहिए .... बीए / बी कॉम वालो के तो अभी एक्जाम चल रहे है .... इस समय जाने कैसे चोट लगी होगी इस बिचारे को .... रिक्शे से भी तो जा सकता है ..... क्या पता इसके पास पैसे न हो " ! जाने कितने सवाल ज़ेहन में उठ रहे थे ... उसने भी मुझे रुके हुए अपनी तरफ देखते हुए देख लिया था ! वह संकोच से धीरे-धीरे चलता हुआ मेरे पास आया ... मैंने उससे कुछ भी नही कहा लेकिन उसने मेरी खामोश स्वीकृति को समझा और धीरे से बाईक पर बैठ गया !

"कहाँ जाना है ?"
"**** कोलेज के हास्टल "
(उफ़, माँ -पिताजी से दूर रहता है, एक्जाम भी चल रहे होंगे.. ऊपर से चोट भी )
"मुझे रास्ता नही मालूम .... बता देना !"
"रेड लाईट से राईट फिर आगे जाकर लेफ्ट "!
"अभी तो एक्जाम चल रहे होंगे ?"
"जी "
"इस समय अपना ख़याल रखना चाहिए था न .... ये चोट कैसे लगा ली ?"
"जी , मैं फुटपाथ पर जा रहा था ... तभी एक कार वाले ने अचानक अपना दरवाजा खोला और मेरे मेरे सर पर ये चोट लगी " !
"क्या करते हो ?"
"बोटनी ओनर्स ... 2yr .. "
"नाम ?"
"मिरज़ा "

थोड़ी ही देर में उसका होस्टल आ गया ... वहाँ काफी लड़के खड़े थे ...... उसने उतर कर मेरी और कृतज्ञता से देखते हुए धन्यवाद कहा .... मैंने ज़ा हेलमेट लगा रखी थी, मैंने अपना हेलमेट उतारा नही .... और चुपचाप अपनी बाईक आगे बढ़ा ली .... !!


__ किरण श्रीवास्तव '' मीतू'' Copyright © .. 13-5-2012 .. 9 :22 pm
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फोटो मेरे कैमरे से ...:)

8:25 PM

खो  दिया  हमने एक दूजे को,
अपनी-अपनी इगो के लिए ... !
वैसे तो यूँ भी थी
हमारी-तुम्हारी मंजिले अलग-अलग.. !

चलो यह भी अच्छा ही हुआ -
कि तुम अब याद तो करोगे ही मुझे ..
मुहब्बत से न सही ,
नफरत से ही सही !!!!!

.
किरण ...Copyright © २० १५  .. ११ /५ /२०१२

न ही तुम कभी ऊपर उठे ,
न ही कभी मैं झुकी !
और ...
यूँ ही अधूरी रह गई ,
एक क्षितिज की कल्पना !!!

किरण ...Copyright © २१:५४ .. 10/5/2012

4:59 PM

हर पल तुम्हारी यादें ..... तुम्हारी बातें ,
ज़ेहन में सिर्फ तुम ही तुम ......!!
सिर्फ इतने से है मशगले .... और कुछ ख़ास नही !!!!

किरण मीतु Copyright © 12:44 .. २८/४/२०१२

7:39 PM

कानो में पहुंचता उनका सुमधुर सन्देश,
दिल पर दस्तक देता कोई निर्निमेष ,
दिल को बहलाता .. मन को दौड़ाता ,
मुहब्बत का दिलाता एहसास ......

बढती जाती है  प्यार की गहरी प्यास ,
जगाती उनसे मिलन की आस ,
मिली है जबसे उनसे नज़र ,
है अपनी न कोई खबर ,
हसरतें हो गयी जवाँ ,
है कितना गजब का ये समां ....
एक अलग- सा जज्बात ,
कितना प्यारा है ये एहसास ....!!

_____ किरण मीतू Copyright © 21nov 2010

आज शाम को मौसम अचानक सुहाना हो गया ... ठंडी-ठंडी हवाओ के बीच हलकी-हलकी बूंदा-बाँदी खिंच ले गई मुझे झील के किनारे ! झील के जल की शीतल स्निग्धता मेरी पोर-पोर में ठंडक भरती रही ... लोगो को बोट पर सैर करते देखते हुए मेरा भी मन मचल उठा .... मैंने भी एक पैडल बोट लिया और खुद पैडल चलाती हुयी लहरों में छ्लात -छ्लात की आवाज़ उठाती रही ...! पानी की आवाजे ... मानो कोई शोर नही .. कोई मीठा-मीठा संगीत हो ! मैं पानी के बीच तैरती हुई समूचे आकाश में बादलो और घटाओ की आँख-मिचौली देखती रही ! मोहक प्रकृति का नज़ारा करते-करते ... मुझे तैरते -बहते शाम की सतरंगी आभा आसमान पर ही नही , मेरे अंग-अंग पोर-पोर में उतर आई !

मेरे अन्दर एक चाह -सी जाग उठी -- काश , यह बोट इसी तरह तैरती रहे ... मैं भी इसी तरह सैर करती रहूँ .... यह लहरे जिंदगी भर जलतरंगो से उत्पन्न संगीत के ताल पर झूला झुलाती रहे .... किसी किनारे या किसी गंतव्य पर न पहुंचे , बस , जिंदगी इसी तरह तैरती रहे !
मेरा यह भी मन हुआ की अचानक मेरे दो पंख निकल आये .... मैं समूचे आकाश में उडती फिरू .... उन रंगों के बिलकुल करीब पहुँच जाऊं ... और फिर धीरे -धीरे उन्ही रंगों में समा जाऊं !!!!!!
______________________ किरण मीतू  !!

अपने घर में प्रवासी ,
अपने शहर में भी प्रवासी  .!
खानाबदोश है जिंदगी ...
और हर जगह मैं प्रवासी !

तब कहाँ है मेरा घर ,
मेरा प्यारा सुन्दर घर ..?
मेरे ख्वाबो का घर ..?

मैं जानू .. मेरी आत्मा जाने ...
मेरे ख्वाबो में है मेरा घर !!!

________ किरण Copyright ©.. २०:५७ .. ३०/३/२०१२

1:25 PM

कितना मुश्किल  है  एहसासों पर  उन्वान लिखना --
जैसे आग पर आग , हवा पर हवा , पानी पर पानी ,
और
तुम्हारे ख्वाबो पर मेरा नाम लिखना !!!



______ मीतू Copyright ©, सायं २० :३० २७ फरवरी २०१२ !

11:45 PM

दोस्तों ,
आज शाम लगभग ६:३० पर जब मैं पेट्रोल भरवाने गई, वहाँ सड़क के किनारे कुछ काम चल रहा था , सड़क खुदी पड़ी थी ...कुछ अन्धेरा भी था ... अचानक मेरी गाडी एक छोटे -से ईंट के टुकड़े पर चढ़कर गिरते-गिरते सम्हली .....मैंने गाडी रोकर सोचा की उस ईंट को वहाँ से हटा दू , कही कोई और न गिर कर चोटिल हो जाए !

मैं जैसे ही उस ईंट को उठाने के लिए झुकी , वहाँ मुझे अँधेरे में पड़ा हुआ मोबाइल दिखा , मैंने उसे उठाया , देखा ... फिर पत्थर को एक साइड में फेंक कर अपनी भी गाडी साइड में लगाई .... मोबाइल को फिर से देखा .... मोबाइल अनलाक था .... अहा, क्या खुबसूरत मोबाइल ... थोडा और ध्यान दिया ..अह्हा !!! नोकिया लुमिया !! ग्रेट यार !! ..... मन का शैतान खींसे निपोर कर हंसा -- " क्या गज़ब मेहरबान हुआ है आज ईश्वर मुझ पर , क्या गज़ब फीचर है ,,, क्या फोटो-शोटो है ,,, क्या गाने दिखते है यार ... वाह बेटा मीतु , तेरी तो आज लोटरी लग गई रे .... तेरी तो सब पर रोब जम गई . !''

मैं उस के फीचर-शीचर लगभग १५ मिनट तक देखती रह गई ....... दिल ने कहा '' खरीदने वाले ने जाने कितने शौक से इतना मंहगा मोबाइल खरीदा होगा .....उसे जब पता चलेगा तब कितना परेशान होगा बेचारा .... नही , नही यह गलत होगा !''

मैंने अपनी उस गन्दी सोच को धिक्कारा और सोच लिया की किसी भी तरह इस मोबाइल को उसके मालिक तक पहुचाना ही है ...... कुछ दूर पर ही पुलिस वाले भी खड़े थे किन्तु उन्हें वह मोबाइल देने का दिल नही किया ..... मैंने गाडी में पेट्रोल भरवाया ..... फिर पेट्रोल पम्प से ही उसके स्पेशल कांटेक्ट नंबर जो की स्क्रीन पर ही दिख रहे थे ,उन पर उसी फोन से कॉल किया ..... अपने घर का मैंने एड्रेस बताया और कहा की '' जिस बन्दे का यह फोन हो उन्हें इन्फोर्म करे की वह इस फोन के रसीद के साथ ही आये और अपना फोन ले जाए '' !

करीब आधे घंटे के अन्दर ही एक बंदा अपनी बेटी के साथ ( जो कि करीब २ वर्ष कि रही होगी ) इक डिब्बा काजू-कतली और चोकलेट लेकर आया .... उसने बताया कि वही पर उसकी गाड़ी भी स्लीप हुयी थी .... और पत्नी द्वारा दुसरे नंबर पर फोन आने से पहले तक उसे मालूम ही न था कि उसका फोन गुम भी हो चुका है ..... फिर वह घर गया , रसीद लिया और यहाँ आया !

वह बहुत खुश था ..... उसकी ख़ुशी देखकर मुझे एवं मेरे परिवार को भी बहुत खुश हुयी .... उसकी बच्ची बहुत प्यारी थी , जल्द ही घुल-मिल गई ........ जाते -जाते एक प्यारा -सा रिश्ता भी बना लिया "मीतु-बुआ " ......:) ---- 21 jan 2012

गुंजाइशे तो थी मगर , तुमने चाहा ही कब था ??

तुमने मुझे मुहब्बत का पैगाम तो दिया ,

पर रंजिश को ही जीस्त समझा ....
मैंने हर वक्त तुम्हारा नाम लिया ...
फना के बाद भी पहचान को कायम रखा .....!

मेरी कब्र पर शमा जलाकर ,

तुम एहसान मत करना ..
प्यार के कुछ पल एहसास के लिए छोड़ दो ...!!

मैं खुद को तुम्हारे कदमो में गिरा तो दूँ
मगर ,
खुद्दारी का एहसास भी बहुत जरुरी है !!

__ किरण श्रीवास्तव '' मीतू'' Copyright © .. 22-1-2012 .. 22:00 pm ●●●▬▬▬▬▬▬●●●▬▬▬▬▬▬●●●

जिंदगी राह बदलकर जाने कहाँ से कहाँ आ गई .......
जब मिले भी तो बहुत देर तक खामोशियाँ ही बहती रही ,
हमारे दरमियाँ .......

हैरानी थी तुम्हारी आँखों में, मुझे देखकर इस तरह ......
मेरे भी लब बहुत कुछ कहने को थरथरा रहे थे .......
हाथो की हरारत चुगली कर रही थी मेरी मायूस जिंदगी की .....
जब होश आया तो देखा
तुम अपने रौ में सिर्फ अपनी ही बाते कहे जा रहे थे ..... !!

मीतू ....Copyright © 5-1-2012
_______________________________________

कितना खुशनुमा-सा दृश्य था आज  सुबह का !
निशा रानी को सुबह अपने चादर में लपेटती जा रही थी .... रात भी मानो सुबह के बाहों में आकर उसी के उजले रंग में रंगने को मचल रही थी ......फिजा में तैरती हुई प्रजिन भी वातायन के रास्ते आकर मेरे चेहरे पर अपना कोमल स्पर्श करके कानो में फुसफुसा कर बाहर के उस सजीव माहौल में घुल मिल-जाने को आमंत्रित कर गई .....बाहर झाँक कर देखा तो चिड़िया आपस में एक-दुसरे को रात का स्वप्न सुनाने में लगी थी ! कुछ पंक्षी फिजा में यूँ तैर रहे थे जैसे की वे खिलौने हो और वे रिमोट दबाते ही टप्प से नीचे गिर पड़ेंगे ! फिजा में बहकती हुई फूलो की भीनी-भीनी दीवानी खुशबू सुबह को और भी खुशनुमा बना रही थी ! दूर कहीं मंदिर से शंख-ध्वनि और घंटियों एवं मंजीरो के मधुर ध्वनि के साथ राम-राम -- सीता-राम की आवाज़ कर्णप्रिय लग रही थी ... सच में आज का प्रातः कालीन दृश्य कितना अद्भुत,कितना खुशनुमा था !!

मीतू ....Copyright ©

चल न पाए कभी इस दुनिया के बाज़ार में ,
लोग कहते है की सिक्के खोटे है हम ...
कहने वाले तो कहते है हमें घमंडी भी ,
पर रातो में अक्सर रोते है हम ....
जो भी मिलता है उसे बना लेते है अपना ,
फिर अपनों को ही खोते है हम ....
टूटती है रोज़ आशा की कोई "किरण"...
फिर एक नई उम्मीद के बीज बोते है हम !!
___________________________

______ किरण मीतू Copyright ©
१०-११-२०११---२१:३०

मुझे प्यार था एक पुष्प  से ,
इतना प्यार की ,
मुझे डर होने लगा कि-
कहीं प्रजिन के तेज़ झोंको से बिखर न जाए उसकी मासूम पंखुड़ियाँ ...
कहीं धुप की प्रखर किरणे झुलसा न दे उसको ..
कहीं कोई पडोसी तोड़  न ले जाए उसको चुपके से ....!
यह सब ख्याल करके ,
की अब रहे सुरक्षित वह...
मैंने बंद कर दिया उसे एक मजबूत बक्से में !
लेकिन वह तो फिर भी मर गया ...
नही बचा सका उसे मेरा प्यार .................!!

क्योकि मेरा उस पुष्प से प्यार तो अथाह था किन्तु संवेदना अंशमात्र न थी !!

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किरण श्रीवास्तव मीतू Copyright © 30 nov २०११ रात्रि ९:४०

   पता नहीं कैसे और क्यों हुआ
        पर जो हुआ लगता है अच्छा हुआ
        मुझे तो तुम  से प्यार हुआ
        बस तुम्ही से इकरार हुआ
        यह दिल अब तो तुम्हारे  लिए तरसता है
        तुम्हारी  मुस्कुराहट पर जान छिड़कता है
        तुम्हारी  हर सांस पे जीती हूँ
        तुम्हारी  हर सांस पर ही  मरती हूँ
        लाखों-लाखों बार कहती हूँ
        हाँ, मैं तुमसे प्यार करती हूँ
        रात और दिन तुम्हारा ही इंतज़ार करती हूँ
        दिल की अरमानों का इजहार करती हूँ
        अब कोई दिखता नहीं तुमसे अच्छा
        कोई हो भी तो मैं इनकार करती हूँ
        हर पल नज़र में तुम ही दिखते हो
        तुम्ही हो जिससे मैं प्यार करती हूँ
        तुम्हारी खुशबू बसी है मेरे रूह तक में
        तुम हो बस मेरे ,मैं तेरी स्वीकार करती हूँ
      
         दूर क्यों हो अब आ भी जाओ ना
        मैं तुम्हे बहुत ही याद करती हूँ
        तुम ही बसे हो मेरे रोम रोम में
        यही तो तुझसे फ़रियाद करती हूँ.
        मैं तुम्हे इतना प्यार करती हूँ
        हाँ ,मैं तुमसे प्यार करती हूँ....
        ____________ मीतू !

ख्वाबों में हर पल बसे हैं आप ,
सांसों एहसासों में रमे हैं आप !
नींद से भी जगा जाते हैं आप ,
तन्हाई में भी गुदगुदा जाते हैं आप !!
मेरी रातें आपकी खुशबू से बसी रहती हैं !
लगे आपकी पलकें मुझ पे झुकी रहती हैं !!

अब तो आपके लिए ही जीने को दिल चाहता है !
आपके ही आगोश में खो जाने को दिल चाहता है !!
_____________ मीतू !!

खानाबदोश की तरह जिंदगी ठहरी मेरी...जिस जगह रुक जाऊ बस वही बसेरा...न कोई घर , न मकान , न ही कोई आत्मीय जन ... ठहरती, रूकती , चलती रहती हु मैं...जगह-जगह यादे छोड़ आती हूँ मैं...ले आती हूँ वहाँ की यादे...कभी किसी नदी के किनारे रेत सी बिछ जाती हूँ...तो किसी धरती पर मिट्टी की तरह बिखर जाती हूँ...इस निसंग आकाश में भी तो मेरी आँखों का सूनापन ही दिखता है...क्या पता की मेरे आज का कल क्या होगा...मिल जाउंगी मिट्टी में या गुम हो जाउंगी सितारों में..!

कौन है भला मुझे ढूंढने वाला ? किसको है मेरी प्रतीक्षा ??

_______किरण श्रीवास्तव मीतू Copyright ©

आसमान में बादलो के ढेर की तरह ,
हर रोज़ जमा होते है मेरी पलकों में तुम्हारे सपने ..
तुम से ही गुलजार मेरा प्रांतर ,
जैसे संतुष्ट मन खिला-खिला सा !!

जाने कितना अर्सा हो गया ,
मैंने तुम्हे देखा ही नही ..
लेकिन तुम्हारी वो मीठी सी आवाज़ ..
घोलती रहती है मिश्री मेरे कानो में ..
देती है एहसास तुम्हारे आस-पास ही होने का
और मैं हो उठती हूँ रोमांचित ,
तुम्हारी कल्पना मात्र से ही !!

तुम संग मेरे दिन खिलखिलाहट भरे ,
राते महकी -बहकी सी !

अब फिर कब आओगे ,
अब आ भी जाओ न ...
बर्फीले अंधियारे में , मेरे लिए धुप का उत्ताप लेकर ...
आखिर कब आओगे ?
तमाम यादे, ख्वाहिशे ,ख्वाब
जो की तुम्हे ही लेकर है
मेरी पलकों पर जमा होते जा रहे है !

कैसे बयां करू
कहा न ,
आज मुझे तुम्हारी बहुत याद आ रही है !!!!!!.

_____________किरण श्रीवास्तव मीतू Copyright ©
११ सितम्बर २०११ रात्रि ९:४० ..

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12:04 PM
8:24 PM

एक नन्हा-सा ख्वाब पल रहा है आँखों में ,
कुछ प्यारे -से सपने बुने है मन ने ,
आशाओं की भी लौ टिमटिमा रही है __
तुम आओगे रहोगे जिंदगी में मेरी
पूरा करोगे उस कमी को ,
जो मेरी आसूओ में है ढली !

तुम्हारी प्यारी मुस्कराहट ,
तुम्हारे दिखाए सपने,
देखो सपने ही न रह जाए ...

तुम हकीकत में तो बदलोगे न इसे ??



_____________किरण श्रीवास्तव मीतू Copyright ©

आजकल मैं बेहद नाराज हूँ ,
तुमसे नही खुद से ही !
मुझे सम्हालने का दावा करते -करते ,
देखो तो ,तुमने मुझे किस रास्ते पर ला दिया !
मैं भी तुम्हारे पुरुषार्थ पर यकीन करके ,
आँख मूंदकर तुम्हारे इशारे को ,
अपनी मंजिल समझकर बढती गई ,,,
नही मालूम था की उस कमजोर शरीर में ,
एक कमजोर मन का निवास है ,
जो नही समझ सकता मेरी संवेदनाओं को,
असमर्थ है पूरा करने में अपने दावों को !

आज फिर मैं असहाय -आकुल-व्याकुल -सी ,
बेजान होकर जैसे डूबती जा रही हूँ गहरे जल में ,,,
नही समझ पा रही हूँ कि
इन परिस्थितियों में मैं क्या करूँ ?
अजनबियत से भरे दिन में ,
चिलचिलाती हुई धुप में ,
थक गई हूँ मैं खुद को ही ढ़ोते-ढ़ोते !
अब तो जीने कि इच्छा ही शेष नही ,
लेकिन मुर्दे भी कभी दुबारा मरते है कहीं ???

_____________ मीतू --प्रातः ९:१०

बरसो दुनिया की भीड़ में खोये रहने के बाद
आज ये अनुभूतियाँ कैसी है ?
क्यूँ भोर में भैरवी के साथ ,
दुपहरिया में दरबारी का आनंद लेते
रात का मालकौस गुनगुनाते
खो जाती हूँ ......
सोचने लगती हूँ अपने बारे में ,
हो जाती है फिर से  जीने की लालसा !
क्या होने लगा है मुझे मेरे होने का एहसास ....?

फिर वही तलाश ,
आज फिर छू गई एक अनाम गंध ,
फिर लगा नही रितेगी इसकी ख़ुशबू ,
शायद बने कोई आशियाना .....

पर फिर हंस पड़ी दूनिया ,
बदल गया रुख हवाओं का
तेज़ धूप ने रास्ता और लंबा कर दिया .....

और शुरू हो गई फिर वही तलाश !!!


_______मीतू किरण श्रीवास्तव Copyright ©, 
३०-५-२०११ ---रात्री ११:११

जब- जब धधकी है धर्म की आग ,
मानवता जलकर हो गई ख़ाक !
इंसान के प्रति प्रचंड नफ़रत पालकर ,
उसी ख़ाक पर उड़ाये जाते है विजय-निशान !

_____ meetu १७-७-२०११ रात्रि ९:३५ !!

मैंने कई बार चाहा की
तुमसे कहूँ
मुझे एक शाम सिंदूरी दे दो ......!

मैं थक चुकी हूँ ,
टुकडो में जीते हुए
मुझे एक जिंदगी पूरी दे दो ....!

आँखों में छुपा लू
मन में बसा लू
मेरे मन को स्मृतियों की मयूरी दे दो ...!

है अगर कोई बंधन
तो मुझसे कहो
काट डालू मैं वो बंधन,मुझे सिर्फ मंजूरी दे दो..... !

तुम्हारे पास है
और मैं भटक रही हूँ
तुम मुझे मेरी कस्तूरी दे दो ..!!

___________मीतू !!
११:१५ रात्रि १६-७-२०११

10:44 PM
6:52 PM

कहने को तो हमसफ़र थे वह ,
और कई राते गुजारी तनहा मैंने ...

बारिश की बूंदों ने ,स्याह तन्हा रातो ने ,
और इस चाँद ने भी -
बार-बार सवाल किया ....
किसके ख़याल में डूबी हुई हो तुम ...

क्या कहूँ तुमसे ,
शिकवा नही फिर भी
दिल पर एक चोट सी लगी ....


_______मीतू Copyright © ३० जून २०११ प्रातः ९:५०

7:51 AM

प्रिय,तुम कैसे हो ...
तुम कैसे हो,प्रिय ..
मेरा दिल कतरा-कतरा पिघलता है तुम्हारे लिए ...
तुम्हे भी कुछ ऐसा होता है क्या ?

सो जाता है ये सारा चंचल शहर
मैं तुम्हारी यादो के साए से लिपटी.
करवटे बदलती रहती हूँ सारी - सारी रात...
दरअसल, सिर्फ तुम ही समझ सकते हो ,
की किस तरह से मैं भींगती हूँ मन ही मन में ,
तुम्हारी यादो की बारिश से !

सबको दिखती है इस शहर की रंगीनिया ,
मुझे अब इस निसंग आकाश के अलावा कुछ भी नही दिखता ..
इस अंधड़ , बारिश और मेरे कंधो से लगती हुयी तेज़ हवाओ में ,
अब सिर्फ तुम्हारा ही एहसास है !

जीवन उड़ता ही जा रहा है किसी चपल समुद्री पाखी की तरह,
न मालूम कहाँ , किस ओर ...
अब कोई अलविदा भी नही कहता ,
कोई सर की कसम भी नही देता की वापस लौट आओ !

मैं बिलकुल भी कुशल नही हूँ लेकिन तुम सकुशल रहना,मेरे प्रिय !!

-------------- मीतू Copyright ©, रात्रि ९:४५ २८ मई २०११ !

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इंतहा मुश्किल था ,
किसी को अपने दिल का राज़ बताना ,
उसे अपनी जिंदगी में शामिल करना ,
और अपनी जिंदगी का
राजदार बनाना -
जब हम करीब होते हुए भी दूर थे |

अब हालात यह है कि
हम दूर होते हुए भी दूर है |

फिर सच्चाई तो यही है कि -
नदियों के दो किनारे ,
आपस में कभी मिलते ही नही !
शायद, हमारी किस्मत में
यही लिखा हो कि
हम मिलकर भी नही मिलेंगे कभी |
_________________मीतू Copyright

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  • संवेदना

    क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!! ---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!

    अपने दायरे !!

    अपने दायरे !!
    कुछ वीरानियो के सिलसिले आये इस कदर की जो मेरा अज़ीज़ था ..... आज वही मुझसे दूर है ..... तल्ख़ हुए रिश्तो में ओढ़ ली है अब मैंने तन्हाइयां !! ......... किरण "मीतू" !!

    स्पंदन !!

    स्पंदन !!
    निष्ठुर हूँ , निश्चल हूँ मैं पर मृत नही हूँ ... प्राण हैं मुझमे ... अभी उठना है दौड़ना हैं मुझे ... अपाहिज आत्मा के सहारे ... जीना है एक जीवन ... जिसमे मरण हैं एक बार ... सिर्फ एक बार !! ..... किरण " मीतू" !!

    सतरंगी दुनिया !!

    सतरंगी दुनिया !!
    आस-पास , हास-परिहास , मैं रही फिर भी उदास ...आत्मा पर पड़ा उधार , उतारने का हुआ प्रयास ... खुश करने के और रहने के असफल रहे है सब प्रयास !! ..... किरण "मीतू" !!

    उलझन !!

    उलझन !!
    अकेले है इस जहां में , कहाँ जाए किधर जाए ! नही कोई जगह ऐसी की दिल के ज़ख्म भर जाए !! ... किरण "मीतू" !

    तलाश स्वयं की !!

    तलाश स्वयं की !!
    कुछ क्षण अंतर्मन में तूफ़ान उत्पन्न कर देते है और शब्दों में आकार पाने पर ही शांत होते है ! ..... मीतू !!

    ज़ज़्बात दिल के !

    ज़ज़्बात दिल के !
    मंजिल की तलाश में भागती इस महानगर के अनजानी राहो में मुझे मेरी कविता थाम लेती है , मुझे कुछ पल ठहर जी लेने का एहसास देती है ! मेरी कविता का जन्म ह्रदय की घनीभूत पीड़ा के क्षणों में ही होता है !! ..... किरण "मीतू" !!

    मेरे एहसास !!

    मेरे एहसास !!
    मेरे भीतर हो रहा है अंकुरण , उबल रहा है कुछ जो , निकल आना चाहता है बाहर , फोड़कर धरती का सीना , तैयार रहो तुम सब ..... मेरा विस्फोट कभी भी , तहस - नहस कर सकता है , तुम्हारे दमन के - नापाक इरादों को ---- किरण "मीतू" !!

    आर्तनाद !

    आर्तनाद !
    कभी-कभी जी करता है की भाग जाऊं मैं , इस खुबसूरत ,रंगीन , चंचल शहर से !! दो उदास आँखे .....निहारती रहती है बंद कमरे की उदास छत को ! . ..लेकिन भागुंगी भी कहाँ ? कौन है भला , जो इस सुन्दर सी पृथ्वी पर करता होगा मेरी प्रतीक्षा ? ..... किरण "मीतू" !!

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !
    प्रकृति की गोद में बिताये बचपन की मधुर स्मृतियाँ बार-बार मन को उसी ओर ले जाती है ! मानव जीवन में होने वाली हर बात मुझे प्रकृति से जुडी नज़र आती है तथा मैं मानव जीवन तथा प्रकृति में समीकरण बनाने का प्रयास करती हूँ !....किरण "मीतू

    कविता-मेरी संवेदना !!

    कविता-मेरी संवेदना !!
    वेदना की माटी से , पीड़ा के पानी से , संवेदनाओ की हवा से , आँसूवो के झरनों से ! कोमल मन को जब लगती है चोट , निकलता है कोई गीत , और बनती है कोई कविता !! ..... मीतू !!
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