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- कोई तो होता ,
जो रस्मो रिवाज़ों से हटकर भी मेरा साथ देता ,
जो गुनगुनाता मेरे एहसासो को ,
शब्दों से परे भी सुनता मेरे ज़ज़्बातो को ,
कोई तो होता ,
जो बारिशो में फिक्रमंद होते हुए
मेरे लिए सिर्फ छतरी ही न लाता
बल्कि मेरे साथ भींगता वो फुहारों में !
कोई तो होता ,
जो गुणा -भाग-जोड़ -घटाना -हासिल छोड़कर
तितलियों के परो पर रखे हुए
रंगीन सपनो के पीछे
मेरे साथ दौड़ता -भागता !
कोई तो होता ,
रस्मो रिवाजो से परे भी मेरे साथ होता !!
______ किरण !
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कपास के पतली बारीक तंतुओं जैसे, धवल बादल से,
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आखिर क्यों है
फिर भी तुम पूछते हो तो लो सुनो -
7:05 p.m. -- 14/11/2014
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दोस्तों
,
आज शाम लगभग ६:३० पर जब मैं पेट्रोल भरवाने गई, वहाँ सड़क के किनारे कुछ
काम चल रहा था , सड़क खुदी पड़ी थी ...कुछ अन्धेरा भी था ... अचानक मेरी
गाडी एक छोटे -से ईंट के टुकड़े पर चढ़कर गिरते-गिरते सम्हली .....मैंने गाडी
रोकर सोचा की उस ईंट को वहाँ से हटा दू , कही कोई और न गिर कर चोटिल हो
जाए !
मैं जैसे ही उस ईंट को उठाने के लिए झुकी , वहाँ मुझे अँधेरे में पड़ा हुआ मोबाइल दिखा , मैंने उसे उठाया ,
देखा ... फिर पत्थर को एक साइड में फेंक कर अपनी भी गाडी साइड में लगाई
.... मोबाइल को फिर से देखा .... मोबाइल अनलाक था .... अहा, क्या खुबसूरत
मोबाइल ... थोडा और ध्यान दिया ..अह्हा !!! नोकिया लुमिया !! ग्रेट यार !!
..... मन का शैतान खींसे निपोर कर हंसा -- " क्या गज़ब मेहरबान हुआ है आज
ईश्वर मुझ पर , क्या गज़ब फीचर है ,,, क्या फोटो-शोटो है ,,, क्या गाने
दिखते है यार ... वाह बेटा मीतु , तेरी तो आज लोटरी लग गई रे .... तेरी तो
सब पर रोब जम गई . !''
मैं उस के फीचर-शीचर लगभग १५ मिनट तक देखती
रह गई ....... दिल ने कहा '' खरीदने वाले ने जाने कितने शौक से इतना मंहगा
मोबाइल खरीदा होगा .....उसे जब पता चलेगा तब कितना परेशान होगा बेचारा
.... नही , नही यह गलत होगा !''
मैंने अपनी उस गन्दी सोच को
धिक्कारा और सोच लिया की किसी भी तरह इस मोबाइल को उसके मालिक तक पहुचाना
ही है ...... कुछ दूर पर ही पुलिस वाले भी खड़े थे किन्तु उन्हें वह मोबाइल
देने का दिल नही किया ..... मैंने गाडी में पेट्रोल भरवाया ..... फिर
पेट्रोल पम्प से ही उसके स्पेशल कांटेक्ट नंबर जो की स्क्रीन पर ही दिख रहे
थे ,उन पर उसी फोन से कॉल किया ..... अपने घर का मैंने एड्रेस बताया और
कहा की '' जिस बन्दे का यह फोन हो उन्हें इन्फोर्म करे की वह इस फोन के
रसीद के साथ ही आये और अपना फोन ले जाए '' !
करीब आधे घंटे के
अन्दर ही एक बंदा अपनी बेटी के साथ ( जो कि करीब २ वर्ष कि रही होगी ) इक
डिब्बा काजू-कतली और चोकलेट लेकर आया .... उसने बताया कि वही पर उसकी
गाड़ी भी स्लीप हुयी थी .... और पत्नी द्वारा दुसरे नंबर पर फोन आने से
पहले तक उसे मालूम ही न था कि उसका फोन गुम भी हो चुका है ..... फिर वह घर
गया , रसीद लिया और यहाँ आया !
वह बहुत खुश था ..... उसकी ख़ुशी
देखकर मुझे एवं मेरे परिवार को भी बहुत खुश हुयी .... उसकी बच्ची बहुत
प्यारी थी , जल्द ही घुल-मिल गई ........ जाते -जाते एक प्यारा -सा रिश्ता
भी बना लिया "मीतु-बुआ " ......:) ---- 21 jan 2012
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चल न पाए कभी इस दुनिया के बाज़ार में , लोग कहते है की सिक्के खोटे है हम ... कहने वाले तो कहते है हमें घमंडी भी , पर रातो में अक्सर रोते है हम .... जो भी मिलता है उसे बना लेते है अपना , फिर अपनों को ही खोते है हम .... टूटती है रोज़ आशा की कोई "किरण"... फिर एक नई उम्मीद के बीज बोते है हम !! ___________________________ ______ किरण मीतू Copyright © १०-११-२०११---२१:३० |
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मुझे प्यार था एक पुष्प से ,
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पता नहीं कैसे और क्यों हुआ पर जो हुआ लगता है अच्छा हुआ मुझे तो तुम से प्यार हुआ बस तुम्ही से इकरार हुआ यह दिल अब तो तुम्हारे लिए तरसता है तुम्हारी मुस्कुराहट पर जान छिड़कता है तुम्हारी हर सांस पे जीती हूँ तुम्हारी हर सांस पर ही मरती हूँ लाखों-लाखों बार कहती हूँ हाँ, मैं तुमसे प्यार करती हूँ रात और दिन तुम्हारा ही इंतज़ार करती हूँ दिल की अरमानों का इजहार करती हूँ अब कोई दिखता नहीं तुमसे अच्छा कोई हो भी तो मैं इनकार करती हूँ हर पल नज़र में तुम ही दिखते हो तुम्ही हो जिससे मैं प्यार करती हूँ तुम्हारी खुशबू बसी है मेरे रूह तक में तुम हो बस मेरे ,मैं तेरी स्वीकार करती हूँ दूर क्यों हो अब आ भी जाओ ना मैं तुम्हे बहुत ही याद करती हूँ तुम ही बसे हो मेरे रोम रोम में यही तो तुझसे फ़रियाद करती हूँ. मैं तुम्हे इतना प्यार करती हूँ हाँ ,मैं तुमसे प्यार करती हूँ.... ____________ मीतू ! |
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ख्वाबों में हर पल बसे हैं आप ,
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खानाबदोश की तरह जिंदगी ठहरी मेरी...जिस जगह रुक जाऊ बस वही बसेरा...न कोई घर , न मकान , न ही कोई आत्मीय जन ... ठहरती, रूकती , चलती रहती हु मैं...जगह-जगह यादे छोड़ आती हूँ मैं...ले आती हूँ वहाँ की यादे...कभी किसी नदी के किनारे रेत सी बिछ जाती हूँ...तो किसी धरती पर मिट्टी की तरह बिखर जाती हूँ...इस निसंग आकाश में भी तो मेरी आँखों का सूनापन ही दिखता है...क्या पता की मेरे आज का कल क्या होगा...मिल जाउंगी मिट्टी में या गुम हो जाउंगी सितारों में..! कौन है भला मुझे ढूंढने वाला ? किसको है मेरी प्रतीक्षा ?? _______किरण श्रीवास्तव मीतू Copyright © |
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आसमान में बादलो के ढेर की तरह , हर रोज़ जमा होते है मेरी पलकों में तुम्हारे सपने .. तुम से ही गुलजार मेरा प्रांतर , जैसे संतुष्ट मन खिला-खिला सा !! जाने कितना अर्सा हो गया , मैंने तुम्हे देखा ही नही .. लेकिन तुम्हारी वो मीठी सी आवाज़ .. घोलती रहती है मिश्री मेरे कानो में .. देती है एहसास तुम्हारे आस-पास ही होने का और मैं हो उठती हूँ रोमांचित , तुम्हारी कल्पना मात्र से ही !! तुम संग मेरे दिन खिलखिलाहट भरे , राते महकी -बहकी सी ! अब फिर कब आओगे , अब आ भी जाओ न ... बर्फीले अंधियारे में , मेरे लिए धुप का उत्ताप लेकर ... आखिर कब आओगे ? तमाम यादे, ख्वाहिशे ,ख्वाब जो की तुम्हे ही लेकर है मेरी पलकों पर जमा होते जा रहे है ! कैसे बयां करू कहा न , आज मुझे तुम्हारी बहुत याद आ रही है !!!!!!. _____________किरण श्रीवास्तव मीतू Copyright © ११ सितम्बर २०११ रात्रि ९:४० .. ●●●▬▬▬▬▬▬▬●●●▬▬▬▬▬▬▬●●● |
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एक नन्हा-सा ख्वाब पल रहा है आँखों में ,
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आजकल मैं बेहद नाराज हूँ , तुमसे नही खुद से ही ! मुझे सम्हालने का दावा करते -करते , देखो तो ,तुमने मुझे किस रास्ते पर ला दिया ! मैं भी तुम्हारे पुरुषार्थ पर यकीन करके , आँख मूंदकर तुम्हारे इशारे को , अपनी मंजिल समझकर बढती गई ,,, नही मालूम था की उस कमजोर शरीर में , एक कमजोर मन का निवास है , जो नही समझ सकता मेरी संवेदनाओं को, असमर्थ है पूरा करने में अपने दावों को ! आज फिर मैं असहाय -आकुल-व्याकुल -सी , बेजान होकर जैसे डूबती जा रही हूँ गहरे जल में ,,, नही समझ पा रही हूँ कि इन परिस्थितियों में मैं क्या करूँ ? अजनबियत से भरे दिन में , चिलचिलाती हुई धुप में , थक गई हूँ मैं खुद को ही ढ़ोते-ढ़ोते ! अब तो जीने कि इच्छा ही शेष नही , लेकिन मुर्दे भी कभी दुबारा मरते है कहीं ??? _____________ मीतू --प्रातः ९:१० |
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बरसो दुनिया की भीड़ में खोये रहने के बाद आज ये अनुभूतियाँ कैसी है ? क्यूँ भोर में भैरवी के साथ , दुपहरिया में दरबारी का आनंद लेते रात का मालकौस गुनगुनाते खो जाती हूँ ...... सोचने लगती हूँ अपने बारे में , हो जाती है फिर से जीने की लालसा ! क्या होने लगा है मुझे मेरे होने का एहसास ....? फिर वही तलाश , आज फिर छू गई एक अनाम गंध , फिर लगा नही रितेगी इसकी ख़ुशबू , शायद बने कोई आशियाना ..... पर फिर हंस पड़ी दूनिया , बदल गया रुख हवाओं का तेज़ धूप ने रास्ता और लंबा कर दिया ..... और शुरू हो गई फिर वही तलाश !!! _______मीतू किरण श्रीवास्तव Copyright ©, ३०-५-२०११ ---रात्री ११:११ |
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मैंने कई बार चाहा की
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प्रिय,तुम कैसे हो ... तुम कैसे हो,प्रिय .. मेरा दिल कतरा-कतरा पिघलता है तुम्हारे लिए ... तुम्हे भी कुछ ऐसा होता है क्या ? सो जाता है ये सारा चंचल शहर मैं तुम्हारी यादो के साए से लिपटी. करवटे बदलती रहती हूँ सारी - सारी रात... दरअसल, सिर्फ तुम ही समझ सकते हो , की किस तरह से मैं भींगती हूँ मन ही मन में , तुम्हारी यादो की बारिश से ! सबको दिखती है इस शहर की रंगीनिया , मुझे अब इस निसंग आकाश के अलावा कुछ भी नही दिखता .. इस अंधड़ , बारिश और मेरे कंधो से लगती हुयी तेज़ हवाओ में , अब सिर्फ तुम्हारा ही एहसास है ! जीवन उड़ता ही जा रहा है किसी चपल समुद्री पाखी की तरह, न मालूम कहाँ , किस ओर ... अब कोई अलविदा भी नही कहता , कोई सर की कसम भी नही देता की वापस लौट आओ ! मैं बिलकुल भी कुशल नही हूँ लेकिन तुम सकुशल रहना,मेरे प्रिय !! -------------- मीतू Copyright ©, रात्रि ९:४५ २८ मई २०११ ! ۩๑๑۩๑๑۩๑๑๑۩๑๑๑۩๑๑๑۩๑๑๑۩๑๑๑۩๑๑๑۩๑๑๑۩๑๑๑۩ |
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इंतहा मुश्किल था , किसी को अपने दिल का राज़ बताना , उसे अपनी जिंदगी में शामिल करना , और अपनी जिंदगी का राजदार बनाना - जब हम करीब होते हुए भी दूर थे | अब हालात यह है कि हम दूर होते हुए भी दूर है | फिर सच्चाई तो यही है कि - नदियों के दो किनारे , आपस में कभी मिलते ही नही ! शायद, हमारी किस्मत में यही लिखा हो कि हम मिलकर भी नही मिलेंगे कभी | _________________मीतू Copyright ۩๑๑۩๑๑۩๑๑๑۩๑๑๑۩๑๑๑۩๑๑๑۩๑๑๑۩๑๑๑۩๑๑๑۩๑๑๑۩ |
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