अपने घर में प्रवासी ,
अपने शहर में भी प्रवासी  .!
खानाबदोश है जिंदगी ...
और हर जगह मैं प्रवासी !

तब कहाँ है मेरा घर ,
मेरा प्यारा सुन्दर घर ..?
मेरे ख्वाबो का घर ..?

मैं जानू .. मेरी आत्मा जाने ...
मेरे ख्वाबो में है मेरा घर !!!

________ किरण Copyright ©.. २०:५७ .. ३०/३/२०१२

12 Responses to "प्रवासी !"

  1. kalp verma Says:

    bahut khub likha hai....kabhi samay ho to mere blog pe bhi padhariye...
    http://kalpverma.blogspot.com

  2. niraj Says:

    NICE YOUR THOUGHT IS VERY HIGH. IT IS VERY TRUE LINE OUR LIFE.

  3. Nsingh Says:

    mera ghar-
    mujhamain hai mera ghar, diwav bhi main hi hoon ore chhat bhi main rasta bhi main ore kinara bhi main bas thodha ......kamjor bhi main or takat bhi mai
    mat ho hatash kar sabako niras

  4. hanuman Says:

    ka khub samvedanya parkat keya ha...

  5. hanuman Says:

    bhaut acha

  6. a k mishra Says:

    बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना...किरण जी...दिल का दर्द ,मन की व्यथा को अभिव्यक्त करती आपकी ये करुणास्पद पंक्तियाँ किसी के भी अंतर्मन को झकझोड़ सकती हैं.जिंदगी की कटु सच्चाई को उजागर करती है आपकी भावमयी यह रचना..वैयक्तिक अनुभूति हो या सामाजिक परिवेश की संवेदना ,है यह बिलकुल यथार्थपरक अनुभूतिगम्य अभिव्यक्तिपूर्ण रचना..थोड़ी-सी निराशा लेकिन मन में है एक आशा...प्रवासी जीवन का दुःख-दर्द को उजागर करती ख्वाबों में एक खुबसूरत कल्पना के साथ अपने घर की खुबसूरत अभिलाषा को मूर्त रूप देने की ललक ... अबतक उसके पूरा न होने के दर्द की करुण तड़फ की झलक ... आपकी इन संवेदनात्मक पंक्तियों में नारी मन की संवेदनात्मकता का पूरा एहसास मिल जाता है ...
    क्या कहूँ ..पुरुष होने के नाते इतना तो कहूँगा ही पुरुष का चित्त भी खानाबदोश होता है. घर बनाना या बसाना तो स्त्री ने सिखाया है वरना यूँ ही जिंदगी मारी-मारी फिरती है.स्त्री ही हर चीज में स्थायित्व ढूँढती है और जीवन में स्थायित्व लाती है.नारी के बिना कैसा घर ?
    निराशा के बीच ही आशा की किरण फूटती है..अच्छा है ख्वाब कायम है..सपना है तो साकार जरूर होगा...मेरी तो यही शुभकामना होगी..
    मत हो तू उदास,रहे खुशियाँ तेरे पास
    गम का बादल तुझपे कभी छाने न पाए
    कमल-सा ये चेहरा मुर्झाने न पाए
    स्वप्न आँखों का कभी न टूटे
    जिंदगी की दौड़ में तू पीछे न छूटे ..:)

  7. Susheel Says:

    Ultimate .........u know how to give words to a thought jumping in mind..

  8. bherunath101 Says:

    This is so because you do nothing that'swhy these views arise ...............apeksha ke bad upeksha aati hai

  9. shahnawaz alam Says:

    shandar... plz watch my blog. 4 ghazal... loveall-shahnawaz.blogspot.com.

  10. Madhuresh Says:

    अच्छा लिखा है आपने, शुभकामनाएं!

  11. Yash Says:

    Really very nice thought.its a touchable for heart. u know reading your blog and given comments my eyes are wet.good work Kiran ji.

  12. go through Says:

    i dont know what to say, but every poem has got deep feelings. i was never ineterested in any kind of poems, but after reading yours i am speechless.,

Post a Comment

  • संवेदना

    क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!! ---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!

    अपने दायरे !!

    अपने दायरे !!
    कुछ वीरानियो के सिलसिले आये इस कदर की जो मेरा अज़ीज़ था ..... आज वही मुझसे दूर है ..... तल्ख़ हुए रिश्तो में ओढ़ ली है अब मैंने तन्हाइयां !! ......... किरण "मीतू" !!

    स्पंदन !!

    स्पंदन !!
    निष्ठुर हूँ , निश्चल हूँ मैं पर मृत नही हूँ ... प्राण हैं मुझमे ... अभी उठना है दौड़ना हैं मुझे ... अपाहिज आत्मा के सहारे ... जीना है एक जीवन ... जिसमे मरण हैं एक बार ... सिर्फ एक बार !! ..... किरण " मीतू" !!

    सतरंगी दुनिया !!

    सतरंगी दुनिया !!
    आस-पास , हास-परिहास , मैं रही फिर भी उदास ...आत्मा पर पड़ा उधार , उतारने का हुआ प्रयास ... खुश करने के और रहने के असफल रहे है सब प्रयास !! ..... किरण "मीतू" !!

    उलझन !!

    उलझन !!
    अकेले है इस जहां में , कहाँ जाए किधर जाए ! नही कोई जगह ऐसी की दिल के ज़ख्म भर जाए !! ... किरण "मीतू" !

    तलाश स्वयं की !!

    तलाश स्वयं की !!
    कुछ क्षण अंतर्मन में तूफ़ान उत्पन्न कर देते है और शब्दों में आकार पाने पर ही शांत होते है ! ..... मीतू !!

    ज़ज़्बात दिल के !

    ज़ज़्बात दिल के !
    मंजिल की तलाश में भागती इस महानगर के अनजानी राहो में मुझे मेरी कविता थाम लेती है , मुझे कुछ पल ठहर जी लेने का एहसास देती है ! मेरी कविता का जन्म ह्रदय की घनीभूत पीड़ा के क्षणों में ही होता है !! ..... किरण "मीतू" !!

    मेरे एहसास !!

    मेरे एहसास !!
    मेरे भीतर हो रहा है अंकुरण , उबल रहा है कुछ जो , निकल आना चाहता है बाहर , फोड़कर धरती का सीना , तैयार रहो तुम सब ..... मेरा विस्फोट कभी भी , तहस - नहस कर सकता है , तुम्हारे दमन के - नापाक इरादों को ---- किरण "मीतू" !!

    आर्तनाद !

    आर्तनाद !
    कभी-कभी जी करता है की भाग जाऊं मैं , इस खुबसूरत ,रंगीन , चंचल शहर से !! दो उदास आँखे .....निहारती रहती है बंद कमरे की उदास छत को ! . ..लेकिन भागुंगी भी कहाँ ? कौन है भला , जो इस सुन्दर सी पृथ्वी पर करता होगा मेरी प्रतीक्षा ? ..... किरण "मीतू" !!

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !
    प्रकृति की गोद में बिताये बचपन की मधुर स्मृतियाँ बार-बार मन को उसी ओर ले जाती है ! मानव जीवन में होने वाली हर बात मुझे प्रकृति से जुडी नज़र आती है तथा मैं मानव जीवन तथा प्रकृति में समीकरण बनाने का प्रयास करती हूँ !....किरण "मीतू

    कविता-मेरी संवेदना !!

    कविता-मेरी संवेदना !!
    वेदना की माटी से , पीड़ा के पानी से , संवेदनाओ की हवा से , आँसूवो के झरनों से ! कोमल मन को जब लगती है चोट , निकलता है कोई गीत , और बनती है कोई कविता !! ..... मीतू !!
Blogger Templates