आज
शाम को मौसम अचानक सुहाना हो गया ... ठंडी-ठंडी हवाओ के बीच हलकी-हलकी
बूंदा-बाँदी खिंच ले गई मुझे झील के किनारे ! झील के जल की शीतल स्निग्धता
मेरी पोर-पोर में ठंडक भरती रही ... लोगो को बोट पर सैर करते देखते हुए
मेरा भी मन मचल उठा .... मैंने भी एक पैडल बोट लिया और खुद पैडल चलाती
हुयी लहरों में छ्लात -छ्लात की आवाज़ उठाती रही ...! पानी की आवाजे ...
मानो कोई शोर नही .. कोई मीठा-मीठा संगीत हो ! मैं पानी के बीच तैरती हुई
समूचे आकाश में बादलो और घटाओ की आँख-मिचौली देखती रही ! मोहक प्रकृति का
नज़ारा करते-करते ... मुझे तैरते -बहते शाम की सतरंगी आभा आसमान पर ही नही ,
मेरे अंग-अंग पोर-पोर में उतर आई ! मेरे अन्दर एक चाह -सी जाग
उठी -- काश , यह बोट इसी तरह तैरती रहे ... मैं भी इसी तरह सैर करती रहूँ
.... यह लहरे जिंदगी भर जलतरंगो से उत्पन्न संगीत के ताल पर झूला झुलाती
रहे .... किसी किनारे या किसी गंतव्य पर न पहुंचे , बस , जिंदगी इसी तरह
तैरती रहे ! मेरा यह भी मन हुआ की अचानक मेरे दो पंख निकल आये .... मैं
समूचे आकाश में उडती फिरू .... उन रंगों के बिलकुल करीब पहुँच जाऊं ... और
फिर धीरे -धीरे उन्ही रंगों में समा जाऊं !!!!!! ______________________ किरण मीतू !!
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April 24, 2012 at 9:55 PM �
काश , की मैं चिरैया ही बन जाती .... और किसी दिन शायद सचमुच ही आकाश में उड़ान भरती हुई सूर्यास्त के रंगों के करीब पहुँच जाती !
आज झील से बाहर तो निकलने का मन नही हो रहा था ... लेकिन बाहर तो आना ही था !
इससे तो अच्छा था की मैं कही दीपांतर में जा पाती ! अगर ऐसा हो पता तो मैं सच ही सुख के सागर में नहा उठती !!!!!!
May 11, 2012 at 9:03 PM �
लाजवाब! मितुजी,
श्री हरीश खेतानी "हरि"
May 12, 2012 at 8:15 AM �
किरण जी बहुत बहुत बधाई और धन्यबाद की हमे ये सब कुछ पढ़ने का आपके द्वारा मोका मिला। बहुत खूबशूरत । ।
May 12, 2012 at 8:16 AM �
बहुत खूबशूरत
May 13, 2012 at 8:08 PM �
kaash shabd khud me ek khubsurat ehsaas hai...kaash se hi humari insaniyat ke saare sapne pure hue...
ye kaash hi pankh lagakar hawao me udata hai...kaash se duniya ki ruh me rang kayam hai ..aur kaash se nikalti hui ek bechaini jeene ke naye jharokhe khol deti hai...
kabhi socha hoga kisi shayar ne..
kaash meri kalam ki awaz aapke man ke darwaazo par dastak de paati..
aur aaj hum type karte hai aur wo pahunch jata hai aap tak..
kaash ka ye silsila kaash yuni chalta rahe...
kaash har kaash ke yun hi sapne sach hote rahe...
May 25, 2012 at 10:33 PM �
इस प्रकार की तस्वीर किस बेवसाइट से ले सकते हैं, कृपया बताएं
ashish.contacts@rediffmail.com