नही जानती , तुम्हारी बातो में तिलिस्म है या जादू ..
फिर भी , तुम्हारी हर बात पर एतबार है मुझे !!
नही जानती , कितनी तपिश है तुम्हारे होंठो में ..
फिर भी , उन्हें छूने की कसक है मुझे !!
नही जानती , तुम्हारी आँखे आईना है या समुंदर..
फिर भी , उनमे डूबने की ख्वाहिश है मुझे !!
नही जानती , तुम्हारे साथ से मुझे क्या मिलना और क्या खोना है ..
फिर भी , उस अनुभव को पाने की तड़प है मुझे !!
नही जानती , तुम्हारा बहाव मुझे किस और ले जाएगा ..
फिर भी तुममे तिरोहित हो जाने का शौक है मुझे !!
नही जानती , तुम मेरा साथ दोगे या नही ..
फिर भी तुम्हारे लिए बगावत का हौसला है मुझे !!!!
____ किरण श्रीवास्तव Copyright © २८/९/२०१२ -- सायं ७:२६ !!
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September 28, 2012 at 9:16 PM �
खूबसूरत जज्बात भरी प्रस्तुति
September 29, 2012 at 8:36 PM �
वाह...बहुत ही सुन्दर कविता...किरण जी अतिशय भावपूर्ण और अतिशय मधुर ...आप तो शब्द-शिल्पी हैं...आपकी लेखिनी से निःसृत एक-एक शब्द दिल की आवाज बनकर बोल रहा है....जादू है इन शब्दों में...श्रृंगार रस में डूबी प्रेम की अद्भुद अभिव्यक्ति है आपकी रचना...अपने प्रिय के प्रति समर्पित एक नायिका के दिल के कोमल भावों की मनोरम उद्भूति ...पर मन में कुछ उहापोह और कसमकस भी है जिसे बड़े ही सुन्दर ढंग से उपालंभ के रूप में आपने वर्णित किया है.अच्छी बात यह है कि उहापोह और उपालंभ के बीच भी हमेशा आशावादिता है और अपने प्रिय से सकरात्मक प्रतिदान की अपेक्षा है...अपने प्रिय के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार मन अपने प्रिय से भी उसी तरह की प्रेम की आशा कर रहा है.कविता भावप्रधान है जो दिल के जज्वात को उजागर करती है..भावों के माधुर्य में जगह-जगह अतिशय विह्वलता है जो किसी के भी ह्रदय को व्याकुल कर सकती है....बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्तिपरक रचना...कोमल किशलयवत शब्दों एवं मधुर सुवासयुक्त पुष्पवत भावों से सुसज्जित है आपकी यह संवेदनात्मक काव्य-वल्लरी ...
अतिशय मनमोहक एवं मुग्धकारी और बिलकुल ही भावमयी ...
क्या कहूँ...शब्दों के लालित्य और भावों के सौन्दर्य से परिपूर्ण आपकी इस रचना-लता की सुरभि से पूरा काव्य-उपवन ही महक उठा है...संवेदना से संश्लिष्ट आपकी यह कविता दिल के कोमल तंतुओं को स्पंदित कर रही है ..भावनाओं की सीप से निकले असली मोती के सामान है आपकी यह रचना..
लेखन की अद्भुद जादूगरी है कि
बह जाती है संवेदना की सरिता
भावना आपके शब्दों में ढलकर
बन जाती है मधुर-सी कविता !!
मैं क्या कहूँ,बस इतना कहूँगा....
किसी की याद जब दिल में समाया हो
उसकी चाहत ने हर पल सहलाया हो
मन मचलता है पास आने को
जिंदगी साथ -साथ निभाने को
आँखों में सपना है तो होगा जरूर साकार
प्रिय की ओर से भी मिलेगा आपको प्यार !!
इति शुभं !!
September 30, 2012 at 7:41 AM �
mragmarichika ki tarah bhagati jeewan ke pal kuchh paane ki chahat, kuchh khone ke jajbat, har pal ek naya ahasas samay ki gati ke sath visamrat hota huaa yado ka karvan kya yahi jindagi.
October 2, 2012 at 1:36 AM �
!
khubsurat soch hai aur kubsura andaz hai apni soch ko shabdik roop dene ki,,really i liked yr poetry but jab mai is pankti ko pdha to mere mann me ik sawal utha socha aap se jaroor bantni chahiye,,,
नही जानती , तुम्हारी आँखे आईना है या समुंदर..
फिर भी , उनमे डूबने की ख्वाहिश है मुझे !
first line me poet ko ye pata nahi hai k ankhe ayina hai ya samandar phir second line me dubne ki kiun bat ki jarahi hai, ayine me to duba nahi jatasakta,aur jab poet dubne ki bat karta hai to iska matlab wo pahle se hi samander samajh raha hai ankho ko,,,,,?????
October 25, 2012 at 9:07 PM �
bahut badiya kavita likhti hai aapke vicharon se prabhavit hu me