गुंजाइशे तो थी मगर , तुमने चाहा ही कब था ??
तुमने मुझे मुहब्बत का पैगाम तो दिया , पर रंजिश को ही जीस्त समझा .... मैंने हर वक्त तुम्हारा नाम लिया ... फना के बाद भी पहचान को कायम रखा .....!
मेरी कब्र पर शमा जलाकर , तुम एहसान मत करना .. प्यार के कुछ पल एहसास के लिए छोड़ दो ...!!
मैं खुद को तुम्हारे कदमो में गिरा तो दूँ मगर , खुद्दारी का एहसास भी बहुत जरुरी है !!
__ किरण श्रीवास्तव '' मीतू'' Copyright © .. 22-1-2012 .. 22:00 pm ●●●▬▬▬▬▬▬●●●▬▬▬▬▬▬●●●
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January 23, 2012 at 11:59 AM �
behatareen prastuti.
January 23, 2012 at 3:28 PM �
बेहतरीन।
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जो मेरा मन कहे पर आपका स्वागत है
January 23, 2012 at 3:28 PM �
कल 24/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
January 24, 2012 at 6:05 AM �
बहुत सुन्दर ...
January 24, 2012 at 12:32 PM �
वाह बहुत खूब ...
January 24, 2012 at 5:17 PM �
Bahut badhiya rachna..
मेरे ब्लॉग में भी पधारें..
मेरी कविता
January 25, 2012 at 1:45 AM �
♥
मैं खुद को तुम्हारे कदमो में गिरा तो दूं
मगर ,
खुद्दारी का एहसास भी बहुत जरुरी है !!
वाह! क्या बात कही है !
किरण श्रीवास्तव "मीतू" जी
बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आ'कर…
हार्दिक शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
January 25, 2012 at 10:56 PM �
गुंजाइशे तो थी मगर ,तुमने चाहा ही कब था ?
तुम्हारे जेहनो-दिल ,पे मेरा साया ही कब था..?
अपनी ही बंदगानी में, जो रहे हो मशरुफ उनकों,
महसूसे फर्क में, अपना-पराया, ही कब था,
ओर आँख तो ,शाह्जहाँ की भी नम हुई होगी,
संगे-मर्मर एहसासे मुमताजे,मकबरा ही जब था,
February 5, 2012 at 11:24 AM �
बहुत ही सुंदर लिखा है मीतू जी अपने
आभार...........
February 25, 2012 at 10:10 PM �
bahut shandar
March 21, 2012 at 1:51 PM �
मैं खुद को तुम्हारे कदमो में गिरा तो दूँ
मगर ,
खुद्दारी का एहसास भी बहुत जरुरी है !!
waah kya bat hai marmik prastuti