प्रिय,तुम कैसे हो ... तुम कैसे हो,प्रिय .. मेरा दिल कतरा-कतरा पिघलता है तुम्हारे लिए ... तुम्हे भी कुछ ऐसा होता है क्या ?
सो जाता है ये सारा चंचल शहर मैं तुम्हारी यादो के साए से लिपटी. करवटे बदलती रहती हूँ सारी - सारी रात... दरअसल, सिर्फ तुम ही समझ सकते हो , की किस तरह से मैं भींगती हूँ मन ही मन में , तुम्हारी यादो की बारिश से !
सबको दिखती है इस शहर की रंगीनिया , मुझे अब इस निसंग आकाश के अलावा कुछ भी नही दिखता .. इस अंधड़ , बारिश और मेरे कंधो से लगती हुयी तेज़ हवाओ में , अब सिर्फ तुम्हारा ही एहसास है !
जीवन उड़ता ही जा रहा है किसी चपल समुद्री पाखी की तरह, न मालूम कहाँ , किस ओर ... अब कोई अलविदा भी नही कहता , कोई सर की कसम भी नही देता की वापस लौट आओ !
मैं बिलकुल भी कुशल नही हूँ लेकिन तुम सकुशल रहना,मेरे प्रिय !!
-------------- मीतू Copyright ©, रात्रि ९:४५ २८ मई २०११ !
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May 28, 2011 at 10:39 PM �
मैं जानती हूँ ,
ये बिलकुल भी ठीक नही है ...
मेरे ये एहसास मुझे ही कमजोर करेंगे ...
लेकिन तुम्ही बताओ न _
कहाँ ले जाऊं अपने दिल के ज़ज्बात ..?
बहुत कुछ कह भी तो नही पाती तुमसे ....
सही-गलत के उधेड़बुन में ,
मैं पगली -सी भींगती रहती हूँ ,
इन्ही एहसास के पनाहों में ...
_____ मीतू !!
May 28, 2011 at 10:59 PM �
.
कभी-कभी जी करता है की भाग जाऊं मैं ,
इस खुबसूरत ,रंगीन , चंचल शहर से ,
दो उदास आँखे .....निहारती रहती है बंद कमरे की उदास छत को !
...और भागुंगी भी कहाँ ?
कौन है भला ,
जो इस सुन्दर सी पृथ्वी पर करता होगा मेरी प्रतीक्षा ?
_________________ मीतू !!
May 28, 2011 at 11:43 PM �
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May 28, 2011 at 11:43 PM �
वाह..बहुत ही सुन्दर.. किरण जी...अतिशय भावपूर्ण एवं मर्मस्पर्शी...बिलकुल ही विह्वल्कारी ..क्यां कहूँ..दिल के एहसास की अतिशय मनोरम शब्दों में मनोमुग्धकारी अभिव्यक्ति...दिल को छू गया..और आप की यह अंतिम पंक्ति ने तो आँखों में आंसू ही ला दिया...
मैं बिलकुल भी कुशल नही हूँ ,लेकिन तुम सकुशल रहना,मेरे प्रिय !!...
May 28, 2011 at 11:47 PM �
Waah ! Kya Baat Hai ???
I'm speechless !!
May 30, 2011 at 11:31 AM �
भागने से अच्छा है यादों की गठरी उतारी जाये
July 28, 2011 at 9:27 PM �
Ati Sundar!! Beautyful!!
January 4, 2012 at 4:50 PM �
waw it is so good ................................. can't explain in words................................................
February 16, 2012 at 10:31 PM �
दिल के सुन-सान जजिरौ में ख़ुद को छिपा लूँगामें,
तुजसे बिछड कर ए सनम ओर क्या कर पाऊँगा में,