क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!!
---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!
meetuji, aap pratibhashalini hain. sundar chitra per sundar kavita, jaise sone ki aangoothi me heere ka nag . sach hai, dard se saundarya paida hota hai. aapke blog per saundarya ka sagar lahrata hai. blog ko sajane ki kala apse seekhna chahoonga. namaskar
.............. ......... Kaun ho tum? Tum to sirf preyasi ho meri bandha hua hun sammohan me jiske tod kar nata vaaheye jagat se karke samast samvegnaaon ka tyag bhool chuka hun din raat me antar paata hun din bhar chhaya me tumko raat palak aankhon me karta hun anubhav sparsh tumhara har komal dravya me raha nahi ab itna saamarthya khoj sakun koi hal saarthak vinati hai meri tumse na jane do mera nirarthak tum hi do parichay apna karo mere vicharon ko santrapt anyatha bhatak jaunga in galiyaaron me ek bhikshu sa paane ko hal apne hi prashno ka parichay do Kaun ho tum? Kya tum preyasi ho?
कुछ कर गुजरने की आग जीने नही देती,
कुछ न कर पाने का एहसास सोने नही देता!
यकीन की चिंगारी अश्क पीने नहीं देती,
अटल इरादा शिकस्त पे भी रोने नही देता !! ..... मीतू !!
क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!!
---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!
अपने दायरे !!
कुछ वीरानियो के सिलसिले आये इस कदर की जो मेरा अज़ीज़ था ..... आज वही मुझसे दूर है ..... तल्ख़ हुए रिश्तो में ओढ़ ली है अब मैंने तन्हाइयां !! ......... किरण "मीतू" !!
स्पंदन !!
निष्ठुर हूँ , निश्चल हूँ मैं पर मृत नही हूँ ... प्राण हैं मुझमे ... अभी उठना है दौड़ना हैं मुझे ... अपाहिज आत्मा के सहारे ... जीना है एक जीवन ... जिसमे मरण हैं एक बार ... सिर्फ एक बार !! ..... किरण " मीतू" !!
सतरंगी दुनिया !!
आस-पास , हास-परिहास , मैं रही फिर भी उदास ...आत्मा पर पड़ा उधार , उतारने का हुआ प्रयास ... खुश करने के और रहने के असफल रहे है सब प्रयास !! ..... किरण "मीतू" !!
उलझन !!
अकेले है इस जहां में , कहाँ जाए किधर जाए ! नही कोई जगह ऐसी की दिल के ज़ख्म भर जाए !! ... किरण "मीतू" !
तलाश स्वयं की !!
कुछ क्षण अंतर्मन में तूफ़ान उत्पन्न कर देते है और शब्दों में आकार पाने पर ही शांत होते है ! ..... मीतू !!
ज़ज़्बात दिल के !
मंजिल की तलाश में भागती इस महानगर के अनजानी राहो में मुझे मेरी कविता थाम लेती है , मुझे कुछ पल ठहर जी लेने का एहसास देती है ! मेरी कविता का जन्म ह्रदय की घनीभूत पीड़ा के क्षणों में ही होता है !! ..... किरण "मीतू" !!
मेरे एहसास !!
मेरे भीतर हो रहा है अंकुरण , उबल रहा है कुछ जो , निकल आना चाहता है बाहर , फोड़कर धरती का सीना , तैयार रहो तुम सब ..... मेरा विस्फोट कभी भी , तहस - नहस कर सकता है , तुम्हारे दमन के - नापाक इरादों को ---- किरण "मीतू" !!
आर्तनाद !
कभी-कभी जी करता है की भाग जाऊं मैं , इस खुबसूरत ,रंगीन , चंचल शहर से !! दो उदास आँखे .....निहारती रहती है बंद कमरे की उदास छत को ! . ..लेकिन भागुंगी भी कहाँ ? कौन है भला , जो इस सुन्दर सी पृथ्वी पर करता होगा मेरी प्रतीक्षा ? ..... किरण "मीतू" !!
मेरा बचपन - दुनिया परियो की !
प्रकृति की गोद में बिताये बचपन की मधुर स्मृतियाँ बार-बार मन को उसी ओर ले जाती है ! मानव जीवन में होने वाली हर बात मुझे प्रकृति से जुडी नज़र आती है तथा मैं मानव जीवन तथा प्रकृति में समीकरण बनाने का प्रयास करती हूँ !....किरण "मीतू
कविता-मेरी संवेदना !!
वेदना की माटी से , पीड़ा के पानी से , संवेदनाओ की हवा से , आँसूवो के झरनों से ! कोमल मन को जब लगती है चोट , निकलता है कोई गीत , और बनती है कोई कविता !! ..... मीतू !!
October 7, 2010 at 4:03 PM �
सुंदर,रोमांटिक दृश्य ...जैसे कि कोई परी देश हो और उस पर ये खोये-खोये लोग ..........नहीं जानती थी कि ये दिल तुम्ही पर आएगा ............bahoot khoob
October 7, 2010 at 4:59 PM �
ramantic seen our poem bhi ...bahut badhiya
December 13, 2010 at 9:56 PM �
meetuji, aap pratibhashalini hain. sundar chitra per sundar kavita, jaise sone ki aangoothi me heere ka nag . sach hai, dard se saundarya paida hota hai. aapke blog per saundarya ka sagar lahrata hai.
blog ko sajane ki kala apse seekhna chahoonga. namaskar
January 9, 2011 at 3:37 PM �
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Kaun ho tum?
Tum to sirf preyasi ho meri
bandha hua hun
sammohan me jiske
tod kar nata vaaheye jagat se
karke samast samvegnaaon ka tyag
bhool chuka hun din raat me antar
paata hun din bhar chhaya me tumko
raat palak aankhon me
karta hun anubhav sparsh tumhara
har komal dravya me
raha nahi ab itna saamarthya
khoj sakun koi hal saarthak
vinati hai meri tumse
na jane do mera nirarthak
tum hi do parichay apna
karo mere vicharon ko santrapt
anyatha
bhatak jaunga
in galiyaaron me
ek bhikshu sa
paane ko hal
apne hi prashno ka
parichay do
Kaun ho tum?
Kya tum preyasi ho?