आ गयी सूने हृदये में कामना को क्या कहें . तोड़ डाला मौन मेरा , यातना को क्या कहें.
ज़िन्दगी की धार पैनी हो न पाई थी अभी, क्यों मुझे झकझोर डाला , चेतना को क्या कहें .
तुम न सुन पाओगे पुरवाई की धीमी सिसकियाँ, रात मीठी याद लाई , भावना को क्या कहें .
लाल सूरज ने कहा , अपना कलेजा थाम के, लाल धरती हो न पाई साधना को क्या कहें .
पूछती हूँ मौन हैं क्यों आज ये काली घटा , बादलो से आ रही संवेदना को क्या कहें . |
July 1, 2010 at 12:49 AM �
बेजोड़ शब्द संयोजन. उच्च कोटि का प्रवाह.
उस रात को ’मीठी’ क्यों कहा है? पुरवाई की सिसकियों के साथ इनका मेल समझ में नहीं आया सो पूछ लिया.
काली घटा के संदर्भ में मौन का जिक़्र अच्छा लगा.