6:34 AM
एक दिन इठलाती हुई ,
एक छोटी सी नदी के किनारो के साथ ,
बाहो में बाहें डालकर चलते हुए ,
तुमने बड़े गर्व से पूछा ,
बताओ - नदी बड़ी है या सागर ??
हालाँकि समझ तो गई थी मैं तुम्हारा आशय
चलती रही फिर भी ख़ामोशी से
मैं साथ तुम्हारे !!
फिर से एक और दिन
घास के लम्बे मैदान को पार करते हुए
सर्दी की गुनगुनी धूप से लिपटते हुए
मेरे आँखों में आँखे डालकर
बड़ी शरारत से तुमने पूछा
बताओ - धरती बड़ी है या आकाश ??
मुस्कुरा देती हूँ सब समझकर !!
आखिर क्यों है
तुम्हे खुद पर इतना संशय ,
सृष्टि के आदि से लेकर अब तक
बिना किसी प्रतिवाद के
स्वीकारी है मैंने तुम्हारी श्रेष्ठता !
फिर भी तुम पूछते हो तो लो सुनो -
बड़ा तो सागर है
किन्तु प्यास तो नदी ही बुझाती है !
हाँ बड़ा है ये विशाल आकाश
किन्तु आश्रय तो धरा ही देती है !!!!
किरण श्रीवास्तव Copyright ©
7:05 p.m. -- 14/11/2014
7:05 p.m. -- 14/11/2014