8:31 PM
क्यों भरू अपने कलम में सिर्फ उतनी ही स्याही
जितनी तुम चाहो।
क्यों भरु अपने कैनवास में वही रंग
जिसे तुम सराहो।
क्यों दू अपनी जुबान को वही शब्द
जिन्हे सुनकर तुम प्रफुल्लित रहो |
हाँ मुझे भी आता है
कांटो पर चलना
अपने ज़ख्मो की स्याही से
अपने हथेलियों पर लकीरे बनाना।
अपनी दिशा और दशा तय करने का
सम्पूर्ण अधिकार है मुझे।
क्या समझ में नही आती इतनी सी भी बात तुम्हे
कि मैं नही हूँ मशीन कोई।
आग , हवा, पानी और मिट्टी
से बनाया है मैंने खुद को |
मुझमे भी प्राण है
जीने और जूझने का अदम्य साहस भी
और अपने रास्ते बनाने का विवेक भी।
अगर नही है इन सबसे इत्तेफाक तुम्हारा
तो दूर हटो मुझसे।
चलने दो मुझे
मेरे बनाये रास्ते पर।
अन्यथा
मेरे विरोध का हर स्वर
आहत करता रहेगा
तुम्हारे कच्चे घड़े-सा
थोथे स्वाभिमान को !
और फिर
तैयार रहना तुम
एक और धर्म-युद्ध के लिए। !!
फोटो और कविता -
किरण श्रीवास्तव Copyright ©
29/10/2014
October 29, 2014 at 9:21 PM �
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - बृहस्पतिवार- 30/10/2014 को
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 41 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,
October 30, 2014 at 9:58 AM �
हार्दिक धन्यवाद दर्शन जी .
October 31, 2014 at 2:36 PM �
सुन्दर प्रस्तुति !
आज आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा अप्पकी रचनाओ को पढ़कर , और एक अच्छे ब्लॉग फॉलो करने का अवसर मिला !
November 9, 2014 at 9:03 PM �
अच्छी कविता ---बधाई
http://savanxxx.blogspot.in
May 9, 2016 at 8:06 AM �
आप वास्तव में चिंगारी हैं किरण जी