10:15 PM

आज ,
अचानक मन में विचार आया
कि
कितनी ही बार
मैंने स्वयं को इस जीवन-पथ में असहाय पाया !

जब-जब मैंने उम्मीद का सहारा लिया
हर कडवे अनुभव को हंस कर पिया
नियति से जूझे , संघर्ष किया
सफलता नही मिली !

कितनी ही बार
मन में झंझावात उठे
कितनी ही बार स्वप्न लुटे
पर विषाद बाहर न आया
ठेस लगने पर भी मन रो न पाया !

फिर भी
मैं संघर्षरत हूँ
इसी आशा के साथ
कि शायद
कभी काले बादलो के छट जाने पर
इन्द्रधनुषी रंगों कि बहार आ जाये
शायद ........ !

__ किरण .....Copyright © 9:47 pm .. 29-nov-2012

4 Responses to "आशा !!"

  1. Anonymous Says:

    maa sarswati ka smavesh hain apke lekhen par ..apko va apke mata pita ko sat sat naman

  2. rudra shrivastava Says:

    apake lekhan me apake vicharo ke jajabat ahasas krate hain,jaise ye parikalpanye, mere jeevan se judi hui si hi ho, rafta rafta jindagi ke lamhe gujarate jate hain, har pal jindagi antim mukam par pahuchne ki or agrasar ho rahi hai lekin man ka sukun dhundhati hui vicharo ki srankhala ko aaj bhi talas hai, kisi aisi atma ki jo najar pdte hi apani or khich kar atmsat kar ek ho, jaye, par nahi hai aisi ummid ab jindagi se, shayad agale janm tak.

  3. Ramesh Saraswat Says:

    ज़िन्दगी केवल उम्र गुजार देने को नहीं कहते हैं, वैसे भी जो जीवन ज़िन्दगी को नहीं समझ पाया वो जीवन किस काम का, सदियों से गुमराह ही किया गया है भारी भरकम शब्द जाल और मंत्र, तंत्र, यन्त्र के माध्यम से, आम इंसान नहीं भेद सकता इस चक्रव्यूह को ,आरती, मंत्र, पूजा पाठ, असंख्य देवी देवता, ये सब मनुष्य को मानसिक शान्ति प्रदान करते है और सुखी जीवन बिताने का माध्यम मात्र हैं लेकिन सच से परे रहकर हर इंसान खुद को धोखा नहीं दे सकता क्योंकि सच्चाई सर्वथा उन सब बातों से बहुत परे है जो कि विस्मयकारी और आश्चर्यजनक है

  4. संजय भास्‍कर Says:

    ऎसी रचनाएँ रोमांचित कर जाती हैं... एक अलग प्रकार का रोमांच होता है.

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  • संवेदना

    क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!! ---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!

    अपने दायरे !!

    अपने दायरे !!
    कुछ वीरानियो के सिलसिले आये इस कदर की जो मेरा अज़ीज़ था ..... आज वही मुझसे दूर है ..... तल्ख़ हुए रिश्तो में ओढ़ ली है अब मैंने तन्हाइयां !! ......... किरण "मीतू" !!

    स्पंदन !!

    स्पंदन !!
    निष्ठुर हूँ , निश्चल हूँ मैं पर मृत नही हूँ ... प्राण हैं मुझमे ... अभी उठना है दौड़ना हैं मुझे ... अपाहिज आत्मा के सहारे ... जीना है एक जीवन ... जिसमे मरण हैं एक बार ... सिर्फ एक बार !! ..... किरण " मीतू" !!

    सतरंगी दुनिया !!

    सतरंगी दुनिया !!
    आस-पास , हास-परिहास , मैं रही फिर भी उदास ...आत्मा पर पड़ा उधार , उतारने का हुआ प्रयास ... खुश करने के और रहने के असफल रहे है सब प्रयास !! ..... किरण "मीतू" !!

    उलझन !!

    उलझन !!
    अकेले है इस जहां में , कहाँ जाए किधर जाए ! नही कोई जगह ऐसी की दिल के ज़ख्म भर जाए !! ... किरण "मीतू" !

    तलाश स्वयं की !!

    तलाश स्वयं की !!
    कुछ क्षण अंतर्मन में तूफ़ान उत्पन्न कर देते है और शब्दों में आकार पाने पर ही शांत होते है ! ..... मीतू !!

    ज़ज़्बात दिल के !

    ज़ज़्बात दिल के !
    मंजिल की तलाश में भागती इस महानगर के अनजानी राहो में मुझे मेरी कविता थाम लेती है , मुझे कुछ पल ठहर जी लेने का एहसास देती है ! मेरी कविता का जन्म ह्रदय की घनीभूत पीड़ा के क्षणों में ही होता है !! ..... किरण "मीतू" !!

    मेरे एहसास !!

    मेरे एहसास !!
    मेरे भीतर हो रहा है अंकुरण , उबल रहा है कुछ जो , निकल आना चाहता है बाहर , फोड़कर धरती का सीना , तैयार रहो तुम सब ..... मेरा विस्फोट कभी भी , तहस - नहस कर सकता है , तुम्हारे दमन के - नापाक इरादों को ---- किरण "मीतू" !!

    आर्तनाद !

    आर्तनाद !
    कभी-कभी जी करता है की भाग जाऊं मैं , इस खुबसूरत ,रंगीन , चंचल शहर से !! दो उदास आँखे .....निहारती रहती है बंद कमरे की उदास छत को ! . ..लेकिन भागुंगी भी कहाँ ? कौन है भला , जो इस सुन्दर सी पृथ्वी पर करता होगा मेरी प्रतीक्षा ? ..... किरण "मीतू" !!

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !
    प्रकृति की गोद में बिताये बचपन की मधुर स्मृतियाँ बार-बार मन को उसी ओर ले जाती है ! मानव जीवन में होने वाली हर बात मुझे प्रकृति से जुडी नज़र आती है तथा मैं मानव जीवन तथा प्रकृति में समीकरण बनाने का प्रयास करती हूँ !....किरण "मीतू

    कविता-मेरी संवेदना !!

    कविता-मेरी संवेदना !!
    वेदना की माटी से , पीड़ा के पानी से , संवेदनाओ की हवा से , आँसूवो के झरनों से ! कोमल मन को जब लगती है चोट , निकलता है कोई गीत , और बनती है कोई कविता !! ..... मीतू !!
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