कितना खुशनुमा-सा दृश्य था आज  सुबह का !
निशा रानी को सुबह अपने चादर में लपेटती जा रही थी .... रात भी मानो सुबह के बाहों में आकर उसी के उजले रंग में रंगने को मचल रही थी ......फिजा में तैरती हुई प्रजिन भी वातायन के रास्ते आकर मेरे चेहरे पर अपना कोमल स्पर्श करके कानो में फुसफुसा कर बाहर के उस सजीव माहौल में घुल मिल-जाने को आमंत्रित कर गई .....बाहर झाँक कर देखा तो चिड़िया आपस में एक-दुसरे को रात का स्वप्न सुनाने में लगी थी ! कुछ पंक्षी फिजा में यूँ तैर रहे थे जैसे की वे खिलौने हो और वे रिमोट दबाते ही टप्प से नीचे गिर पड़ेंगे ! फिजा में बहकती हुई फूलो की भीनी-भीनी दीवानी खुशबू सुबह को और भी खुशनुमा बना रही थी ! दूर कहीं मंदिर से शंख-ध्वनि और घंटियों एवं मंजीरो के मधुर ध्वनि के साथ राम-राम -- सीता-राम की आवाज़ कर्णप्रिय लग रही थी ... सच में आज का प्रातः कालीन दृश्य कितना अद्भुत,कितना खुशनुमा था !!

मीतू ....Copyright ©

11 Responses to "आज की सुहानी सुबह !!"

  1. Anonymous Says:

    बेल-बुटों से भरी सोने के सितारों से सजी
    ओढ़ कर नीली चादर .............
    दमदमाती इठलाती बलखाती वो आकर
    रजनी ने जगाया प्रभात को झकझोर कर..............

  2. vin Says:

    बेल-बुटों से भरी सोने के सितारों से सजी
    ओढ़ कर नीली चादर .............
    दमदमाती इठलाती बलखाती वो आकर
    रजनी ने जगाया प्रभात को झकझोर कर..............

  3. Yashwant R. B. Mathur Says:

    बहुत अच्छा लगा पढ़ कर।

    सादर
    -----
    जो मेरा मन कहे पर आपका स्वागत है

  4. Yashwant R. B. Mathur Says:

    आपको लोहड़ी हार्दिक शुभ कामनाएँ।
    --------------------------
    कल 13/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

  5. vidya Says:

    सुप्रभात...
    दिन की शरुआत अच्छी हुई..

  6. संगीता स्वरुप ( गीत ) Says:

    खूबसूरत अभिव्यक्ति ..

  7. Rajesh Kumari Says:

    subah ka bahut sundar varnan kiya hai.pahli bar aapke blog par aai hoon.achcha laga.shubhkamnayen.

  8. Kailash Sharma Says:

    बहुत सुन्दर भावपूर्ण शब्द चित्र...

  9. Unknown Says:

    VERY NICE MEETU JI

  10. jagdish joshi, advocate Says:

    अहा
    जेसे साक्षात् प्रकृति स्वयं बोल रही हो

  11. Anonymous Says:

    Very beautifully written

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  • संवेदना

    क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!! ---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!

    अपने दायरे !!

    अपने दायरे !!
    कुछ वीरानियो के सिलसिले आये इस कदर की जो मेरा अज़ीज़ था ..... आज वही मुझसे दूर है ..... तल्ख़ हुए रिश्तो में ओढ़ ली है अब मैंने तन्हाइयां !! ......... किरण "मीतू" !!

    स्पंदन !!

    स्पंदन !!
    निष्ठुर हूँ , निश्चल हूँ मैं पर मृत नही हूँ ... प्राण हैं मुझमे ... अभी उठना है दौड़ना हैं मुझे ... अपाहिज आत्मा के सहारे ... जीना है एक जीवन ... जिसमे मरण हैं एक बार ... सिर्फ एक बार !! ..... किरण " मीतू" !!

    सतरंगी दुनिया !!

    सतरंगी दुनिया !!
    आस-पास , हास-परिहास , मैं रही फिर भी उदास ...आत्मा पर पड़ा उधार , उतारने का हुआ प्रयास ... खुश करने के और रहने के असफल रहे है सब प्रयास !! ..... किरण "मीतू" !!

    उलझन !!

    उलझन !!
    अकेले है इस जहां में , कहाँ जाए किधर जाए ! नही कोई जगह ऐसी की दिल के ज़ख्म भर जाए !! ... किरण "मीतू" !

    तलाश स्वयं की !!

    तलाश स्वयं की !!
    कुछ क्षण अंतर्मन में तूफ़ान उत्पन्न कर देते है और शब्दों में आकार पाने पर ही शांत होते है ! ..... मीतू !!

    ज़ज़्बात दिल के !

    ज़ज़्बात दिल के !
    मंजिल की तलाश में भागती इस महानगर के अनजानी राहो में मुझे मेरी कविता थाम लेती है , मुझे कुछ पल ठहर जी लेने का एहसास देती है ! मेरी कविता का जन्म ह्रदय की घनीभूत पीड़ा के क्षणों में ही होता है !! ..... किरण "मीतू" !!

    मेरे एहसास !!

    मेरे एहसास !!
    मेरे भीतर हो रहा है अंकुरण , उबल रहा है कुछ जो , निकल आना चाहता है बाहर , फोड़कर धरती का सीना , तैयार रहो तुम सब ..... मेरा विस्फोट कभी भी , तहस - नहस कर सकता है , तुम्हारे दमन के - नापाक इरादों को ---- किरण "मीतू" !!

    आर्तनाद !

    आर्तनाद !
    कभी-कभी जी करता है की भाग जाऊं मैं , इस खुबसूरत ,रंगीन , चंचल शहर से !! दो उदास आँखे .....निहारती रहती है बंद कमरे की उदास छत को ! . ..लेकिन भागुंगी भी कहाँ ? कौन है भला , जो इस सुन्दर सी पृथ्वी पर करता होगा मेरी प्रतीक्षा ? ..... किरण "मीतू" !!

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !
    प्रकृति की गोद में बिताये बचपन की मधुर स्मृतियाँ बार-बार मन को उसी ओर ले जाती है ! मानव जीवन में होने वाली हर बात मुझे प्रकृति से जुडी नज़र आती है तथा मैं मानव जीवन तथा प्रकृति में समीकरण बनाने का प्रयास करती हूँ !....किरण "मीतू

    कविता-मेरी संवेदना !!

    कविता-मेरी संवेदना !!
    वेदना की माटी से , पीड़ा के पानी से , संवेदनाओ की हवा से , आँसूवो के झरनों से ! कोमल मन को जब लगती है चोट , निकलता है कोई गीत , और बनती है कोई कविता !! ..... मीतू !!
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