पता नहीं कैसे और क्यों हुआ
        पर जो हुआ लगता है अच्छा हुआ
        मुझे तो तुम  से प्यार हुआ
        बस तुम्ही से इकरार हुआ
        यह दिल अब तो तुम्हारे  लिए तरसता है
        तुम्हारी  मुस्कुराहट पर जान छिड़कता है
        तुम्हारी  हर सांस पे जीती हूँ
        तुम्हारी  हर सांस पर ही  मरती हूँ
        लाखों-लाखों बार कहती हूँ
        हाँ, मैं तुमसे प्यार करती हूँ
        रात और दिन तुम्हारा ही इंतज़ार करती हूँ
        दिल की अरमानों का इजहार करती हूँ
        अब कोई दिखता नहीं तुमसे अच्छा
        कोई हो भी तो मैं इनकार करती हूँ
        हर पल नज़र में तुम ही दिखते हो
        तुम्ही हो जिससे मैं प्यार करती हूँ
        तुम्हारी खुशबू बसी है मेरे रूह तक में
        तुम हो बस मेरे ,मैं तेरी स्वीकार करती हूँ
      
         दूर क्यों हो अब आ भी जाओ ना
        मैं तुम्हे बहुत ही याद करती हूँ
        तुम ही बसे हो मेरे रोम रोम में
        यही तो तुझसे फ़रियाद करती हूँ.
        मैं तुम्हे इतना प्यार करती हूँ
        हाँ ,मैं तुमसे प्यार करती हूँ....
        ____________ मीतू !

11 Responses to "सुनो न, तुमसे एक बात कहनी है !"

  1. ravindra k das Says:

    achchha lagaa padhkar...

  2. S.N SHUKLA Says:

    सुन्दरतम रचना, बधाई

  3. pavaniya Says:

    aisa sach mei bhi hota hai yaa sirf kavitaon mei hi hai...yahan is jahan mei log itne swarthi hain ki kisi se bhi aisi kaamna karna bemani prateet hota hata..kyonki expectactions or ho jyada problem deti hain.....lekin fir bhi achhha likha hai prem ke bhavon ko...

  4. Ravi Rajbhar Says:

    kya bat hi pyar ke ras me puri tarah bhigi hai apki prastuti...
    badhai,,

    blogg follow karne ki kosis kar raha hun,, par apka blogg edit mode me hai , shayad isi liye nahi ho pa raha hai.

    link facebook se mila.

    Abhar.
    Ravi

  5. फ्रेंकलिन निगम Says:

    ek achchhi kavita...bhavanayein aur samvedanayein hain...khoobsurat shabd...dil ko chhoo gayi...mein bhi kabhi kabhi likhta hau aap mera blog apne blog se connect karein. shukriya mein apka blog connect kar raha hu...franklinnigam.blogspot.com

  6. Hari sharan Says:

    dil ki baat ko itna sunder aur magical way mein kah diya.bas yun laga ki abhi jaun aur kah duin,tum se ek baat kahni hai.hari sharan

  7. vinay ke shabd Says:

    netra aur mastishk dono ko sukhdaayak

  8. Anonymous Says:

    Meetu Ji Aapne to Shudh Bhudh Bhulkar Premmay Hokar Jo Apne Dil ka Hall Likha Hai .... To Kam se kam Vo Khushkismat ka Nam to batado, jisase tum Eetna Pyar karti ho ?

  9. Unknown Says:

    मीतू जी आपका प्यार शब्दो मे झलक रहा है

  10. Shashikant Sharma Says:

    सुंदर रचना. कभी कभी मैं भी लिख लेता हूँ, लेकिन आपका वाला बेहतर है मेरी रचनाओं से.
    कभी पढ़िए ना इस लिंक को अपने address bar में paste करके.
    rockykumarsharma.blogspot.com

  11. Unknown Says:


    Mast

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  • संवेदना

    क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!! ---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!

    अपने दायरे !!

    अपने दायरे !!
    कुछ वीरानियो के सिलसिले आये इस कदर की जो मेरा अज़ीज़ था ..... आज वही मुझसे दूर है ..... तल्ख़ हुए रिश्तो में ओढ़ ली है अब मैंने तन्हाइयां !! ......... किरण "मीतू" !!

    स्पंदन !!

    स्पंदन !!
    निष्ठुर हूँ , निश्चल हूँ मैं पर मृत नही हूँ ... प्राण हैं मुझमे ... अभी उठना है दौड़ना हैं मुझे ... अपाहिज आत्मा के सहारे ... जीना है एक जीवन ... जिसमे मरण हैं एक बार ... सिर्फ एक बार !! ..... किरण " मीतू" !!

    सतरंगी दुनिया !!

    सतरंगी दुनिया !!
    आस-पास , हास-परिहास , मैं रही फिर भी उदास ...आत्मा पर पड़ा उधार , उतारने का हुआ प्रयास ... खुश करने के और रहने के असफल रहे है सब प्रयास !! ..... किरण "मीतू" !!

    उलझन !!

    उलझन !!
    अकेले है इस जहां में , कहाँ जाए किधर जाए ! नही कोई जगह ऐसी की दिल के ज़ख्म भर जाए !! ... किरण "मीतू" !

    तलाश स्वयं की !!

    तलाश स्वयं की !!
    कुछ क्षण अंतर्मन में तूफ़ान उत्पन्न कर देते है और शब्दों में आकार पाने पर ही शांत होते है ! ..... मीतू !!

    ज़ज़्बात दिल के !

    ज़ज़्बात दिल के !
    मंजिल की तलाश में भागती इस महानगर के अनजानी राहो में मुझे मेरी कविता थाम लेती है , मुझे कुछ पल ठहर जी लेने का एहसास देती है ! मेरी कविता का जन्म ह्रदय की घनीभूत पीड़ा के क्षणों में ही होता है !! ..... किरण "मीतू" !!

    मेरे एहसास !!

    मेरे एहसास !!
    मेरे भीतर हो रहा है अंकुरण , उबल रहा है कुछ जो , निकल आना चाहता है बाहर , फोड़कर धरती का सीना , तैयार रहो तुम सब ..... मेरा विस्फोट कभी भी , तहस - नहस कर सकता है , तुम्हारे दमन के - नापाक इरादों को ---- किरण "मीतू" !!

    आर्तनाद !

    आर्तनाद !
    कभी-कभी जी करता है की भाग जाऊं मैं , इस खुबसूरत ,रंगीन , चंचल शहर से !! दो उदास आँखे .....निहारती रहती है बंद कमरे की उदास छत को ! . ..लेकिन भागुंगी भी कहाँ ? कौन है भला , जो इस सुन्दर सी पृथ्वी पर करता होगा मेरी प्रतीक्षा ? ..... किरण "मीतू" !!

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !
    प्रकृति की गोद में बिताये बचपन की मधुर स्मृतियाँ बार-बार मन को उसी ओर ले जाती है ! मानव जीवन में होने वाली हर बात मुझे प्रकृति से जुडी नज़र आती है तथा मैं मानव जीवन तथा प्रकृति में समीकरण बनाने का प्रयास करती हूँ !....किरण "मीतू

    कविता-मेरी संवेदना !!

    कविता-मेरी संवेदना !!
    वेदना की माटी से , पीड़ा के पानी से , संवेदनाओ की हवा से , आँसूवो के झरनों से ! कोमल मन को जब लगती है चोट , निकलता है कोई गीत , और बनती है कोई कविता !! ..... मीतू !!
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