क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!!
---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!
जब- जब धधकी है धर्म की आग , मानवता जलकर हो गई ख़ाक ! इंसान के प्रति प्रचंड नफ़रत पालकर , उसी ख़ाक पर उड़ाये जाते है विजय-निशान ! _____ meetu १७-७-२०११ रात्रि ९:३५ !!
one poem for u in the same wavelength as urs on the facebook page. "Betabiy e dil jaan ko sanbhalne nahin deti--mausam teri yaadon ka badalne nahin deti begaangi aisi hai k ek pal bhi na rukye--zanjeer e wafa aisi k chalne nahin deti socha hai kai baar k is kooche se niklen--laachariye dil hai k nikalne nahin deti
कुछ कर गुजरने की आग जीने नही देती,
कुछ न कर पाने का एहसास सोने नही देता!
यकीन की चिंगारी अश्क पीने नहीं देती,
अटल इरादा शिकस्त पे भी रोने नही देता !! ..... मीतू !!
क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!!
---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!
अपने दायरे !!
कुछ वीरानियो के सिलसिले आये इस कदर की जो मेरा अज़ीज़ था ..... आज वही मुझसे दूर है ..... तल्ख़ हुए रिश्तो में ओढ़ ली है अब मैंने तन्हाइयां !! ......... किरण "मीतू" !!
स्पंदन !!
निष्ठुर हूँ , निश्चल हूँ मैं पर मृत नही हूँ ... प्राण हैं मुझमे ... अभी उठना है दौड़ना हैं मुझे ... अपाहिज आत्मा के सहारे ... जीना है एक जीवन ... जिसमे मरण हैं एक बार ... सिर्फ एक बार !! ..... किरण " मीतू" !!
सतरंगी दुनिया !!
आस-पास , हास-परिहास , मैं रही फिर भी उदास ...आत्मा पर पड़ा उधार , उतारने का हुआ प्रयास ... खुश करने के और रहने के असफल रहे है सब प्रयास !! ..... किरण "मीतू" !!
उलझन !!
अकेले है इस जहां में , कहाँ जाए किधर जाए ! नही कोई जगह ऐसी की दिल के ज़ख्म भर जाए !! ... किरण "मीतू" !
तलाश स्वयं की !!
कुछ क्षण अंतर्मन में तूफ़ान उत्पन्न कर देते है और शब्दों में आकार पाने पर ही शांत होते है ! ..... मीतू !!
ज़ज़्बात दिल के !
मंजिल की तलाश में भागती इस महानगर के अनजानी राहो में मुझे मेरी कविता थाम लेती है , मुझे कुछ पल ठहर जी लेने का एहसास देती है ! मेरी कविता का जन्म ह्रदय की घनीभूत पीड़ा के क्षणों में ही होता है !! ..... किरण "मीतू" !!
मेरे एहसास !!
मेरे भीतर हो रहा है अंकुरण , उबल रहा है कुछ जो , निकल आना चाहता है बाहर , फोड़कर धरती का सीना , तैयार रहो तुम सब ..... मेरा विस्फोट कभी भी , तहस - नहस कर सकता है , तुम्हारे दमन के - नापाक इरादों को ---- किरण "मीतू" !!
आर्तनाद !
कभी-कभी जी करता है की भाग जाऊं मैं , इस खुबसूरत ,रंगीन , चंचल शहर से !! दो उदास आँखे .....निहारती रहती है बंद कमरे की उदास छत को ! . ..लेकिन भागुंगी भी कहाँ ? कौन है भला , जो इस सुन्दर सी पृथ्वी पर करता होगा मेरी प्रतीक्षा ? ..... किरण "मीतू" !!
मेरा बचपन - दुनिया परियो की !
प्रकृति की गोद में बिताये बचपन की मधुर स्मृतियाँ बार-बार मन को उसी ओर ले जाती है ! मानव जीवन में होने वाली हर बात मुझे प्रकृति से जुडी नज़र आती है तथा मैं मानव जीवन तथा प्रकृति में समीकरण बनाने का प्रयास करती हूँ !....किरण "मीतू
कविता-मेरी संवेदना !!
वेदना की माटी से , पीड़ा के पानी से , संवेदनाओ की हवा से , आँसूवो के झरनों से ! कोमल मन को जब लगती है चोट , निकलता है कोई गीत , और बनती है कोई कविता !! ..... मीतू !!
July 30, 2011 at 9:03 AM �
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"Betabiy e dil jaan ko sanbhalne nahin deti--mausam teri yaadon ka badalne nahin deti
begaangi aisi hai k ek pal bhi na rukye--zanjeer e wafa aisi k chalne nahin deti
socha hai kai baar k is kooche se niklen--laachariye dil hai k nikalne nahin deti
"Betabiy e dil jaan ko sanbhalne nahin deti.....
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