6 Responses to "तुम बिन !"

  1. किरण श्रीवास्तव "मीतू" Says:

    नही जिंदगी कोई तुम्हारे बिन ,
    राह तके ये अंखिया निश-दिन ,
    जल बिन मछली हो जैसे ,
    बस ,
    वैसी ही हूँ मैं तुम बिन !!
    ________मीतू !

  2. a k mishra Says:

    वाह...बहुत ही सुन्दर ...किरण जी...
    दिल तडफता है
    आँखें भी रोती हैं
    फिर भी न जाने
    कहने से डरता हूँ क्यों मैं
    हो जैसी तुम मेरे बिन,
    बस,
    वैसा हूँ मै....

  3. kumar S Says:

    Sath Chalte Ja Rahe Hain Paas Aa Sakte Nahi
    Ik Nadi Ke Do Kinaro Ko Mila Sakte Nahi

    Dene Wale Ne Diya Sab Kuch Ajab Andaaz Se
    Saamne Duniya Padi Hai Aur Utha Sakte Nahi

    Uski Bhi Majbooriyan Hain, Meri Bhi Majbooriyan
    Roz Milte Hain Magar Ghar Mein Bata Sakte Nahi

    Uski Yaadon Se Mehkane Lagta Hai Sara Badan
    Pyar Ki Khushboo Ko Seene Mein Chupa Sakte Nahi

    - Bashir Badr

  4. sameer Says:

    i have become a fan of yours.do u u have got some magical power in ur pen...........MAI AAPKA KAYAL HO GAYA HU.........U WRITE AWESOME.

  5. sameer Says:

    aap kya likhti hai.......jaise jadu cha jata hai.........mera kabhi kavita me shauk nahi raha lekin aapki kavitayen(rachnayen)padhne k baad ye shauk ho gaya hai.....mujhe aapki romantic rachnaye bht pasand hai......

  6. spshukla Says:

    kiran ji mai ap ki kavita ka fan hun kitna derd bhara hai ushma sach ya shara muja apna lagta hai. muja lagta hai sochta mai hun aur mari peeda ko shabad ap dati hai.thnk u keep it on.

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  • संवेदना

    क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!! ---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!

    अपने दायरे !!

    अपने दायरे !!
    कुछ वीरानियो के सिलसिले आये इस कदर की जो मेरा अज़ीज़ था ..... आज वही मुझसे दूर है ..... तल्ख़ हुए रिश्तो में ओढ़ ली है अब मैंने तन्हाइयां !! ......... किरण "मीतू" !!

    स्पंदन !!

    स्पंदन !!
    निष्ठुर हूँ , निश्चल हूँ मैं पर मृत नही हूँ ... प्राण हैं मुझमे ... अभी उठना है दौड़ना हैं मुझे ... अपाहिज आत्मा के सहारे ... जीना है एक जीवन ... जिसमे मरण हैं एक बार ... सिर्फ एक बार !! ..... किरण " मीतू" !!

    सतरंगी दुनिया !!

    सतरंगी दुनिया !!
    आस-पास , हास-परिहास , मैं रही फिर भी उदास ...आत्मा पर पड़ा उधार , उतारने का हुआ प्रयास ... खुश करने के और रहने के असफल रहे है सब प्रयास !! ..... किरण "मीतू" !!

    उलझन !!

    उलझन !!
    अकेले है इस जहां में , कहाँ जाए किधर जाए ! नही कोई जगह ऐसी की दिल के ज़ख्म भर जाए !! ... किरण "मीतू" !

    तलाश स्वयं की !!

    तलाश स्वयं की !!
    कुछ क्षण अंतर्मन में तूफ़ान उत्पन्न कर देते है और शब्दों में आकार पाने पर ही शांत होते है ! ..... मीतू !!

    ज़ज़्बात दिल के !

    ज़ज़्बात दिल के !
    मंजिल की तलाश में भागती इस महानगर के अनजानी राहो में मुझे मेरी कविता थाम लेती है , मुझे कुछ पल ठहर जी लेने का एहसास देती है ! मेरी कविता का जन्म ह्रदय की घनीभूत पीड़ा के क्षणों में ही होता है !! ..... किरण "मीतू" !!

    मेरे एहसास !!

    मेरे एहसास !!
    मेरे भीतर हो रहा है अंकुरण , उबल रहा है कुछ जो , निकल आना चाहता है बाहर , फोड़कर धरती का सीना , तैयार रहो तुम सब ..... मेरा विस्फोट कभी भी , तहस - नहस कर सकता है , तुम्हारे दमन के - नापाक इरादों को ---- किरण "मीतू" !!

    आर्तनाद !

    आर्तनाद !
    कभी-कभी जी करता है की भाग जाऊं मैं , इस खुबसूरत ,रंगीन , चंचल शहर से !! दो उदास आँखे .....निहारती रहती है बंद कमरे की उदास छत को ! . ..लेकिन भागुंगी भी कहाँ ? कौन है भला , जो इस सुन्दर सी पृथ्वी पर करता होगा मेरी प्रतीक्षा ? ..... किरण "मीतू" !!

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !
    प्रकृति की गोद में बिताये बचपन की मधुर स्मृतियाँ बार-बार मन को उसी ओर ले जाती है ! मानव जीवन में होने वाली हर बात मुझे प्रकृति से जुडी नज़र आती है तथा मैं मानव जीवन तथा प्रकृति में समीकरण बनाने का प्रयास करती हूँ !....किरण "मीतू

    कविता-मेरी संवेदना !!

    कविता-मेरी संवेदना !!
    वेदना की माटी से , पीड़ा के पानी से , संवेदनाओ की हवा से , आँसूवो के झरनों से ! कोमल मन को जब लगती है चोट , निकलता है कोई गीत , और बनती है कोई कविता !! ..... मीतू !!
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