मैंने कई बार चाहा की
तुमसे कहूँ
मुझे एक शाम सिंदूरी दे दो ......!

मैं थक चुकी हूँ ,
टुकडो में जीते हुए
मुझे एक जिंदगी पूरी दे दो ....!

आँखों में छुपा लू
मन में बसा लू
मेरे मन को स्मृतियों की मयूरी दे दो ...!

है अगर कोई बंधन
तो मुझसे कहो
काट डालू मैं वो बंधन,मुझे सिर्फ मंजूरी दे दो..... !

तुम्हारे पास है
और मैं भटक रही हूँ
तुम मुझे मेरी कस्तूरी दे दो ..!!

___________मीतू !!
११:१५ रात्रि १६-७-२०११

8 Responses to "तुमसे कहूँ !!"

  1. a k mishra Says:

    बहुत ही सुन्दर रचना...अतिशय मनमोहक एवं मुग्धकारी अभिव्यक्ति...कैसा है ये एहसास ,कैसी है यह अभिव्यक्ति....प्रेम की अमृतमयी पवित्रता और निर्मलता की बहती धारा..शब्दों का चयन ऐसा जैसे कि उत्ताल सिंधु के कूल पर बिखरे असंख्य सिक्ता कणों के बीच बिखरी सीपियों में से मोती चुन कर लाये गए हों...भाव ऐसे मानो सिंदूरी शाम के रक्ताभ सलिल पर उतरती रजनी कि श्याम छाया में भी एक श्वेत शरबती आभा फैल गयी हो...सूनी -सूनी राहों पर चंचल हवा के झोंकों की तरह आकर मन को विह्वल करती हुई ,सूखे होठों को बारिश की बूंदों-सी भिंगोती हुई,प्रेम अभिसार और सौन्दर्य की गीतमयी अभिकल्पना ...जैसे...अंतस की वीरान वीथियों में नीहारिका की श्वेतिमा से दमका रही हो...क्या कहूँ..
    यादों के स्पर्श से ही सही
    जिन्दगी तेरी बदौलत है सुनहरी
    मेरे मन को महका जाए
    तेरे मन की यह कस्तूरी.....

  2. Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार Says:

    किरण श्रीवास्तव "मीतू" जी
    नमस्ते !

    पहली बार पहुंचा हूं आपके इस ख़ूबसूरत ब्लॉग तक
    … मंत्रमुग्ध हूं आपकी यह रचना पढ़ कर …
    मैंने कई बार चाहा की
    तुमसे कहूं
    मुझे एक शाम सिंदूरी दे दो ......!

    कविता ज्यों ज्यों आगे बढ़ी है , इसके भाव मन में गहरे उतरते गए हैं …

    मैं थक चुकी हूं ,
    टुकडो में जीते हुए
    मुझे एक जिंदगी पूरी दे दो ....!

    आंखों में छुपा लूं
    मन में बसा लूं
    मेरे मन को स्मृतियों की मयूरी दे दो ...!

    है अगर कोई बंधन
    तो मुझसे कहो
    काट डालू मैं वो बंधन,मुझे सिर्फ मंजूरी दे दो..... !

    कविता का सबसे सुंदर और प्रभावी रूप यहां उभरा है - है अगर कोई बंधन तो मुझसे कहो
    काट डालू मैं वो बंधन, मुझे सिर्फ मंजूरी दे दो !
    एक कमाल का जादू उतर आया है आपके शब्दों में … तारीफ़ के लिए लफ़्ज़ नहीं मिल रहे …

    तुम्हारे पास है
    और मैं भटक रही हूं
    तुम मुझे मेरी कस्तूरी दे दो ..!!


    बहुत कम रचनाएं ही होती हैं जिन्हें पूरी की पूरी कोट करने की इच्छा पर नियंत्रण नहीं रह पाता

    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

  3. Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार Says:

    … और हां , अरविंद कुमार मिश्र जी को भी इतनी सुंदर काव्यमयी भाषा में सटीक प्रतिक्रिया के लिए बधाई !

  4. shubham news producer Says:

    Bahut Bahut Achha kya bat hai

  5. medha Says:

    kiran jii bhut hi sundaar rachna h... padte hi aisa laga saari ankhi baato ko aapne shbdo m badal diya ho....hatts off to u...

  6. MOHAMMAD IRFAN ARIF Says:

    Beautiful Lines Meetu ji,

  7. ARUN SHEKHAR Says:

    kya baat hai ..kiran its adbhut..adbhut .. kya ahsason sundar bayan hai ..sundar...

  8. Dnews Says:

    नमस्कार किरन जी ,
    आपकी हर बात इंसान कों अन्दर तक हर उस पल का अहसास करती है, जो वो सोचता है पर हर बार कह नही पाता ..........
    आप कि सोच आपकी कविताओ कि तरह अतिसुन्दर है......समर गुप्ता

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  • संवेदना

    क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!! ---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!

    अपने दायरे !!

    अपने दायरे !!
    कुछ वीरानियो के सिलसिले आये इस कदर की जो मेरा अज़ीज़ था ..... आज वही मुझसे दूर है ..... तल्ख़ हुए रिश्तो में ओढ़ ली है अब मैंने तन्हाइयां !! ......... किरण "मीतू" !!

    स्पंदन !!

    स्पंदन !!
    निष्ठुर हूँ , निश्चल हूँ मैं पर मृत नही हूँ ... प्राण हैं मुझमे ... अभी उठना है दौड़ना हैं मुझे ... अपाहिज आत्मा के सहारे ... जीना है एक जीवन ... जिसमे मरण हैं एक बार ... सिर्फ एक बार !! ..... किरण " मीतू" !!

    सतरंगी दुनिया !!

    सतरंगी दुनिया !!
    आस-पास , हास-परिहास , मैं रही फिर भी उदास ...आत्मा पर पड़ा उधार , उतारने का हुआ प्रयास ... खुश करने के और रहने के असफल रहे है सब प्रयास !! ..... किरण "मीतू" !!

    उलझन !!

    उलझन !!
    अकेले है इस जहां में , कहाँ जाए किधर जाए ! नही कोई जगह ऐसी की दिल के ज़ख्म भर जाए !! ... किरण "मीतू" !

    तलाश स्वयं की !!

    तलाश स्वयं की !!
    कुछ क्षण अंतर्मन में तूफ़ान उत्पन्न कर देते है और शब्दों में आकार पाने पर ही शांत होते है ! ..... मीतू !!

    ज़ज़्बात दिल के !

    ज़ज़्बात दिल के !
    मंजिल की तलाश में भागती इस महानगर के अनजानी राहो में मुझे मेरी कविता थाम लेती है , मुझे कुछ पल ठहर जी लेने का एहसास देती है ! मेरी कविता का जन्म ह्रदय की घनीभूत पीड़ा के क्षणों में ही होता है !! ..... किरण "मीतू" !!

    मेरे एहसास !!

    मेरे एहसास !!
    मेरे भीतर हो रहा है अंकुरण , उबल रहा है कुछ जो , निकल आना चाहता है बाहर , फोड़कर धरती का सीना , तैयार रहो तुम सब ..... मेरा विस्फोट कभी भी , तहस - नहस कर सकता है , तुम्हारे दमन के - नापाक इरादों को ---- किरण "मीतू" !!

    आर्तनाद !

    आर्तनाद !
    कभी-कभी जी करता है की भाग जाऊं मैं , इस खुबसूरत ,रंगीन , चंचल शहर से !! दो उदास आँखे .....निहारती रहती है बंद कमरे की उदास छत को ! . ..लेकिन भागुंगी भी कहाँ ? कौन है भला , जो इस सुन्दर सी पृथ्वी पर करता होगा मेरी प्रतीक्षा ? ..... किरण "मीतू" !!

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !
    प्रकृति की गोद में बिताये बचपन की मधुर स्मृतियाँ बार-बार मन को उसी ओर ले जाती है ! मानव जीवन में होने वाली हर बात मुझे प्रकृति से जुडी नज़र आती है तथा मैं मानव जीवन तथा प्रकृति में समीकरण बनाने का प्रयास करती हूँ !....किरण "मीतू

    कविता-मेरी संवेदना !!

    कविता-मेरी संवेदना !!
    वेदना की माटी से , पीड़ा के पानी से , संवेदनाओ की हवा से , आँसूवो के झरनों से ! कोमल मन को जब लगती है चोट , निकलता है कोई गीत , और बनती है कोई कविता !! ..... मीतू !!
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