प्रिय,तुम कैसे हो ...
तुम कैसे हो,प्रिय ..
मेरा दिल कतरा-कतरा पिघलता है तुम्हारे लिए ...
तुम्हे भी कुछ ऐसा होता है क्या ?

सो जाता है ये सारा चंचल शहर
मैं तुम्हारी यादो के साए से लिपटी.
करवटे बदलती रहती हूँ सारी - सारी रात...
दरअसल, सिर्फ तुम ही समझ सकते हो ,
की किस तरह से मैं भींगती हूँ मन ही मन में ,
तुम्हारी यादो की बारिश से !

सबको दिखती है इस शहर की रंगीनिया ,
मुझे अब इस निसंग आकाश के अलावा कुछ भी नही दिखता ..
इस अंधड़ , बारिश और मेरे कंधो से लगती हुयी तेज़ हवाओ में ,
अब सिर्फ तुम्हारा ही एहसास है !

जीवन उड़ता ही जा रहा है किसी चपल समुद्री पाखी की तरह,
न मालूम कहाँ , किस ओर ...
अब कोई अलविदा भी नही कहता ,
कोई सर की कसम भी नही देता की वापस लौट आओ !

मैं बिलकुल भी कुशल नही हूँ लेकिन तुम सकुशल रहना,मेरे प्रिय !!

-------------- मीतू Copyright ©, रात्रि ९:४५ २८ मई २०११ !

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9 Responses to "प्रिय,तुम कैसे हो ..."

  1. किरण श्रीवास्तव "मीतू" Says:

    मैं जानती हूँ ,
    ये बिलकुल भी ठीक नही है ...
    मेरे ये एहसास मुझे ही कमजोर करेंगे ...
    लेकिन तुम्ही बताओ न _

    कहाँ ले जाऊं अपने दिल के ज़ज्बात ..?
    बहुत कुछ कह भी तो नही पाती तुमसे ....
    सही-गलत के उधेड़बुन में ,
    मैं पगली -सी भींगती रहती हूँ ,
    इन्ही एहसास के पनाहों में ...
    _____ मीतू !!

  2. किरण श्रीवास्तव "मीतू" Says:

    .
    कभी-कभी जी करता है की भाग जाऊं मैं ,
    इस खुबसूरत ,रंगीन , चंचल शहर से ,
    दो उदास आँखे .....निहारती रहती है बंद कमरे की उदास छत को !

    ...और भागुंगी भी कहाँ ?
    कौन है भला ,
    जो इस सुन्दर सी पृथ्वी पर करता होगा मेरी प्रतीक्षा ?
    _________________ मीतू !!

  3. a k mishra Says:

    This comment has been removed by a blog administrator.

  4. a k mishra Says:

    वाह..बहुत ही सुन्दर.. किरण जी...अतिशय भावपूर्ण एवं मर्मस्पर्शी...बिलकुल ही विह्वल्कारी ..क्यां कहूँ..दिल के एहसास की अतिशय मनोरम शब्दों में मनोमुग्धकारी अभिव्यक्ति...दिल को छू गया..और आप की यह अंतिम पंक्ति ने तो आँखों में आंसू ही ला दिया...
    मैं बिलकुल भी कुशल नही हूँ ,लेकिन तुम सकुशल रहना,मेरे प्रिय !!...

  5. प्रसून दीक्षित 'अंकुर' Says:

    Waah ! Kya Baat Hai ???
    I'm speechless !!

  6. Rajeysha Says:

    भागने से अच्‍छा है यादों की गठरी उतारी जाये

  7. Dr Jawahar Laal Raina Says:

    Ati Sundar!! Beautyful!!

  8. Anonymous Says:

    waw it is so good ................................. can't explain in words................................................

  9. mukeshjoshi Says:

    दिल के सुन-सान जजिरौ में ख़ुद को छिपा लूँगामें,
    तुजसे बिछड कर ए सनम ओर क्या कर पाऊँगा में,

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  • संवेदना

    क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!! ---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!

    अपने दायरे !!

    अपने दायरे !!
    कुछ वीरानियो के सिलसिले आये इस कदर की जो मेरा अज़ीज़ था ..... आज वही मुझसे दूर है ..... तल्ख़ हुए रिश्तो में ओढ़ ली है अब मैंने तन्हाइयां !! ......... किरण "मीतू" !!

    स्पंदन !!

    स्पंदन !!
    निष्ठुर हूँ , निश्चल हूँ मैं पर मृत नही हूँ ... प्राण हैं मुझमे ... अभी उठना है दौड़ना हैं मुझे ... अपाहिज आत्मा के सहारे ... जीना है एक जीवन ... जिसमे मरण हैं एक बार ... सिर्फ एक बार !! ..... किरण " मीतू" !!

    सतरंगी दुनिया !!

    सतरंगी दुनिया !!
    आस-पास , हास-परिहास , मैं रही फिर भी उदास ...आत्मा पर पड़ा उधार , उतारने का हुआ प्रयास ... खुश करने के और रहने के असफल रहे है सब प्रयास !! ..... किरण "मीतू" !!

    उलझन !!

    उलझन !!
    अकेले है इस जहां में , कहाँ जाए किधर जाए ! नही कोई जगह ऐसी की दिल के ज़ख्म भर जाए !! ... किरण "मीतू" !

    तलाश स्वयं की !!

    तलाश स्वयं की !!
    कुछ क्षण अंतर्मन में तूफ़ान उत्पन्न कर देते है और शब्दों में आकार पाने पर ही शांत होते है ! ..... मीतू !!

    ज़ज़्बात दिल के !

    ज़ज़्बात दिल के !
    मंजिल की तलाश में भागती इस महानगर के अनजानी राहो में मुझे मेरी कविता थाम लेती है , मुझे कुछ पल ठहर जी लेने का एहसास देती है ! मेरी कविता का जन्म ह्रदय की घनीभूत पीड़ा के क्षणों में ही होता है !! ..... किरण "मीतू" !!

    मेरे एहसास !!

    मेरे एहसास !!
    मेरे भीतर हो रहा है अंकुरण , उबल रहा है कुछ जो , निकल आना चाहता है बाहर , फोड़कर धरती का सीना , तैयार रहो तुम सब ..... मेरा विस्फोट कभी भी , तहस - नहस कर सकता है , तुम्हारे दमन के - नापाक इरादों को ---- किरण "मीतू" !!

    आर्तनाद !

    आर्तनाद !
    कभी-कभी जी करता है की भाग जाऊं मैं , इस खुबसूरत ,रंगीन , चंचल शहर से !! दो उदास आँखे .....निहारती रहती है बंद कमरे की उदास छत को ! . ..लेकिन भागुंगी भी कहाँ ? कौन है भला , जो इस सुन्दर सी पृथ्वी पर करता होगा मेरी प्रतीक्षा ? ..... किरण "मीतू" !!

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !
    प्रकृति की गोद में बिताये बचपन की मधुर स्मृतियाँ बार-बार मन को उसी ओर ले जाती है ! मानव जीवन में होने वाली हर बात मुझे प्रकृति से जुडी नज़र आती है तथा मैं मानव जीवन तथा प्रकृति में समीकरण बनाने का प्रयास करती हूँ !....किरण "मीतू

    कविता-मेरी संवेदना !!

    कविता-मेरी संवेदना !!
    वेदना की माटी से , पीड़ा के पानी से , संवेदनाओ की हवा से , आँसूवो के झरनों से ! कोमल मन को जब लगती है चोट , निकलता है कोई गीत , और बनती है कोई कविता !! ..... मीतू !!
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