_____________________आत्ममंथन __________________
जाने क्यों आज खुद के ही नाम ख़त लिखने का ख़याल आ गया ! लिखने के लिए कलम उठाई तो गुज़रे हुए जाने कितने लम्हों की यादे सिमट आई ज़ेहन में .....कई हँसते हुए मुकाम भी शामिल हो गए खयालो में , तो चुप-चुप से पलो में घुटती हुयी कई खामोश-सी साँसों की तड़प भी रुला गयी ...... कभी हथेलिओ में चाँद... नज़र आया तो कभी चाहते हुए भी कुछ न कर पाने की कसक होंठो में कैद होकर रह गयी ..... ख्यालो के चिराग जलते रहे और मैं बीती यादो के कोरे पन्नो पर समेटते हुए अपने हिस्से की ज़मीन तलाशने लगी ........"मनचाहा तो किसी को नही मिलता , पर जो मिला . उसका भी मलाल नही है "! वैसे भी अपना वजूद अपनी जमीन तलाशना हर किसी के लिए जरुरी भी तो है ......ताकि बीती हुयी गलतियों को सुधार जा सके , उनसे सीख ली जा सके ..... और अपनी उपलब्धियों से अपनी ख्वाहिशो का आसमान पा सके ......!!
मीतू २०:०९ ...१७०१२०११ ....Copyright ©
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5 Responses to "आत्ममंथन !!"

  1. Anonymous Says:

    sundar zazbaat

  2. Pawan Tawania Says:

    Mujhe reshama ki wo ghazal yaad aa gayi aksar sab e tanhayi me kuchh der pahale need se. Samay samay par apane wigat ko yaad karana aur samay rahate huye hi galati sudhaar kar lena. Ek pura lekha jokha wo bhi khud apane aapka
    Bahut khoob!

  3. ashutosh Says:

    एक सचाई जो आज की जरूरत है

  4. a k mishra Says:

    वाह...बहुत ही सुन्दर ...किरण जी...अतिशय मुग्धकारी अभिव्यकि...शब्दों का जादू कहूँ या दिल से निकलते हुए कोमल जजबात ..दिल को पिघला रहा है...पूरे अस्तित्व को सिहरा रहा है...ऐसा लगता है जैसे दिल के भाव जुवां से निकलकर शब्दों में ढलकर इस अभिव्यक्ति के रूप में बह चले हों...इसमे स्मृतियों का आवेग है..भावनाओं के ज्वार की लहर..बीती जिंदगी की कसक..गुजरे पल की यादें..बीते लम्हों के अक्स जब भी आंखों में उभरते हैं, दिल का कतरा-कतरा जख्मी हो जाता है पर ऎसा नहीं कि हर बार यादें चोट पहुंचाती हों, अक्सर ये भर देती हैं मीठी सी कसक और दिल में उठती है एक हूक-सी और हम पहुँच जाते हैं विचारों के दोराहे पर ..यादों के पन्ने जब भी हम उलटते हैं ,अतीत की पिटारी में जब भी हम झांकते हैं जिंदगी का वो लम्हा जवान हो जाता है ,हमें आँचल में समेट लेना चाहता है और हम वर्तमान और भूत के द्वंद्व में झूलने लगते हैं. अत्यंत ही मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति ...अत्यंत ही सुन्दर...सुंदर रचना ,बिता हुआ कल ,कल है ,जीता हुआ आज,आज है जिसमे जीवन है इसे अपनाना ही प्रगति है ...मेरी शुभकामनाएं...:)

  5. हें प्रभु यह तेरापंथ Says:

    ati sunder

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  • संवेदना

    क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!! ---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!

    अपने दायरे !!

    अपने दायरे !!
    कुछ वीरानियो के सिलसिले आये इस कदर की जो मेरा अज़ीज़ था ..... आज वही मुझसे दूर है ..... तल्ख़ हुए रिश्तो में ओढ़ ली है अब मैंने तन्हाइयां !! ......... किरण "मीतू" !!

    स्पंदन !!

    स्पंदन !!
    निष्ठुर हूँ , निश्चल हूँ मैं पर मृत नही हूँ ... प्राण हैं मुझमे ... अभी उठना है दौड़ना हैं मुझे ... अपाहिज आत्मा के सहारे ... जीना है एक जीवन ... जिसमे मरण हैं एक बार ... सिर्फ एक बार !! ..... किरण " मीतू" !!

    सतरंगी दुनिया !!

    सतरंगी दुनिया !!
    आस-पास , हास-परिहास , मैं रही फिर भी उदास ...आत्मा पर पड़ा उधार , उतारने का हुआ प्रयास ... खुश करने के और रहने के असफल रहे है सब प्रयास !! ..... किरण "मीतू" !!

    उलझन !!

    उलझन !!
    अकेले है इस जहां में , कहाँ जाए किधर जाए ! नही कोई जगह ऐसी की दिल के ज़ख्म भर जाए !! ... किरण "मीतू" !

    तलाश स्वयं की !!

    तलाश स्वयं की !!
    कुछ क्षण अंतर्मन में तूफ़ान उत्पन्न कर देते है और शब्दों में आकार पाने पर ही शांत होते है ! ..... मीतू !!

    ज़ज़्बात दिल के !

    ज़ज़्बात दिल के !
    मंजिल की तलाश में भागती इस महानगर के अनजानी राहो में मुझे मेरी कविता थाम लेती है , मुझे कुछ पल ठहर जी लेने का एहसास देती है ! मेरी कविता का जन्म ह्रदय की घनीभूत पीड़ा के क्षणों में ही होता है !! ..... किरण "मीतू" !!

    मेरे एहसास !!

    मेरे एहसास !!
    मेरे भीतर हो रहा है अंकुरण , उबल रहा है कुछ जो , निकल आना चाहता है बाहर , फोड़कर धरती का सीना , तैयार रहो तुम सब ..... मेरा विस्फोट कभी भी , तहस - नहस कर सकता है , तुम्हारे दमन के - नापाक इरादों को ---- किरण "मीतू" !!

    आर्तनाद !

    आर्तनाद !
    कभी-कभी जी करता है की भाग जाऊं मैं , इस खुबसूरत ,रंगीन , चंचल शहर से !! दो उदास आँखे .....निहारती रहती है बंद कमरे की उदास छत को ! . ..लेकिन भागुंगी भी कहाँ ? कौन है भला , जो इस सुन्दर सी पृथ्वी पर करता होगा मेरी प्रतीक्षा ? ..... किरण "मीतू" !!

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !
    प्रकृति की गोद में बिताये बचपन की मधुर स्मृतियाँ बार-बार मन को उसी ओर ले जाती है ! मानव जीवन में होने वाली हर बात मुझे प्रकृति से जुडी नज़र आती है तथा मैं मानव जीवन तथा प्रकृति में समीकरण बनाने का प्रयास करती हूँ !....किरण "मीतू

    कविता-मेरी संवेदना !!

    कविता-मेरी संवेदना !!
    वेदना की माटी से , पीड़ा के पानी से , संवेदनाओ की हवा से , आँसूवो के झरनों से ! कोमल मन को जब लगती है चोट , निकलता है कोई गीत , और बनती है कोई कविता !! ..... मीतू !!
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