_____________________आत्ममंथन __________________ जाने क्यों आज खुद के ही नाम ख़त लिखने का ख़याल आ गया ! लिखने के लिए कलम उठाई तो गुज़रे हुए जाने कितने लम्हों की यादे सिमट आई ज़ेहन में .....कई हँसते हुए मुकाम भी शामिल हो गए खयालो में , तो चुप-चुप से पलो में घुटती हुयी कई खामोश-सी साँसों की तड़प भी रुला गयी ...... कभी हथेलिओ में चाँद... नज़र आया तो कभी चाहते हुए भी कुछ न कर पाने की कसक होंठो में कैद होकर रह गयी ..... ख्यालो के चिराग जलते रहे और मैं बीती यादो के कोरे पन्नो पर समेटते हुए अपने हिस्से की ज़मीन तलाशने लगी ........"मनचाहा तो किसी को नही मिलता , पर जो मिला . उसका भी मलाल नही है "! वैसे भी अपना वजूद अपनी जमीन तलाशना हर किसी के लिए जरुरी भी तो है ......ताकि बीती हुयी गलतियों को सुधार जा सके , उनसे सीख ली जा सके ..... और अपनी उपलब्धियों से अपनी ख्वाहिशो का आसमान पा सके ......!! मीतू २०:०९ ...१७०१२०११ ....Copyright © ०००००००००●●●▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬●●●०००००००००० |
January 17, 2011 at 11:33 PM �
sundar zazbaat
January 30, 2011 at 2:10 AM �
Mujhe reshama ki wo ghazal yaad aa gayi aksar sab e tanhayi me kuchh der pahale need se. Samay samay par apane wigat ko yaad karana aur samay rahate huye hi galati sudhaar kar lena. Ek pura lekha jokha wo bhi khud apane aapka
Bahut khoob!
May 30, 2011 at 5:06 PM �
एक सचाई जो आज की जरूरत है
December 11, 2011 at 10:06 PM �
वाह...बहुत ही सुन्दर ...किरण जी...अतिशय मुग्धकारी अभिव्यकि...शब्दों का जादू कहूँ या दिल से निकलते हुए कोमल जजबात ..दिल को पिघला रहा है...पूरे अस्तित्व को सिहरा रहा है...ऐसा लगता है जैसे दिल के भाव जुवां से निकलकर शब्दों में ढलकर इस अभिव्यक्ति के रूप में बह चले हों...इसमे स्मृतियों का आवेग है..भावनाओं के ज्वार की लहर..बीती जिंदगी की कसक..गुजरे पल की यादें..बीते लम्हों के अक्स जब भी आंखों में उभरते हैं, दिल का कतरा-कतरा जख्मी हो जाता है पर ऎसा नहीं कि हर बार यादें चोट पहुंचाती हों, अक्सर ये भर देती हैं मीठी सी कसक और दिल में उठती है एक हूक-सी और हम पहुँच जाते हैं विचारों के दोराहे पर ..यादों के पन्ने जब भी हम उलटते हैं ,अतीत की पिटारी में जब भी हम झांकते हैं जिंदगी का वो लम्हा जवान हो जाता है ,हमें आँचल में समेट लेना चाहता है और हम वर्तमान और भूत के द्वंद्व में झूलने लगते हैं. अत्यंत ही मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति ...अत्यंत ही सुन्दर...सुंदर रचना ,बिता हुआ कल ,कल है ,जीता हुआ आज,आज है जिसमे जीवन है इसे अपनाना ही प्रगति है ...मेरी शुभकामनाएं...:)
December 12, 2011 at 12:15 AM �
ati sunder