नेहिया लगाला पिया,माना मोरी बतिया राम कसकेला करेजवा में तोहरी सुरतिया राम !!
माघ महिनवा में सरसों फुलाला , हमार झुराई गईले प्रीत के बिरवा राम !
तोहके पुकारेला पागल मनवा , सुधियों न लेहला पिया ,भेजला नहीं पतिया राम !
तडपत बीत गईल सारी जिन्द्गनियाँ ! बिरहिनी गिने तारा,सारी सारी रतियाँ राम !! | | |
January 27, 2011 at 12:46 AM �
बकरी के छोकडे से दोस्ती है तेरी ।
तू है रे गावों की भोली सी गोरी ।
क्यों करती रातों मे तारों की चोरी।
दर्पन मे देख तू है चाँद-तिजोरी ।।
शहरियों की दरिया मे तू मत आना ।
अपना ही गांव है रे भला ठिकाना ।
अपनों को चुन ले पराया परख ले ।
हमजोली लग जाय तो आँखमारी कर ले ।।
January 27, 2011 at 2:57 PM �
गांव की गोरी
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बकरी के छोकडे से दोस्ती है तेरी ।
तू है रे गावों की भोली सी गोरी ।
क्यों करती रातों मे तारों की चोरी।
दर्पन मे देख तू है चाँद-तिजोरी ।।
शहरियों की दरिया मे तू मत आना ।
अपना ही गांव है रे भला ठिकाना ।
अपनों को चुन ले पराया परख ले ।
हमजोली लग जाय तो आँखमारी कर ले ।।
February 8, 2011 at 8:49 PM �
गोरी के गाँव माँ पीपर के छऊ माँ बड़ा नीक लगे नदी बीच नांउ माँ
अत्यंत सुन्दर भावनाओं को आपने शब्दों में बाँध दिया है