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तोड़ के बिखेर दे मुझे फ़िज़ाओं में , वक्त के ऐसे तो हालात नही !
करनी है पूरी हर अधूरी तमन्नाएँ , और कोई बात नही !!


परेशाँ है मेरा दिल खुद मुझसे ही, और कोई तो बात नहीं !
किसी नज़्म ने छुआ भर है मुझको, और कोई तो बात नहीं !

कभी टल जाऊं तूफ़ान से ,हरगिज़ मैं वो साहिल भी नहीं !
ज़रा हवा के झोँके बाँहों में ले लूँ,और कोई तो साथ नहीं !

मगरूर नहीं बेबाक हूँ दिल से, पर किसी से कोई एतराज नहीं !
किसी को लगता बुरा तो लगा करे ,मेरा इरादा तो कोई ख़ास नहीं !

जीना चाहूँ आसमान के साथ , अब और कोई तो ख्वाब नहीं !
मुट्ठी में कर लूं माहताब को मै, गुलों का तो कोई हिसाब नही !

क्यूँ पीछे पड़ा है जमाना, मेरा कोई तो गलत बयान नहीं !
किसी को बेवजह रंज दूँ ,मैं ऐसा कोई मेरा अरमान नहीं !

कब निकल जाए वक़्त करीने का, इसका भी अंदाज़ नहीं !
इसीलिए जीती हूँ बिंदास हर पल को,और तो कोई बात नहीं


9 Responses to "मै हूँ"

  1. Arjun Rai Says:

    सुन्दर अभिव्यक्ति।साभार ।

  2. for more news click on facebook/maltitotalsolution@gmail.com Says:

    tumhari Najm me chhupa hai chahton ka samandar aur koi baat nhi, koi mil jaye khubsurat humsafar jindgi gujarne ke liye,is se badkar koi chahat mere liye khas nhi.

  3. शिवशंकर श्रीवास्तव Says:

    बहुत अच्‍छा है

  4. bahujanindia group Says:

    Youe poem is posted on www.bahujanindia.in

  5. divyashakti. khuch tum kaho kuch hum likhe Says:

    likhna to bahut chatha kiren g but hindi me kaise likhu hinglihs me koi samjh nahi pata akhir hinglish me sanvedna bhi to nahi hoti. good night

  6. Unknown Says:

    KIRANJI,
    AAPKI SAHITYIK SARANCHANOWN KE GYANARJAN KE PASHCHAT,MAIN SWAYAM ANIRYAN KI STHITI ME HOON.AAPKI PRANSHASHA KE KIN-KIN SHABDON KA ANUSARAN KAROON,PARIBHASHIT BHI NAHI KAR SAKTA.KINTU- PARIWESH, SAHITYA-SRIJAN,LEKHNI,SANSKAR,PRERNA AUR SWAYAM SAHITYIK MADHYAM KA EK ABHUTPOORV SANGAM KE SACHHATKAR AUR DARSHAN KARATI HAI.HARDIQ DHANYVAD.

  7. Harash Mahajan Says:

    Bahoot sunder Kiran

  8. MANISH KAUL Says:

    KIRAN JI,

    MENE AAJ PAHLI BAAR AAP KE ID PAR VISIT KIYA AUR KUCH LINE PAD KAR HI BAS YU SAMJHO KI MAJA AAGAYA LAGA KOI HAI APNE SA.

    LOG YU KIYU SAMJHATE HAI KI PYAR KI BAAT KANA KISI KE CHAHAT ME PADNA HAI DARD KI BAAT KARNA KA MATLAB DIL TUTNA HAI. BINA DIL TUTE BHI DARD KA EHASAS KIYA JA SAKTA HAI EMOTION HO TO DUSRO KE DARD ME BHI TAKLIF LEHSUS KI JAA SAKTI HAI, AUR PYAR TO HAR RUP ME AANAND DETA HAI CHAHE KISI SE BHI KISI ROOP ME BHI KIYA GAYA HO........

  9. Anju (Anu) Chaudhary Says:

    खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  • संवेदना

    क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!! ---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!

    अपने दायरे !!

    अपने दायरे !!
    कुछ वीरानियो के सिलसिले आये इस कदर की जो मेरा अज़ीज़ था ..... आज वही मुझसे दूर है ..... तल्ख़ हुए रिश्तो में ओढ़ ली है अब मैंने तन्हाइयां !! ......... किरण "मीतू" !!

    स्पंदन !!

    स्पंदन !!
    निष्ठुर हूँ , निश्चल हूँ मैं पर मृत नही हूँ ... प्राण हैं मुझमे ... अभी उठना है दौड़ना हैं मुझे ... अपाहिज आत्मा के सहारे ... जीना है एक जीवन ... जिसमे मरण हैं एक बार ... सिर्फ एक बार !! ..... किरण " मीतू" !!

    सतरंगी दुनिया !!

    सतरंगी दुनिया !!
    आस-पास , हास-परिहास , मैं रही फिर भी उदास ...आत्मा पर पड़ा उधार , उतारने का हुआ प्रयास ... खुश करने के और रहने के असफल रहे है सब प्रयास !! ..... किरण "मीतू" !!

    उलझन !!

    उलझन !!
    अकेले है इस जहां में , कहाँ जाए किधर जाए ! नही कोई जगह ऐसी की दिल के ज़ख्म भर जाए !! ... किरण "मीतू" !

    तलाश स्वयं की !!

    तलाश स्वयं की !!
    कुछ क्षण अंतर्मन में तूफ़ान उत्पन्न कर देते है और शब्दों में आकार पाने पर ही शांत होते है ! ..... मीतू !!

    ज़ज़्बात दिल के !

    ज़ज़्बात दिल के !
    मंजिल की तलाश में भागती इस महानगर के अनजानी राहो में मुझे मेरी कविता थाम लेती है , मुझे कुछ पल ठहर जी लेने का एहसास देती है ! मेरी कविता का जन्म ह्रदय की घनीभूत पीड़ा के क्षणों में ही होता है !! ..... किरण "मीतू" !!

    मेरे एहसास !!

    मेरे एहसास !!
    मेरे भीतर हो रहा है अंकुरण , उबल रहा है कुछ जो , निकल आना चाहता है बाहर , फोड़कर धरती का सीना , तैयार रहो तुम सब ..... मेरा विस्फोट कभी भी , तहस - नहस कर सकता है , तुम्हारे दमन के - नापाक इरादों को ---- किरण "मीतू" !!

    आर्तनाद !

    आर्तनाद !
    कभी-कभी जी करता है की भाग जाऊं मैं , इस खुबसूरत ,रंगीन , चंचल शहर से !! दो उदास आँखे .....निहारती रहती है बंद कमरे की उदास छत को ! . ..लेकिन भागुंगी भी कहाँ ? कौन है भला , जो इस सुन्दर सी पृथ्वी पर करता होगा मेरी प्रतीक्षा ? ..... किरण "मीतू" !!

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !
    प्रकृति की गोद में बिताये बचपन की मधुर स्मृतियाँ बार-बार मन को उसी ओर ले जाती है ! मानव जीवन में होने वाली हर बात मुझे प्रकृति से जुडी नज़र आती है तथा मैं मानव जीवन तथा प्रकृति में समीकरण बनाने का प्रयास करती हूँ !....किरण "मीतू

    कविता-मेरी संवेदना !!

    कविता-मेरी संवेदना !!
    वेदना की माटी से , पीड़ा के पानी से , संवेदनाओ की हवा से , आँसूवो के झरनों से ! कोमल मन को जब लगती है चोट , निकलता है कोई गीत , और बनती है कोई कविता !! ..... मीतू !!
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