3:22 PM


माना,
आपकी बात सही है ,
और आप व्यक्ति भी सही है,
लेकिन
सही बात तो यह है
कि सही बात इस तरह कही नहीं जाती !
पहली बात तो यह
कि सही बात कहने कि
हैसियत भी होनी चाहिए ,
वरना वह बिलकुल गलत बात लगेगी !
फिर समय भी देखना चाहिए,
हर समय सही बात कहने के लिए ,
सही समय नहीं होता !
फिर यह भी तो देखिये
कि कह किससे रहे है,
गलत व्यक्ति से सही बात कहेंगे
तो कैसे निभेंगे ?

तो फिर अपना वक्त देखिये,
और अपना महत्व देखिये,
फिर सामने वाले कि जात देखिये,
और उसकी औकात देखिये ...
सही गलत कि फिक्र
फ़िलहाल रहने दीजिये !!!!
__________किरण श्रीवास्तव "मीतू " !!

3 Responses to "सलाह"

  1. Kumar Raman Shrivastava Says:

    किरण जी याद है सत्य बोलने के सम्बन्ध में क्या कहा गया है ..............'सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात न ब्रूयात सत्यं अप्रियम '

    या तो बात सही होती है या व्यक्ति सही होता है|
    जो होता है वो परिस्थितियों पर निर्भर होता है ||
    सही गलत पर "किरण" मत तुम विचार करो |
    जो शाश्वत सत्य है उसको स्वीकार करो ||
    सही बात तो कभी कही ही नहीं जाती है |
    जब भी कही जाती है तो सही नहीं जाती है||
    सही बात को स्वीकार करने वाला महान होता है |
    कहने वाले की ज़ात/औकात से अनजान होता है ||
    सही बात का समय असमय नहीं होता है |
    सुनने वाला भी इस फेर में नहीं खोता है ||
    गर साहस है सुनने की सही बात " मीतू " |
    तो छोड़ दो यह सही गलत किन्तु परन्तु ||
    " रमन " हम सब सही और गलत होते है |
    परिस्थितियों का दोष दूसरों को ही देतें हैं ||
    आकलन करके निर्धारित करना "चित्रगुप्त" का काम है |
    सबको याद रख सबको भूल जा जीवन इसी का नाम है ||


    ऐसी बानी बोलिए , मन का आपा खोए औरन को सीतल करे , आपहुँ सीतल होए…।”
    निंदक नियरे रखिये आँगन कुटी छवाये, बिन साबुन बिन तेल के निर्मल करे सुहाय.

  2. arpit yadav Says:

    nice na

  3. Vivek Surange Says:

    क्या है हमारी बेचैनी का राज ?.....
    .जिसकी योजना से हमारा जन्म हुआ है ,जिस उद्देश्य क़ी पूर्ती केलिए हमारा जन्म हुआ है ...उस कारण में छिपा है यह रहस्य .
    .यह भाषण बाजी का नही ..आत्म साक्षात्कार का विषय है ...हम अपने प्रिय संस्कारों के अनुसार ही जी रहे हैं ..हमारी चाह्त और अस्वीकृति वहीं से उपजती है .
    .यहीं हम क्रिया -प्रतिक्रिया में उलझे रहते हैं ..मन क़ी अनुकूलता हमें हसाती है ,और प्रतिकूलता दर्द का अहसास देती है
    जिन्दगी कविता है ..वह खूबसूरत भी है और कल्याणकारी भी ,पर तभी ,जब उसका व्याकरण और प्रस्तुतीकरण भी सही हो ....--.विवेक

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  • संवेदना

    क्यों लिखती हूँ नहीं जानती, पर लिखती हूँ... क्योकि महसूस करना चाहती हूँ प्रेम-पीड़ा-परिचय-पहचान! तन्हाई में जब आत्म मंथन करती हूँ तो व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, अनुभव मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम बनकर कविता का रूप ले लेती है!! ---किरण श्रीवास्तव "मीतू" !!

    अपने दायरे !!

    अपने दायरे !!
    कुछ वीरानियो के सिलसिले आये इस कदर की जो मेरा अज़ीज़ था ..... आज वही मुझसे दूर है ..... तल्ख़ हुए रिश्तो में ओढ़ ली है अब मैंने तन्हाइयां !! ......... किरण "मीतू" !!

    स्पंदन !!

    स्पंदन !!
    निष्ठुर हूँ , निश्चल हूँ मैं पर मृत नही हूँ ... प्राण हैं मुझमे ... अभी उठना है दौड़ना हैं मुझे ... अपाहिज आत्मा के सहारे ... जीना है एक जीवन ... जिसमे मरण हैं एक बार ... सिर्फ एक बार !! ..... किरण " मीतू" !!

    सतरंगी दुनिया !!

    सतरंगी दुनिया !!
    आस-पास , हास-परिहास , मैं रही फिर भी उदास ...आत्मा पर पड़ा उधार , उतारने का हुआ प्रयास ... खुश करने के और रहने के असफल रहे है सब प्रयास !! ..... किरण "मीतू" !!

    उलझन !!

    उलझन !!
    अकेले है इस जहां में , कहाँ जाए किधर जाए ! नही कोई जगह ऐसी की दिल के ज़ख्म भर जाए !! ... किरण "मीतू" !

    तलाश स्वयं की !!

    तलाश स्वयं की !!
    कुछ क्षण अंतर्मन में तूफ़ान उत्पन्न कर देते है और शब्दों में आकार पाने पर ही शांत होते है ! ..... मीतू !!

    ज़ज़्बात दिल के !

    ज़ज़्बात दिल के !
    मंजिल की तलाश में भागती इस महानगर के अनजानी राहो में मुझे मेरी कविता थाम लेती है , मुझे कुछ पल ठहर जी लेने का एहसास देती है ! मेरी कविता का जन्म ह्रदय की घनीभूत पीड़ा के क्षणों में ही होता है !! ..... किरण "मीतू" !!

    मेरे एहसास !!

    मेरे एहसास !!
    मेरे भीतर हो रहा है अंकुरण , उबल रहा है कुछ जो , निकल आना चाहता है बाहर , फोड़कर धरती का सीना , तैयार रहो तुम सब ..... मेरा विस्फोट कभी भी , तहस - नहस कर सकता है , तुम्हारे दमन के - नापाक इरादों को ---- किरण "मीतू" !!

    आर्तनाद !

    आर्तनाद !
    कभी-कभी जी करता है की भाग जाऊं मैं , इस खुबसूरत ,रंगीन , चंचल शहर से !! दो उदास आँखे .....निहारती रहती है बंद कमरे की उदास छत को ! . ..लेकिन भागुंगी भी कहाँ ? कौन है भला , जो इस सुन्दर सी पृथ्वी पर करता होगा मेरी प्रतीक्षा ? ..... किरण "मीतू" !!

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !

    मेरा बचपन - दुनिया परियो की !
    प्रकृति की गोद में बिताये बचपन की मधुर स्मृतियाँ बार-बार मन को उसी ओर ले जाती है ! मानव जीवन में होने वाली हर बात मुझे प्रकृति से जुडी नज़र आती है तथा मैं मानव जीवन तथा प्रकृति में समीकरण बनाने का प्रयास करती हूँ !....किरण "मीतू

    कविता-मेरी संवेदना !!

    कविता-मेरी संवेदना !!
    वेदना की माटी से , पीड़ा के पानी से , संवेदनाओ की हवा से , आँसूवो के झरनों से ! कोमल मन को जब लगती है चोट , निकलता है कोई गीत , और बनती है कोई कविता !! ..... मीतू !!
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